४ मसाली ३८२६ मसीहा मसाली- 1- सज्ञा स्त्री० [अ० मशाल ? ] रस्सी । डोरी । (लश०)। मसिबु दा-मशा पुं० [ म० मसिविन्दु ] दे० 'मसिविंदु' । उ०—(क) क्रि० प्र०-कसना । बांधना। मुनि मन हरत मजु मसिवुदा । ललित बदन बलि बालमुकुदा। मसाले का तेल-सज्ञा पु० [हिं० मसाला + तेल ] एक प्रकार का —तुलसी (शब्द॰) । (ख) उर वघनहा कठ कंठुला झंडूले वार । वेनी लटकन मसिबु दा मुनिमनहार ।-सूर (शब्द॰) । सुगधित तेल जो साधारण तिल के तेल मे कचूर कचरी, वालछड आदि सुगधित द्रव्य मिलाकर बनाया जाता है । मसिमणि-सज्ञा स्त्री॰ [ म० ] दावात । मसालेदार-वि० [अ० मसालह् + फा० दार ( प्रत्य० ) ] जिसमे मसिमुख-वि० [ सं० ] जिसके मुह मे स्याही लगी हो। काले मुंहगला । दुष्कर्म करनेवाला। उ०--जो भाग सत छाडि किसी प्रकार का मसाला लगा या मिला हो। के मसिमुख चढं वरात ।-(शब्द०)। विशेष - इसका प्रयोग प्राय खाद्य पदार्थों के लिये ही होता है। मसियर@t-सज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'मशाल' । उ०-चहुँ दिसि मसाहत-सज्ञा स्त्री० [अ०] नापना । पैमाइश (को०] । मसियर नखत तहाई । सूरुज चढा चाँद के ताईं। —जायसी मसिंदर-सञ्ज्ञा पु० [अ० मेसेंजर ] जहाज मे का वह बहुत बडा (शब्द०)। रस्सा जो चरखी या दौड मे लपेटा रहता है और जिसकी मसियाना-क्रि० अ० [हिं० मस ] भली भाँति भर जाना । पूरा हो सहायता से जहाज का गिराया हुपा लंगर उठाया जाता है। जाना। उ०—नेगी गेज मिले अरकाना। पवरथ बाजे घर (लश.)। मसियाना ।—जायसी (शब्द॰) । मसि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ म० ] १ लिखने की स्याही। रोशनाई । उ० मसियार@f-मज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे॰ 'मशाल'। (क) धरती सरग तुम्हरे देश कागद मसि खूटो—सूर (शब्द॰) । (ख ) परम चहूँ दिमि पूरि रहे मसियार ।-जायसी ग्र० (गुप्त), पृ० ३१३ । प्रेममय मृदु मसि कीन्ही । चारु चित्त भीती लिखि लीन्ही । (ख) छपि गा दीपक ौ मसियारा ।—जायसी ग्र० ( गुप्त ), तुलसी (शब्द०)। २ निगुंडी का फल । ३ काजल। पृ० ३१३। कालिख । उ०—जनु मुह लाई गेरु मसि भए खरनि मसियाराणी-मज्ञा पु० [हिं० ] दे० 'मशालची' । असवार ।-तुलसी (शब्द०)। ५ पाप । उ०—न वृजिन् मसिवर्ण-वि॰ [ स० ] स्याही के रग का काला [को०] । दुकृत दुरित अघ मलीन मसि पक ।-अनेकार्थ०, पृ० ५५ । ६ मसिविदु-सज्ञा पु० [ स० मसिविन्दु ] काजल का बुदा जो नजर नई उगती मूछो की रेख । मूंछ । उ०-उन्नत नामा अघर बिंब से बचने के बच्चों को लगाया जाता है। दिठौना । सुक की छवि छीनी । तिन विच अद्भुत भाँति लसति कछुइक उ०-लोयन नील सरोज से भू पर ममिविंदु विराज ।-तुलसी मसि भीनी-नद० न०, पृ० ३ । ( शब्द० ) । (ख) ललित भाल मसिविंदु विराज । भृकुटी मसिआरा-वि० [स० मसि+हिं० श्रारा (प्रत्य० १ कुटिल श्रवण अति भ्राज ।-विश्राम (शब्द॰) । कालिमायुक्त । २ कलकयुक्त । कलकी। उ०—सूक सोहिया मसिला-मझा पुं० [हिं० ] दे० 'मैन सित' । समि मसिमारा। पवन कर निति बार बुहारा ।-जायसी म सहानी-सश स्त्री० [ स० मसिधानी ] दावात। उ०-मन ग्र० ( गुप्त ), पृ० २६६ । ममिहानी सांच की स्याही।-घरनी० बानी, पृ० ३ । मसिक-सज्ञा पु० [ ] मॉप का बिल (को०] । मसी-सज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'ममि'। उ०-दरमन ही ते लागे मसिका-सज्ञा स्त्री॰ [स०] शेफालिका । निर्गुडी। जममुख मसी है। -भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० २८२ । मसिकूपी- -सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० ] दावात । मसीका-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० माशा ] १.पाठ रत्तो का मान । माशा। मसिजल-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] लिखने की स्याही । रोशनाई। २ चवन्नी । ( दलाल)। मसिजीवी-वि० [ म० मसि + जीविन् ] लेखनकार्य करके प्राजीविका मसीत-सज्ञा स्त्री॰ [फा० मसजिद ] मुसलमानो का वदना- चलानेवाला। स्थान । मसजिद । उ०—कबिरा काजी स्वाद बस जीव हते मसित-वि० [ म० ] पीसा या चूर्ण किया हुआ [को०] । तब दोय। चढि मसीत एको कहै क्यो दरगह सांचा होय । मसिदानी- सज्ञा स्त्री० [स० मसि+फा० दानो ] दावात । —कबीर (शब्द॰) । मसिपात्र। मसीद-सज्ञा मी० [अ० मस्जिद ] दे० 'मनजिद' । उ०-मांगि के खैवो मसीद को मोइवो लेनो है एक न देनो है दोऊ। मसिधान-मज्ञा पु० [सं० ] दावात । -तुलसी (शब्द०)। मसिधानो-सञ्ज्ञा सी० [सं० ] दावात [को०] । मसीना-मञ्ज्ञा पुं॰ [ देश०, स० मस्यन्न (= कदन्न ?) ] मोटा अन्न । मसिपण्य-सज्ञा पु० [ स०] लिखने का काम करनेवाला । लेखक । कदन्न । मसिपथ-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] कलम | मसीह-मज्ञा पुं० [अ० ] ईमाइयो के वर्मगुरु हजरत ईमा का नाम । मसिपात्र-सज्ञा पु० [ म० ] दावात । मसीहा-सच्चा पुं० [फा०] १ ईमाई धर्म के प्रवर्तक ईमा ममीह । मसिप्रसू-सशा स्त्री॰ [ ] १ कलम । २ दावात [को०) । २ वह जो मृतको को जीवित करता हो। उ०-क्यो न दवा म० स० .
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/७०
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