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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/९७

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महासमगा ३८५६ महाहिक्का O लोक निर्वाचित प्रतिनिधियो की सभा । उ०—इग्लैंड आदि महासुख-मज्ञा पुं॰ [ स०] १ शृगार । सजावट । २ बुद्धदेव का देशों की पार्लियामेंट आदि महामभाओं में भी कई दल एक नाम । ३ मैथुन । सभोग (फो०)। ४. वज्रयानी बौद्धो रहते हैं। -प्रेमपन०, भा॰ २, पृ० २९१ । के अनुसार निर्वाण के तीन अवयनो मे मे एक । उ०- महासमगा-सशा सी॰ [ म• महासमझा ] फंगही या कधी नामक निर्वाण के तीन अवयव ठहराए गए, शून्य, विज्ञान और महा- पोचा। सुख ।-इतिहाग, पृ० ११ । महासमर-भज्ञा पुं० [सं०] महान युद्ध । विश्वयुद्ध । विशेप-प्रज्ञा और उपाय के योग ने गुजग गह्वारा का यह सुन महासमुद्र--सशा पुं० [स०] बहुत वहा समुद्र । महासागर । निर्वाण के मुख के समान माना जाता है। इसमे माधक हा महासर्ग-सज्ञा पुं० [ स० ] जगत् की रचना जो महाप्रलय के उपरात प्रकार विलीन हो जाता है जिस प्रकार नमक पानी मे । फिर से होती है। महासुन्न+--नशा पुं० [ म० महाशून्य ] महाशून्य' | उ.- महासर्ज -मज्ञा पुं० [सं० ] कटहल का वृक्ष । पारब्रह्म महासुन्न मंझारा । कबीर श०, भा० ३, पृ० ७१ । महासह-सज्ञा पुं० [सं०] कुन्जक वृक्ष । कुरकट । वाणपुष्प [को॰] । महासुर-मज्ञा पुं० [ मं० ] एक दानव का नाम । महासहा-सज्ञा सी० [सं०] १ मापपर्णी । २ अम्नान वा कुब्जक महासुरी-मशा ग्पी० [सं०] दुर्गा । वृक्ष को०)। महासूक्ष्मा-राजा जी० [ सं० ] रेन । वालू (को०] । महासांतपन-सञ्ज्ञा पुं० [सं० महासान्तपन ] एक व्रत जिनमें पांच दिन तक क्रम से पचगव्य, छठे दिन कुशनल पीकर सातवें दिन माहासूचि -मज्ञा सी० [ ] युद्ध के समय को एक प्रकार की उपवास किया जाता है। व्यूहरचना। महासाधिविग्रटिफ-सज्ञा पुं० [ स० महासान्धिविग्रहिक ] प्राचीन महासूत--संज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का वाजा काल का वह राजकीय अधिकारी या मत्री जो अन्य देश से सधि जो युद्धक्षेत्र में बजाया जाता था। और झगडे की समस्या सुलझाता था। उ०—महामाधिविग्रहिक । महासेन-सा पुं० [ स०] १ कार्तिकेय । स्वामिाार्तिक । २ साधु । यह वशपरपरागत तुम्हारी ही विद्या है। स्कद०, शिव । ३ बहुत बडा या सबसे प्रधान सेनापति । पृ० १३॥ महासौपिर-सज्ञा ॰ [ म० ] एक प्रकार का राग जिसमे दांतों के महासागर-सक्षा पुं० [ स० ] विशाल समुद्र । जैसे, भारतीय महा ममूढे सड जाते हैं और मुंह मे से बहुत दुर्गघि पाती है । सागर, प्रशात महासागर, प्रादि । विशेप-कहते हैं, जब यह रोग होता है, तब प्रादमी गात महासार-सधा पुं० [सं० ] खदिर वृक्ष का एक भेद (को०] । दिनो के अदर मर जाता है। महासारथि-सज्ञा पुं० [सं० ] दे० 'अरुण' (को०] । महास्कध-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० महासन्ध ] ऊंट । महासाहस-सज्ञा पुं० [ ] अत्यधिक उग्रता, वलात्कारिता, धृष्टता महाकरधा-सज्ञा सी० [ स० महास्कन्धा ] जामुन का वृक्ष । और निर्लजतापूर्ण काम [को०] । महास्थलो-सा मी० [म. ] पृथ्वी (को॰] । महासाहसिक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १. चोर । डाकू। २ वह व्यक्ति महास्नायु-सज्ञा पुं० [ स० वह प्रधान नाडी जिसमे में रक्त बहता जो अत्यत साहसी हो। है। इसे कडरा या अस्थिवचन नादी कहते है। महासिह-सज्ञा पुं० [स०] १ दुर्गादेवी का वाह्न सिंह । महास्पद-वि० [ स०] १ ऊंचे पद पर प्रामीन । उच्चपदस्थ । २ २ शरभ (को०)। शक्तिशाली। वलवान [को०] । महासि-सशास्त्री० [ स० ] वडी तलवार [को०। महास्मृति-सञ्ज्ञा सी० [ ] दुर्गा। महासिद्वि-सज्ञा सी० [ स० ] महान् सिद्धि । एक तात्रिक शक्ति । इनकी संख्या ८ कही गई है। महास्वन-सज्ञा पुं॰ [ मं० ] एक प्रकार का ढोल जिगगे बहुत जोरो की आवाज निकलती हो [को०] । महासिधि-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० महासद्धि ] दे० 'महामिद्धि' । महाहस--सग पु० [ उ०-वगर वोहारति अष्ट महासिधि । द्वारे सथिया पूरति नौ ] १ एक प्रकार का हस । २ निपगु । निधि ।-नंद० ग्र०, पृ० ३३१ । महाहनु-सञ्ज्ञा पुं० [ ] १ शिव । २ तक्षक की जाति का एक प्रकार का साप । ३ एक दानव का नाम । महासिल'-सज्ञा पुं० [अ०] १ आय | भामदनी। २. राजस्व । मालगुजारी। भूमिकर । लगान । महाहविस्-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० महाहविप् ] घृत । घी [को०) । महासिल-वि० लगान या कर प्रादि वसूल करनेवाला । उ०- महाहस्त-सञ्ज्ञा पुं० [ ] शिव। काल महासिल साहु का सिर पर पहुंचा पाय |-पलटू०, महाहास-सञ्ज्ञा पु० [ जोर से ठठाकर हंसना । अट्टहास । भा० १, पृ०२४। महाहि-संशा सज्ञा [ स० ] वासुकि नाग । महासीर-सज्ञा पुं० [ देश० ] एक प्रकार की मछली जो पहाडी नदियो महाहिक्का-मशा स्त्री॰ [सं०] एक प्रकार का हिचकी का रोग मे पाई जाती है और जिसकामास वहुत अच्छा माना जाता है। जिसमे हिचकी आने के समय सारा शरीर कांप उठता है और eo स० म० सक स०