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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/९९

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मही ' O स० माहियल महियला - सक्षा स्त्री॰ [ म० महीतल ] दे० 'मही' । उ०कहि महिपकद-सञ्ज्ञा पु० [ मं० महिपकन्ट ] शुभ्रातु । भैमाकद । महियल बल कितो, एक ददु हरि धारिय । कहि वामिग वल महिपक-मज्ञा पुं॰ [ म० ] एक वणमार जाति का नाम । कित्तौ सु फुनि करि नेन। माग्यि । ० रा०, १1 ७८० । महिषनी-मशा मी [ म० ] दुर्गा । महियाँ पु-अव्य० [ स० मध्य, प्रा० मज्म (= महँ)] मे । उ०—(क) महिपभ्वज-नशा पु० [सं०] १ यमराज । २ जन शास्त्रानुगार जैती लाज गापालहि मेरी। तेती नाहि वधू हो जाकी अवर एक अर्हत का नाम । हरत सवन तन हेरी। पति अति रोप कर मनी महियां भीषम महिपपाल, महिपपालका पु० [सं०] भैमा पालनयाना [को॰] । दई वेद विधि टरी। -सूर ( शन्द०)। (स) सबै मिलि पूजा महिपमत्स्य-मशा पुं० [ स०] एक प्रकार की मछली जी काले रंग हरि की वाया। जो नहि लेत उठाइ गोवधन को बाचत व्रज की होती है। इसके नेहर बडे बडे होते हैं। यह बल वीर्यकारी मयिा। कोमल कर गिरि घरयो घोप पर शरद कमल की और दीपन गुगणयुक्त मानी जाती है। छयिों। मूरदास प्रभु तुमरे दरश आनद होत ब्रज महियाँ ।- सूर (शब्द०)। महिषमर्दिनी-मशा मो० ] म० ] दुर्गा का एक नाम । महिया -सज्ञा पु० [हिं० महना ] ईख के रस का फेन जो उवाल महिपमस्तक-सरा पु० [ ]एर प्रकार जदहन धान । खान पर निकलता है। महिपवल्ली-शा गी० [सं०] छिरेटा। महियाउरी-सज्ञा पुं० [हिं० मही (= महा ) + चाउर (= चावल)] महिपवहन, महिपवाहन-मज्ञा पु० [ ] यमगज। मठे मे पका हुअा चावल । उ० -- माठा महिं मह्यिाउर नावा। महिपाक्ष-उच्चा पुं० [म० ) भैमा गुग्गुन । भीज वरा नैनू जनु खावा । —जायमी (शब्द०)। महिपाक्षक-लज्ञा पुं० [ म० ] गुग्गुल (को॰) । महिर-सञ्चा पु० [सं० मिहिर] १ सूर्य । २ मदार का पीया (को०)। महिपाईनमा पु० [ स० ] स्कद का प नाम। महिरावण- सज्ञा पु० [सं० महि + रावण ] एक राक्षस का नाम । महिपासुर-मज्ञा पु० [सं० ] एक अमुर का नाम जा रभ नामक दैत्य विशेष-कहते हैं, यह रावण का लटका था और पाताल मे का पुन था। रहता था । यह रामचद्र और लक्ष्मण का लका के शिविर से विशप-कहते हैं, इसको प्राकृति भैसे की थी और इने दुर्गाजी उठाकर पाताल ले गया था। रामचद्र और लक्ष्मण को ढूंढते ने मारा था। माकडेय पुराण मे इमको मविम्तर कथा हुए हनुमान जो पाताल गए थे और महिरावण को मारकर निखी है। राम लक्ष्मण को ले पाए थे। यह कथा वाल्मीकि रामायण महिपी-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ भैस । २ गनो, विशेषत पटरानी । और पुराणा मे नही पाई जाती। ३. सरिधी। ४ व्यभिचारिणो स्त्री। ५ पत्नी के व्यभिचार महिला-सक्षा मी० [सं० महिला ] २० 'महिला' | उ०-( क ) से प्राप्त सपत्ति । महिपिक (को०)। ६ एक प्रकार की चिडिया। जमुन उतरि नावह निकट, मिलिय महिल इन रूप ।-पृ० रा०, ७ एक औपधि का नाम । ६१ । १४४ । (ख) मिलि महिल सगुन मरूप । द्रग अप्प यो०-महिपीकद । महिपीपाल = भैस पालनवाला। महिपी- निरखत भूप । -पृ० रा०, ६१ । १४६ । (ग) को महिल को प्रिया । महिपीस्तभ। वर गेह । -पृ० रा०, ६१ । १५४। महिपीकद-मझा पुं० [ म० महिपीकन्द ] एक प्रकार का कद जिसे महिला-नझा मी० [ मृ० । १ स्त्री। २ फूलप्रिय गु को लता । भैसा कद भी कहते हैं। शुभ्रानु । ३. रेणुका नामक गवद्रव्य । ४ कामुक या मदोन्मत्त महिपीप्रिया-सज्ञा पुं० [सं०] शूली नामक घास । स्त्री (को०)। महिपेश-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ महिपामुर । उ०-महामोह महिपेश महिला@-सज्ञा पुं० [अ० महल ] महल । उच्च स्थान । परम विशाला । गम कथा कालिका कराला ।-तुमली ( शन्द०)। पद । उ०-तौ यागी महिला देप महिला नाही लहिला वो २ यमराज । उ०—कह महिपेश वहाँ ले जायो। चित्रगुपित्र महिला |-सुदर० ग्र०, भा० १, पृ० २३५ । वाहि देवानो।-विथाम ( शब्द०)। महिप-सज्ञा पु० [सं० ] [ सी० महिषी ] १ भैसा । २ वह राजा महिपोत्सर्ग-सज्ञा पुं॰ [ सं० ] एक प्रकार का यज । जिमका अभिषेक शाम्पानुसार किया गया हो। ३ एक राक्षस महिष्ट-वि० [ ] बहुत बड़ा। का नाम जिसे पुराणानुमार दुर्गा देवी ने मारा था। । एक वर्णसकर जाति का नाम जो स्मृतियो मे क्षत्रिय पिता और महिसुता-सज्ञा स्त्री० [ स० ] पृथ्वी की पुत्री, मीता (को०] | तीवरी माता मे उत्पन्न कही गई है । ५ एक माम का नाम । महिष-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० महिप ] दे० 'महिप' । ६ पुगणानुसार कुश द्वीप क एक पर्वत का नाम । ७ कुश महिसुर-सज्ञा पुं० [ ] दे० 'महीमुर'। उ०-मुर महिमुर हरिजन द्वीप के एक वर्ष का नाम | ८ भागवत के अनुमार अनुहाद अरु गाई । हमरे कुल इनपर न मुराई ।---मानम, १। १७३ । के पुत्र का नाम । ६ निरक्त के अनुमार देवगण का एक भेद मही-सशा सी० [सं०] १ पृथ्वी। २ मिट्टी । (को०)। १० मत्स्यपुराणानुसार एक प्रकार की अग्नि (को०) । देश। स्थान | ४ नदी। ५ क्षेत्र का प्राधार । ६ सेना। म० स० अवकाश-