पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२९

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१६ कहा जा सकता है। इनके अतिरिक्त भी अल्प महत्व के अनेक सस्कृत- के उल्लेख के विना समस्त विवरण अपूर्ण ही रह जायगा। ओटो अग्रेजी-काश वनते रहे जिनमे कुछ प्रसिद्ध कोशो के नाम अागे दिए जा वोयल तथा 'रुडोल्फ राथ' के संयुक्त सपादकत्व में सस्कृत रहे हैं--(१) संस्कृत अग्रेजी कोश (संपादक-डब्ल्यू० यीट्स-~-१८४६) को जर्मनभाषी यह कोश-सस्कृत बँ'तेरबुख-१८५८ ई० से प्रारंभ ( २ ) मस्कृत अग्रेजी डिक्शनरी ( लक्ष्मण रामचद्र वैद्य--१८८६ ), होकर १८७५ ई० मे पूर्ण हुा । यह कोश भारती विद्या का महाज्ञान(३) सस्कृत डिक्शनरी ( थियोडोर बेन्फे---१८६६), (४) ग्रासमैन कोश है। अत्यत विशाल श्रीर मात जिल्दो के इस कोश में प्रभूत लेक्सिकन टु दि ऋग्वेद और (५) प्रैक्टिकल संस्कृत डिक्शनरी सामग्री भरी पड़ी है। इसका एक सक्षिप्त सस्करण भी १८७६ से लेकर विद ट्रान्जिटरेशन, एक्सेंचुएशन ऐंड एटिमालाजिकल एनालसिस | १८८६ ई० तक प्रकाशित हो रहा। वह भी सात जिल्दो में है। यू, अाउट---मैक्डोनल्ड, १९२४ ई० ।। पर उसकी पृष्ठसंख्या--ग्राधी से भी कम है । सेंट पीटरस्बर्ग से प्रकाशित यह सस्कृत-जर्मन-कोश व्यावहारिक उपयोगिता से पूर्ण पूना में केंद्रीय सरकार द्वारा प्रदत्त प्रार्थिक अनुदान से डा० कने । होकर भी अत्यत प्रामाणिक है । इसके पहले अनेक छोटे बड़े सस्कृत के निर्देशन में संस्कृत का एक विशाल कोश बन रहा है। उसकी । कोश जर्मन, फ्रांसीसी, इताली आदि भाषा मे बन चुके थे । आधारभूत सामग्री का भी स्वतत्र रीति से वैज्ञानिक और अालोचनात्मक १८४६ ई० मे थिय'डोर वेन्फ' को कोश बना था जिसका अंग्रेजी पद्धति पर अालोचन और पाठनिधरण किया जा रहा है । उक्त कोश पातर १८५६ मै मैक्सम्युलर के संपादकत्व में प्रकाशित हुआ। के लिये शब्दो का जो प्रामाणिक सकलन हो रहा है वह प्रायः सर्वाशित । यथासभव आलोचनात्मक ढंग से संपादित या संकलित हैं। डा० ‘कने' इनमें से अनेक कोश ऐसे थे जो भारत मे और अनेक विदेशों में मन्त के साथ साथ आधुनिक भाषाविज्ञान के बड़े विद्वान् हैं । इस कोश प्रकाशित हुए। के शव्दसकलन और अर्थनिर्धारण मे तत्तत विपयो के सकृतज्ञ, प्रौढ | हिंदुस्तानो, हिंदी, उर्दू के कोश पडितो की पूरी सहायता लेने का प्रयत्न हो रहा है। सपादनविज्ञान की पद्धति पर सपादित प्रामाणिक और आलोचित माघारग्रंथो से ही यथा- हिंदुस्तानी, हिंदी और उर्दू के अघुिनिक कोण का निर्माण कार्य सभव घाब्दसकलन की चेष्टा हो रही है। भारती विद्या (इहोलाजी) में भी पाश्चात्य विद्वानों ने व्यापक पैमाने पर किया। इन भाषामो एवं अबतक जो भी महत्वपूर्ण अनुशीलन विश्व की किसी भाषा में हुआ है अन्य भारतीय भाषाओं के कोशो का निर्माण जिन प्रेरणा से पापचात्य उसके सर्वाशर्त उपयोग और विनियोग का प्रयास हो रहा है । १७-१८ विद् नो ने किया उनमें दो बातें कदाचित सर्वप्रमख थी। वर्षों से यह प्रयास चल रहा है जिसमें काफी समय, श्रम शौर धनराशि व्यय हो रही है तथा विपन्न विद्वज्जनो का अधिक से अधिक सहयोग (क) धर्म का प्रचार करनेवाले क्षेप्ट मतावलंबी घर्मोपदेशक चाहते पाने की चेष्टा की जा रही है। भाषाविज्ञान की न्यूनतम उपलब्धियों थे कि यहाँ की जनता में घुलमिलकर उनकी भाषा बोल और समझकर का सहारा लेकर व्युत्पत्तिनिर्धारणादि की व्यवस्था हो रही है। अत उनकी दुर्बलता को समझा जाय और तदनुरूप उन्हीं की बोली में आशा है, यह को निश्चय ही उच्चतर स्तर का होगा। अग्रेजी, इस ढंग से प्रचार किया जाय जिसमें सामाजिक रूढियो और बधनो से जर्मन, फोसीसी, रूसी प्रादि मापायों के समस्त सपन्न संस्कृत कोशो पीडित वर्ग, इसाई धर्म के लाभो के लालच में पड़कर अपना धर्मकी विशाल सामग्र का परीक्षापूर्वक ग्रहण हो रहा है । अतः निश्चय परिवर्तन करे । फलत यह आवश्यक था कि हिदा या हिंदुस्ताना, ६ ही उक्त कोश, अबतक के समस्त सस्कृत-अग्रेजी-कोणों में श्रेष्ठतम तथा बैंगला, तमिल, मराठी, मलयालम्, कन्नड, तेल गृ, उडिया, होगा। क्यों ही अच्छा होता यदि उक्त संस्कृत कोश के हिंदी तथा । असमिया आदि भापाभार्पियो के बीच घोप्टीय मत के प्रचारक, उनकी अन्य सभी प्राघुनिक भारतीय भाषाओं में भी संस्करण छापे जाते, भाषाएँ सीखें और उनमे धडल्ले से व्याख्यान दे सकें तथा ग्रंथरचना कर सके। परिणामत इन भाषाम्रों के अनेक छोटे मोटे व्याकरण और मोनियर विलियम्स के बाद अनेक संस्कृत अग्रेजी कोश वने। कोशों की विदेशी माध्यम से रचना हुई। परतु विलमन के नवीन सम्करण अौर विलियम्स के कोश के सामने उनका विशेष प्रचार नही हो पाया। विलसन के कोश का (ख) दूसरा प्रमुख वर्ग था शासको का 1 शासनकार्य की सुविधा एक संक्षिप्त सस्करण भी १८७० ई० मे रामजसन ने संपादित । प्रौर प्रौढ़ता के लिये, शासित की भावना, संस्कृति, धार्मिक विचार, किया जिसका काफी प्रचार हुआ। मेक्डॉनल की प्रैक्टिकल सस्कृत भाषा और उनके धर्मशास्त्र तथा साहित्य की जानकारी भी अनिवार्य इगलिश-डिक्शनरी अवश्य ही अत्यंत महत्वपूर्ण कोश है। इसमें थी । एतदर्थ भी इन भाषाप्रो के कोण बने । भरत प्राब्दो के अर्थ का कालावधिक परिचय भी दिया गया है, शब्द के इन दोनों के अतिरिक्त भारती विद्या भारतीय दर्शन, वैदिक तथा अधिक प्रचलित और स्वल्प प्रचलित अर्थों को सूचित करने का भी वैदिकेतर सस्कृत साहित्य के विद्याप्रेमी और भाषावैज्ञानिक प्राय प्रयास हुपा है । 'बैन्के' की मी 'सस्कृत-इगलिश-डिक्शनरी' प्रकाशित नि स्वार्थ भाव से संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं के अनुशीलन में हुई । और भी अनेक छोटे बड़े सस्त कोश निमित हुए। परत विलसन प्रवृत्त हुए तथा तत्तत् विपयों के ग्रथों की रचना की । इसी संदर्म में विलियम्स और अप्टेि---इनकी संस्कृत इगलिश कोणत्रयी को सर्वाधिक । महत्वपूर्ण कोशप्रय भी बने । मस्कृतकोशों की चर्चा की जा चुकी है । मफनता एवं प्रसिद्धि मिली। ‘ए डिक्शनरी अन् मोहमहन लॉ ऐंड बगाल रेवेन्यू दम्' म्' (४ भाग ई० १७९५ ), 'ए ग्लासरी व् इडियन टम्स' (६ भाग-- यही राय मोर बोच लिंक द्वारा प्रकाशित सस्कृत-जर्मन-को १७६७ ई० ), वगाली सिविल सर्विस टस्' (एच्. एम् इलियट--