पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/७६

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२ HO स० महत्तत्व ३८३५ भहनूर महत्तत्व - सज्ञा पु० [सं० महत्तन्ध ) १ माख्य के अनुमार पचीस महर्द-सज्ञ पु० | अ. मह दो ] १ धार्मिक नेता। हादी। तन्वो मे से तीसरा तत्व जो प्रकृति का पहला विकार है और रहनुमा । राह दिखानेवाला । ३ शीया संप्रदाय के वारहवें जिसमे प्रकार की उत्पत्ति होती है। प्रकृति का पहला कार्य इमाम जिनके विषय मे यह माना जाता है कि कयामत के समय या विकार । बुद्धितत्व । विशेष - दे० 'तत्व' और 'प्रकृति' । वे फिर पासमान से पाएंगे को । २ कुछ तात्रिको के अनुसार समार के मात तत्वो मे से मवसे महदूद वि० [अ० ] जिसकी हद बंधो हो । घेरा हुआ। मीमाबद्ध । अधिक मूक्ष्म तत्व । ३ जीवात्मा। परिमित । निश्चित । नियत । महत्तम-वि० [ म० 1 सबसे अधिक वडा या श्रेष्ठ । महदेव सज्ञा [ म० महादेव ] शकर । शिव । दे० 'महादव' । यौ०-महत्तम समापवर्तक - गणित मे वह बटी सख्या जिमका उ०-महदेव मेव तुम चरन रत, पति पवित्र मन माह परि । भाग दा या अधिक मख्यात्रो मे पूरा पूरा किया जा सके । -पृ० ग०, २४ । ४५६ । महत्तर'-वि० [ ] दो पदार्थों मे से बडा या श्रष्ठ । मह्त् म श्रेष्ठ । महदश्वर-मचा पु० [ स० ] मेमूर मे होनेवाली बैलो की एक जाति । उ०-सद्ध नहीं, तुम लोक सद्ध के माधन बने महत्तर । इस जाति के बैल बहुत हृष्ट पुष्ट और बलवान् होते । -ग्राम्या, पृ०५२ । महद्गुण-वि० [ म० ] महान् पुरुप के गुग्गो से युक्त । श्रेष्ठ गुणो महत्तर-सञ्ज्ञा पुं० शद्र । से युक्त [को०)। महत्तरक-मचा पु० [ स० ] दरबारी [को०) । महद्विक-मज्ञा पुं० [ म० ] जैनियों के एक दवता का नाम । महत्ता-सञ्ज्ञा ली० [ स०] १. बडाई। बडप्पन । २ उच्चता । श्रेष्ठता । गुरुता । ३ ऊंचा पद । ४ महत्व | महिमा । उ- महद्वारुणा- सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] महेद्वारुणी नान की लता। नही किमी की रही एक मी जग मे सत्ता । किंतु समय की क्षीण महन-सज्ञा पु० [ स० मथन, प्रा० महण ] दे० 'मथन' । न होती कभी महत्ता ।-प्रेमाजलि, पृ०, ४ । उ०-मयन महन पुर दहन गहन जानि पानि के मवै को महत्पुरुप-सञ्ज्ञा पु० [ ] पुरुपोत्तम । मारु धनुष गढायो है । —तुलमी ( गव्द०)। महत्व-सञ्ज्ञा पु० [सं० महत्त्व ] १. महत का भाव । वडप्पन । महना-क्रि० स० स० मथन, मन्थन ] १ दही या मठा आदि वडाई । गुरुता । २ श्रेष्ठता। उत्तमत्ता। ३ अधिक गावश्यक मथना । महना। विलोना । २ किमी वात या विषय का या परिणामजनक । आवश्यकता से अधिक विवेचन करना। बहुत पिष्टपेपण यौ०-महत्वपूर्ण = जिसका महत्व हो । महत्वशाली । महत्वयुक्त = करना। महत्वपूर्ण । महत्वशाली = महत्वपूर्ण । यौ०-महनामस्यन = व्यर्थ का बहुत अधिक वाद विवाद करना। महत्वाकादा-मझा स्त्री० [ स०महत्त्व + आकाक्षा ] महत्व की महनामथ = हाय तोबा। चीख पुकार | उ०-वस इत्ता इच्छा । श्रेष्ठता का कामना । महत्वशाली बनन की आकाक्षा । सुनता था कि जैम हाथो के नोते उड गए, वह महनामथ मचाई कि तोबा ही भली । -सर कु०, पृ०७ । महत्वाकाक्षी-वि॰ [स० महत्त्वाकाइ क्षिन् ] [वि० सी० महत्वाकाक्षिणी जिमकी बहुत बडी आकाक्षा हो । उच्चाभिलापी। उ०-वहाँ महना -सञ्ज्ञा पु० मथानी । रई पहुंचने को चिर व्यग्र, महत्वाकाक्षी।-रजत०, पृ०७ । महनारभ-सञ्ज्ञा पुं॰ [ हि० महना ] मयन की क्रिया । उ०--नीर महत्वान्वित-वि० । म० महत्त्व + अन्ति ] महत्व मे युक्त-जिसे होइ तर ऊपर मोई । महनारभ ममुंद जम होई । —जायमी ग्र० (गुप्त), पृ० २२५ । महत्ता दा श्रेष्ठता प्राम हो। महत्वपूर्ण । उ —मुख्य विषय के विवरण एव उनकी व्याख्या के लिये योजित अप्रस्तुत वस्तु का महनि-मज्ञा पु० [ स० मन्थन ] १ खलवली । हलचल । २ स्थान गौण ही रहे, वह मुख्य से भी अधिक महत्वान्वित न विलोडन । धर्पण । उ०-महनि मच्चि जब मुरनि जुद्ध अमुराँ हो जाय ।-शैली, पृ० ८३ | मुर जव्वह ।-पृ० रा०, ६।६२ । महद्-4 [ स०] 70 'महत्' । उ०-क्या जगाई है तुम्ही ने, सजन महनिया -मज्ञा पुं० [ हिं० महना (= मथना ) + इया (प्रत्य॰)] झिलमिल दीपमाला ? इस महद् ब्रह्माड भर मे खूब फैला है वह जो मथता हो। मथनेवाला। उजाला ।-क्वासि, पृ० ४१ । महनीय-वि० [ म०] १. पूजन करने योग्य | पूजनीय । मान्य । महदावास-सञ्ज्ञा पुं० [स०] विस्तृत भवन । विशाल लबा चौडा २ गौरवपूर्ण । महिमायुक्त । भवन [को०] । महदाशय-वि [स० ] उच्च विचारवाला । ऊचे मन का। महनु-सज्ञा पु० [सं० मथन ] मथन करनेवाला । विनाशक । उ.-नाम बामदेव दाहिना सदा प्रसंग रग अर्ध अग अगना महदाशा-सज्ञा स्त्री॰ [ ] उच्चाशा । उच्च कामना । पाशा [को०] । अनग को महनु है । - तुलसी (शब्द॰) । महदाश्रय-सञ्चा पु० [ ] महान् से सरक्षण प्राप्त करना । श्रेष्ठ के आश्रय मे रहना [को०] । महनूर - वि० [ फा० माह + नूर | चाँद जैमी चमकवाना । उ०- - -- -- 1 -- स० so