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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/८५

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1 स० महादेश ३६४४ महानाम या पटरानी की एक पदवी जो हिंदू काल मे भारत मे अपने देश को लौट गया या । २ दम अगुल की मुरली। इस प्रचलित थी। वाद्य के देवता ब्रह्मा मान गए हैं। मुक्ति । मोक्ष । ४. आध्यात्मिक आनद की स्थिति । उ०-विना रमना जहं गग महादेश-सज्ञा पुं० [सं० ] दे० 'महाद्वीप' । वतीमो हीन महानद पूरा। -कबीर ण०, भा० १, पृ० ८५ । महादैत्य [-सञ्ज्ञा पु० [ म० ] पुराणानुमार भौत्य मन्वतर के एक दैत्य का नाम । महानदा-गज्ञा स्त्री॰ [ ० महानन्दा ] १ मुग। शराव । २. माघ महाद्रावक-सञ्ज्ञा पु० [ शुक्ला नवमी । इस तिथि को दान, होम और व्रत श्रादि करने J वैद्यक मे एक प्रकार का औपच जो का विधान है। ३ वगाल को एक छोटी नदी का नाम जो मोनमक्खो, रमाजन, ममुद्रफेन, मज्जी श्रादि से बनाया हिमालय के अतगत दार्जिलिंग से निकली है। जाता है। महान्-वि० [ म० नहत् J बहुत वढा । विशात। जमे,-देशसेवा महाद्रुम- सशा पु० [ स०] १ अश्वत्य । पीपल । २ ताह। ३ का कार्य महान है जा मव लोग नहीं कर सरते । महुआ । ४ पुराणानुसार एक वर्ष या दश का नाम । महाद्रोण-सज्ञा पुं० [सं०] १ शिव । २ सुमेरु पर्वत । महान-वि० [सं० महान् ] २० 'महान' । महाद्रोणा-मज्ञा स्त्री॰ [ म० ] द्रोणपुष्पी । महानक-मशा पुं० 1 मप्राचीन काल का एक प्रकार का बाजा जिसपर चमडा मढा होता था। महाद्वार - सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] १ विशाल दरवाजा । बडा फाटक । २. मदिर का प्रधान दरवाजा [को॰] । महानगर-सज्ञा पु० [ स० महा+नगर ] वडा पहर । विशान शहर । महाद्वीप-- सञ्चा पु० [ स० ] १ पुराणो के अनुसार पृथिवी के मात महानग्न-सज्ञा पुं॰ [सं०] १. प्रेमी । प्रेम करनवाना । २ स्री का मुख्य विभाग । २ पृथ्वी का वह वडा भाग जो चारो ओर यार। उपप.त । जार। ३. प्राचीन कान या एक राज- नैसर्गिक सीमायो से घिरा हुया हो, जिममे अनेक देश हो कर्मचारी जो वहुत ऊचे पद पर होता था। और अनेक जातियां बसती हो । जैसे, एशिया, अफ्रीका आदि महानट-सज्ञा पुं॰ [ म० ] शिव । (अाधुनिक भूगोल )। महानता-मज्ञा स्त्री॰ [हिं० महान + ता (प्रत्य॰)] +० 'महत्ता' । महाधन'-वि० [सं०] १ बहुमूल्य । अधिक मूल्य का । उ०—(क) महानद-सज्ञा पुं० [सं०] १ पुराणानुसार एक नद का नाम । वाहु विशाल ललित सायक धनु कर ककन केयूर महाधन ।- उ०-सानुज राम समर जमु पावन । मिलेउ महानद सोन तुलसी (शब्द०)। ख) तह राजत निज बीर शेषनाग ताके सुहावन ।-मानस, ११४०। २ एक तीर्थ का नाम । तर करम बरात महाधन धीर । —सूर (शब्द०)। बहुत धनी । महानदी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ विशाल नदो। जैसे, गगा। २ महाधन-सञ्ज्ञा पु० १. स्वर्ण । सोना। २. धूप । सुगध धूप। ३. एक नदी जो बगाल की खाडी मे गिरती ह (को०)। कृषि । खेती । ४. बहुमूल्य वस्तु (को०)। ५. बहुत बड़ा युद्ध (को०)। महानरक-सशा पुं० [सं० ] २१ नरको मे से एक नरक का नाम [को०] । महाधनुस्-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० महाधनुप् ] शिव [को०] । महानल-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] एक प्रकार का नरसल [को०] । महाधरी-सबा पु० [म• महा+धर] महान् । श्रेष्ठ । महा धुरधर । महानवमी-सशा खो [ म० अाश्विन शुक्ल नवमी। आश्विन के मनक, सनदन, सनातन और सनत्कुमार । उ०-चारि नवरात्र की नवमी। महाघर बारह चेला येककारी हूवा ।-गोरख०, पृ० १३३ । महाधातु-सज्ञा पु० [ मे० ] १ सोना । २ शिव । ३. सुमेरु पर्वत महानस-सज्ञा पुं॰ [ स० ] पाकशाला । रसोईघर । [को०] । महानसावलेही-सज्ञा पुं॰ [सं०] चौका खराव करनेवाला। महाधिकृत-मझा पु० [सं० महा+अधिकृत ] सेनापति। विशेप-चद्रगुप्त मौर्य के समय मे जो लोग ब्राह्मण के चौके को सेनानायक । उ०-सेनापति शब्द के स्थान पर प्राचीन लेखो छूकर अथवा और किसी प्रकार खराब कर देते थे, उनको जीभ मे बलाधिकृत या महाधिकृत शब्द पाए जाते हैं। -पू० म० उखाड ली जाती थी। भा०, पृ० १०३ । महानाटक-सझा पुं० [सं०] नाटक के लक्षणो से युक्त दस अकोवाला महाधिपति-सज्ञा पुं॰ [सं० ] तात्रिको के एक देवता का नाम । नाटक । विशेष—द० 'नाटक'। महाध्वनि-मञ्ज्ञा पु० [सं० ] पुराणानुसार एक दानव का नाम । महानाद-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ हाथी। २ ऊट। ३ सिंह। ४ महाध्वनिक-सञ्ज्ञा पु० [ ] वह जो पुण्यकार्य के लिये हिमालय मेघ । वादल | ५ शख । ६ वडा ढोल । ७ महादेव । शिव । मे गया हो, और वहां मर गया हो। ८. बहुत जोर की आवाज (को०)। ६ कान । श्रोत्र (को॰) । महानद-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० महानन्द ] १ मगध देश का एक प्रतापी महानाभ-सशा पुं० [सं०] १. एक प्रकार का मंत्र जिससे शत्रु के राजा जिसके डर से सिकदर भागे न बढकर पजाब ही से फेके हुए शस्त्र व्यर्थ जाते हैं । उ०-पद्मनाभ अरु महानाभ दोज स०