पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२६

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किया गया है। अग्रेजी के उन्मृप्ट लेखको से उदाहरणो के उद्धरख लिए की पद्धति अपनाई गई । जॉनसन से भी भागे बढ़कर--१३०० ईस्वी गए है। के पूर्ववर्ती शासर, गोवर आदि कलाकारो के लैपखडो को उसने उद्धृत किया । परतु उद्धरणो की तिथि उन्होंने नहीं दी। व्यावहारिक उनके इस कार्य का अग्रेजी भापी जनता ने वडे हर्ष और उल्लाम के दृष्टि से अमसाध्य, अधिक व्यय-समय-साध्य यह पद्धति--पदकोण से माथ स्वागत किया। इसमे शब्दों को अयं परिभापा के रूप में भी मर्थवान की कामना करनेवाले पाठको के लिये उपयोगी और सुविधा| दिया गया है। नवकोशविद्या के इतिहास में यह उपलब्धि सर्व जनक न हुई । सामान्य पाठकों के लिये यह अति क्लिष्ट भी थी तथा प्रथम श्रर अत्यत महत्वशाल कही गई। इसी समय चालीस विद्वान् | अर्व तक पहुँचने में समय भी बहुत लगता था। फिर भी कभीव्यक्ति एक साथ मिलकर फ्रास में फ्रासस भाषा का कोश बना रहे । कभी अनिश्वप रह ही जाता था। जनता में अधिक उपयोगी और थे। उसफी चर्चा करते हुए जेन्टिलमेन्स मैगजीन' नामक पत्र ।। लोकप्रिय न होने पर भी इस कोश से एक बडा भारी लाभ हुआ। कहा था कि फ्रास के चाल स विद्वान् लगभग आधा भात में जो कार्य न प्राचीन और प्रसिद्ध लेखको के अत्यधिक उद्धरणो का इसमे सकलन हो कर सके उसे अकेले जॉनसन ने सात वर्षों में कर दिखाया। अनेक पया और वे स्थायी रूप में सुरक्षित भी हो गए। जनता ने उस कोश को राष्ट्र और भाषा दोनो के सत्कर्ष की दृष्टि से अत्यंत महत्व को बताया। अग्रेजी शब्दो के उच्चारण, प्राक्सफोर्ड डिक्शनरी योजना और निर्माण ‘भाषाशुद्धता की रक्षा अरि प्रयोग का स्थिरीकरण करने में इस भश की बहुत दडी देन मानी जाती है। पर इसमें दिए गए १६वीं मातादी के मध्य लदन की फिलालाजिकल सोसाइटी में साहित्यिक उद्धरण---ग्रंथो से संदर्भ निर्दपूर्बक न लेकर-कोशकार बपठित नि बेवों द्वारा प्रावि पप डा० आर० स० ट्रैच में अग्रेजी ने अपनी स्मृति से दे दिए हैं। फलत अनेक स्थलों में उद्धरण की के तत्कालीन कोशो की कुछ कमियो की अोर विद्वानो को ध्यान अगदि इस कश की एक वृटि वन गई। परतु त्वरित गति से अाफूष्ट किया। उन्होंने यह भी कहा कि नायनवेली, जानसन स्वल्प समय में कार्य समाप्त करने की आकाक्षा के कारण त्रुटि रह तशा उनके उत्तराधिकारियो के को महत्वपूर्ण हैं। पर उन कोणो गई। पुस्तक एकत्र करना, उद्धरण प्रतिलिपि करना और उनका द्वारा शब्दों के पारिवारिक-ऐतिहासिव-विकास, अर्थ और तात्पर्य सयोजन करना, आदि कार्य इतना श्रम-समय-साध्य था जो सात वर्षी। में परिवर्तन एव विकास तथा रूपविचार के विषय में विशेष ध्यान नहीं में एक व्यक्ति के द्वारा सर्वथा अनुभव था। दिया गया । शब्दो और अर्थों के प्रयोग एव ऐतिहासिक विकास की दिशा इसके बाद १८वीं रात के अंत तक अग्रेजी में अनेक कोण बने। का कोण द्वारा पूर्ण परिचय मिलना चाहिए। सक्षेप मे भाषाविज्ञान विलियम कनक, विलियम पैरी, टामस शैरिडन अरि जान वाकर शन कर और साहित्य के वैवासिक प्रयोगक्रम के साथ अथ विकास (सिमेटिक र साहित्य के वेव सिंक प्रयोग ने उच्चारण आदि की समस्या को सुलझाने का प्रयत्न किया । इन चञ्चज ) अरि उत्पत्तिमून के विक चैंजेज ) और उत्तिमूनक विकास की--कोमा में वैज्ञानिक और कोणो को 'जॉनसन' के कोश का सक्षिप्त या लघु संस्करण कहा गया । स.हित्यिक---उभयविध सगति और पूर्णता अत्यंत अपेक्षित है। इन है। उच्चारण के ठीक ठीक स्वरूप बताने का कार्य समस्यात्मक था। तुटियो के साथ साथ पूर्वोक्त कोशों में विरल और अप्रचलित शब्दो उसका पूर्णत समाधान करने की चेष्टा जॉनसन' या बाद के फौपाकारों धान करने की चेष्टा जॉनसन' या ना ताळ झा संकलन भी अपूर्ण था। ने की। जॉन वाकर ने उक्त दिशा में विशेष प्रयत्न किया । इन उन्होंने यह भी निर्देश किया कि कोशनिर्माण के वैज्ञानिक लक्ष्य कारणो से 'जॉनसन' के कोश की कुछ आलोचना भी होती रही । पर की पति के लिये भाषा के प्राचीन साहित्य और वैज्ञानिक दृष्टिप १६ वी माती के पूवधि से उसका समान बढ़ गया, उसकी महत्ता झा सम्यगविनियोग र प्रयोग किए बिना कोण की मनमा स्वीकृत हो गई। इसमें नए शब्दों, अर्थों, उद्धरणों आदि के परिवर्घन- पूर्णता संभव नहीं होगी। यह भी सकेत किया कि इस कार्य की कारी परिशिप्टो कों, अनेक विद्वानो की सहायता से जोडकर, उक्त कोश के विशालता को देखते हुए जो अध्ययन, अनुशीलन और श्रम अपेक्षित सशोधित और सर्वाधित संस्करण प्रकाशित होते रहे । १८१८६० मे ऐसी है उसका संपादन एक दो व्यक्तियों द्वारा समव भी नही है। अनेक ही एक सस्करण प्रकाशित हुआ जो अब तक मान्य बना हुआ है। भाषाविज्ञ, भाषावैज्ञानिक और साहित्य के मर्मज्ञ विद्वानों के समिलित प्रयास से ही अभीप्सित कोश का निर्माण हो सकता है । | इग्लिस्तानितों के अग्रेजी प्रयोगों से अमेरिकनो की अग्रेजी को स्वतन्न देखकर वेबस्टर ने अमेरिकी अंग्रेजी का एक महत्वपूर्ण कोश लंदन फी फ़िलालाजिकल सोसाइटी के समस्त्र उन्होंने अंग्रेजी का बनाया। परतु उनके कोश की बहुत सी व्युत्पत्तियाँ ऐतिहासिक प्रमाणों विमल और पूर्ण कोश बनाने का प्रस्ताव उपस्थित किया। उन्होंने पर आधारित न होकर निज की स्वतन्न कल्पना से आविष्कृत थी। सुझाव दिया कि वेली, जॉनसन, रिचर्डसन, वेस्टर आदि के बाद के संस्करणों में भाषाविज्ञो ने उनका संशोधन कर दिया । अाजकोशों को पूर्ण करने के लिये निर्धारित की पद्धति के आधार पर भी वेब्स्टर के इस कोश का दो जिल्दों में 'इन्टरनैशनल' सस्करण सामग्री का संकलन किया जाय, उनके परिशिष्ट बनाए जायें । शब्दप्रयोग, प्रकाशित होता है और कुछ दृष्टियों से इसका आज भी महत्व बना रूपविकास, अयं विकास, प्रयोगमूलचः नाना अर्थच्छायामों का हुयी है । इस यग का द्रुमरा कोशकार रिचर्डसन था । उसके कोश शब्दार्य निर्देश के संदर्भ में, सोदाहरण उपन्यास करना चाहिए । शब्द में उद्धरणो के द्वारा शब्दार्थबोध की यक्ति महत्वपूर्ण मानी गई और और उससे द्योतित अर्थ के विकास का कोण में पूर्ण इतिहास दिखाना अर्थबोधक परिभाषालों को हटाकर केवल उद्धर से अर्थ-प्रत्यायन अहिए । उक्त संस्था द्वारा संकलित सामग्री के आधार पर और