पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/७५

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महजूम ३८३४ महत्कथ महजूम-मझा पुं० [अ० मानून ] भांग मिलाकर बनाई हुई एक उ -( क ) जव चद नवाली देखि चप्यो तर जोनि किनी प्रकार की मादक मिठाई । उ०—कहुं करही उबलत मूखत महताब मे है ।-कमलापति (शब्द॰) । (ख) चांदनी में कवि महजूम बनत कहुँ ।-प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० ३४ । मभु मनो चह पोर विगजि रही महनावै ।-शभु (शब्द॰) । महज्जन-मचा पु० [ स० ] द. महाजन' [को०] । ३ जहाज पर रात के समय मकेत के लिये होनेवाली एक प्रकार की नीनी रोगनी जो काठ की एक ननी मे कुछ ममाले महण'-सज्ञा पु० [ डि० ] ममुद्र । उ०—मुरझ थान मेवाड, रॉण भरकर जनाई जाती है। (नग० राजॉन सरीखा । महण देख अवध, करं कुण वध परीखा - ) रा. रू०, पृ० २३ । महताब'-मा पु० फा०] १ चाँद । त्र द्रमा। गणि। 30- आई वारवधू छनि छाई ऐसी गाँउ बोच, जाके मुख आगे दवं महण-सज्ञा पु० [सं० मथन, प्रा० महण ] मथन | मथना । जोति महताब को ।-- रघुनाथ (गन्द०)। . एक प्रकार का यौ०-महणारभ = मथना। मथने की क्रिया। उ०—मन ममुद्र जगली कौया । मूतरी । महान । गुरु कमठ हूं किया जू महणारभ ।-रजब०, पृ०४ । महताबी-- मशा म्० [फा० १ मोमबत्ती क ाकार की बनी हुई महत्'–वि० [ स०] १ महान् । वृहत् । वटा । २ सबमे बढकर । एक प्रकार की प्रातिशबाजी जो मोट कागज में बाम्द, गयक सर्वश्रेष्ठ । ३ भारी। ४ ऊंचा। उच्च (को०)। ५ तीव्र (को॰) । आदि ममाले नपेटकर बनाई जाती है और जिसके जनने से ६ प्रधान (को०)। बहुत तेज प्रकाश होता है। इसकी रोगनी सफेद, लान, नीती, to-महत्कथ। महज्जन । महच्छक्ति = महान् शक्ति । बडी पीली श्रादि कई प्रकार की होती है। उ० छाय रही मनि शक्ति । उ०—मिल जाना उस महच्छक्ति से । -इत्यलम्, विग्ह सो वे प्रावी तन छाम । पी पाए लम्बि बरि उठी पृ० १०३ । महत्तत्व । महताबी मी बाम । - म० सप्तक, पृ० २२६ । २ किमी बडे महत्'-सज्ञा पुं० १ प्रकृति का पहला विकार महत्तत्व । २ ब्रह्म । प्रामाद के आगे अथवा बाग के बीच मे बना हुअा गोल या ३ राज्य । ४ जल । चौकार ऊंचा चबूतग जिसपर लोग गत के ममय बैठकर चाँदनी का पानद लेते हैं। १३. एक प्रकार का बडा नीवू । महत-सक्षा पुं० [ मै० महत्त्व ] दे० 'महत्व' । उ०-कहै पद्माकर चकोतरा । (पूरब ) झकोर झिल्ली झोरन को मोरन को महत न कोऊ मन ल्यावती।—पद्माकर ( शब्द०)। महतारी - महा सी० [ स० माता ] मां । माता । जननी । उ०- (क) कौशल्या प्रादिक महतारी प्रारति करनि बनाइ ।-मूर महत-वि० [ स० महत् ] अत्यधिक । उ०—मश्रुहि बहुत (गन्द०) । (ख) हरपित महतारी मुनि मनहारी अद्भुत रूप प्रससि के कहत महत हरसाइ।—पोद्दार निहारी। -तुलमी (शब्द०)। पृ०४६३। महतिया-सञ्ज्ञा पुं० [ मं० महत् ] मरदार । उ० पाँच के उपर महतवान-सञ्ज्ञा पु० [ देश० ] करघे मे पीछे की ओर लगी हुई वह पचीम महतिया, इन परपच पमारा ।-घरम०, पृ० २४ । खूटी जिसमे ताने को पीछे की ओर कसकर बीचे रहनेवाली डोरी लपेटकर बरतेले मे बांधी जाती है। पिंडा। मुन्नी । महती-मझा श्री० [ मं०] १ नारद की वीणा का नाम । २ वृहती । हथेला। कटाई। बनभटा। ३ कुश द्वीप की एक नदी का नाम जो पारियाय पर्वत से निकली है। ४ महिमा । महत्व । बडाई । महता'-सना पुं० [ म० महत् ( गुज० महेता, मेहता )] १ गाँव मातु पितु गुरु जाति जान्या भली खोई महति ।-सुर का मुखिया । सरदार । महतो । २ लेखक । मोहरिर । मुशी। (श-द०)। ५ योनि का फैल जाना जो एक रोग माना ३ @ प्रमुख व्यक्ति । प्रधान । उ०—कवन काजो तहाँ कवन जाता है। ६. वह हिचको जिमने गर्भस्थान पोहित हो और महता ।-प्राण०, पृ० ८२ । देह मे कप हो । ७. वैश्यो को एक जाति । '- सञ्ज्ञा स्त्री० [ ० महत्ता ] अभिमान । घमड । उ०- महती द्वादशी-सहा ना० [ म. ] भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की वह महता जहाँ तहाँ प्रभु नाहीं सो द्वंता क्यो मानो । (शब्द०) द्वादशी जो श्रवण नक्षत्र मे पडे । ऐसी द्वादशी को व्रत आदि महता-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १. महत्तत्व । विज्ञान शक्ति । २ करने का विधान है। महाभारत के अनुसार एक नदी का नाम । महतु-सञ्ज्ञा पु० [ स० महत्व ] महिमा | बडाई । महत्व । उ०- महताईल-सञ्ज्ञा मी० [हिं० महत्ता ] मुखियागिरी । प्रधान बनने वृदावन व्रज को महतु का पै वरन्यो जाय । —सूर (शब्द॰) । का कार्य । प्रधानता | उ०-धर्मदाम बहु किए महताई। मवा महतो-मशा पुं० [हिं० महता] १ कुछ गयावाल पडो को एक उपाधि । पांच मुद्रा लेहु भाई ।- कबीर सा०, पृ० ४३६ । २ कहार (पूरब के पटना आदि जिलो मे)। ३ जुलाहो का महताब'-सज्ञा स्त्री॰ [फा० ( तुल० स० महत् + लाभ ?)] १ वह खूटा जो भांज के आगे गडा रहता है और जिसमे भांज की चांदनी। चंद्रिका । उ०-मोद मदमाती मन मोह्न मिल डोरी र्फमाई रहती है । ४ गाँव का प्रमुख व्यक्ति । चौवरी । के काज माजि मणि मदिर मनोज कमी महताब ।पद्माकर महत्कथ-सज्ञा पु० [सं० ] वह जो मीठी मीठी बातें करके बड़े भाद- (शब्द०)। २. एक प्रकार की प्रातिशवाजी । दे० 'महतावी' । मियो को प्रमन्न करता हो । खुशामदी। अभि. ग्र०, उ० महता 1