पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/६९

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भसहरी ३२८ मसाला मसहरी-सज्ञा स्री० [स० मशहरी ] १ पलंग के ऊपर और चारो देवगन देखत विमान चढि कौतुक मसान के ।-तुलसी ओर लटकाया जानेवाला वह जालीदार कपडा जिसका उपयोग (शब्द०)। मच्छडो आदि से बचने के लिये होता है। २ ऐसा पलग मसाना' - सज्ञा पु० [अ० मसानह ] पेट मे की वह थैली जिसमे पेशाब जिमके चारो पायो पर इस प्रकार का जालीदार कपडा जमा रहता है । पेशाव की थैली । मूत्राशय । वस्ति । लटकाने के लिये चार ऊंची लकड़ियाँ या छड लगे हो । मसाना-सज्ञा पु० [ स० श्मशान ] दे० 'मसान' | उ०-लोय विशेप-ऊपर की ओर भी ये चारो लकड़ियां या छड लकडी पडी भहराय उठन हैं गिद्ध ममाना ।- पलटू०, पृ० ७६ ।, की चार पट्टियो या छडो से प्राय जोडे रहते हैं । मसहार-सज्ञा पुं॰ [ स० मासाहारिन् ] मामाहारी। मास खाने- मसानिया - सन्चा पु० [हिं० मसान ( श्मशान )+ इया (प्रत्य॰)] वाला । उ०—(क) घटे नहिं कोह भरे उर छोह | नटे मसहार १ श्मशान पर रहनेवाला डोम । २ वह एमशान पर रह- घरे मन मोह । -मूदन (शब्द॰) । (ख) ममहार छाए नभ कर किसी प्रकार की साधना करता हो। ३ वह जो झाड परनि धाए स्यार । —सूदन (शब्द॰) । फूंककर भूत प्रेत आदि उतारता हो । सयाना । अोझा । वि० [अ० मशहूर ] दे० 'मशहूर' । मसानी सज्ञा स्त्री॰ [ म० श्मशानी ] स्मशान मे रहनेवाली पिशा- मसहूर- चिनी, डाकिनी इत्यादि । उ०-माइ मसानी सेढि मीतला, भैरू मसान-मज्ञा पु० [हिं० ] उ०-धमसान मसान मु ज्योति जगी। -ह० रासो, पृ० १५७ । भूत हनुमत । साहब से न्यारा रहै जो इनको पूजत ।- कबीर ( शब्द० ) मसा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मासकील ] १ शरीर पर कही कही काले रग का उभरा हुआ मास का छोटा दाना जो वैद्यक के अनुसार मसायख-सज्ञा पुं० [अ० शेख ] दे० 'मसाइक' । उ०—ना कोइ पीर मसायख काजी।—कबीर श०, भा॰ २, पृ० १५२ । एक प्रकार का चर्मरोग माना जाता है, और जो शरीर में अपने होने के स्थान के विचार से शुभ अथवा अशुभ माना मसार सशा पु० [सं० ] इद्रनील मणि । नीलम । जाता है। यह प्राय सरमो अथवा मूग के आकार से लेकर मसाल -सज्ञा स्त्री० [अ० मशाल ] दे० 'मशाल' । उ०-श्रानि वेर तक के आकार का होता है। उ०-अदाज से जियादा इते छन वारि दे छवि घनसार मसाल | कौन काज तहँ राज निपट नाज सुख नही । जो खाल अपने हद से बढा सो मसा जहँ सुधन वदन दुतिजाल ।- रामसहाय ( शब्द०)। हुआ । -कविता कौ०, भा० ४, पृ० १२ । २ बवामीर रोग मसालची-सज्ञा पुं॰ [फा० मशालची ] दे० 'मशालची'। मे मास के दाने जो गुदा के मुंह पर या भीतर होते हैं। इनमे वहुत पीडा होती है और कभी कभी इनमे से मसालदुम्मा-सञ्ज्ञा पुं॰ [ हिं० मशाल + दुम ] एक प्रकार का पक्षी खून भी बहता है। जिसको दुम विलकुल काली रहती है, बाकी सारा शरीर चाहे मसा'-सञ्ज्ञा पुं० [ स० मशक ] मच्छड । जिस रग का हो। अ० मुशायख (शेख का बहुवचन) ] २० 'शेख' । मसालहत - सज्ञा स्त्री० [अ० मसलहत ] सुलह । मेल । सधि । उ.-पीर पंगवर किया पयाना। सेख मसाइक सबै समाना। समझौता (को०)। -दादू०, पृ० ५७३ । मसाला-सज्ञा पुं॰ [फा० मसालह, ] १ किसी पदार्थ को प्रस्तुत करने मसाण-सञ्ज्ञा पुं० [राज० ] २० 'मसान' । उ०—काहे रे नर के लिये आवश्यक सामग्री । वे चीजें जिनकी महायता से कोई करहु डफाण । पतिकालि घर गोर मसाण ।-दादू०, चीज तैयार होती है। जैसे, (क) मकान बनाने के लिये सुर्सी, पृ० ४८४ चूना, ईटें, आदि । ( ख ) रसोई बनाने के लिये हलदी, धनिया मसान-सञ्ज्ञा १० [ स० एमशान ] १ वह स्थान जहाँ मुरदे जलाए मिर्च, जीरा, तेजपत्ता आदि । (ग) कपडा पर टांकने के जाते हो। मरघट । उ०-सब मसान पर हमरा राज । लिये गोटा, पट्टा, किनारी आदि। (घ) प्रथ या लेख आदि कफन मांगने का है काज ।-भारतेंदु ग्र०,भा० १, पृ० २६२ । लिखने के लिये दूसरे ग्रथ आदि । पर्या०—पितृवन । शतानक । रुद्राक्रीड । दाहसर । अतशय्या । यौ० -- गरम मसाला । मसालेदार । मसाले का तेल । पितृकानन । २ प्रोपधियो अथवा रासायनिक द्रव्यो का योग या ममूह । मुहा०-मसान जगाना = तत्रशास्त्र के अनुसार स्मशान पर बैठकर जैसे, पतील साफ करने का मसाला, पान का मसाला सिर शव की सिद्धि करना। मुरदा सिद्ध करना। उ० – कपट मलने का मसाला, तेल मे सिलाने का मसाला । ३ साधन । सयानि न कहति कछु जागति मनहु मसान । - तुलसी (शब्द०)। जैसे, अब तो आपको भी दिल्लगी का अच्छा मसाला मसान पड़ना= सन्नाटा हो जाना। मिल गया। ४ तेल। जैसे,--रोशनी वुझ रही है, मसाला २. भूत पिशाच आदि। लेते नाना। ५ प्रातिशवाजी । जैसे,—उसकी बारात मे यो०-मसान की वीमारी = वच्चो को होनेवाला एक प्रकार का अच्छे अच्छे मसाले छूटे थे। ६ नवयविना और मुदरी स्त्री रोग जिसमे वे घुल घुलकर मर जाते हैं । ( वाजारू)। ७. टार्च या चोरवत्ती मे लगनवाला मसाला । ३, रणभूमि । रणक्षेत्र। उ०—तुलसी महेश विधि लोकपाल बैटरी का सेल। , मसाइक-सज्ञा पुं० --