पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४९

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३१-१२-६५, १ वर्ष ३ मास, १४ श्री जितेंद्रनाथ मिश्र, लेखक, अपने इसे उत्तरदायित्व का वह्न । एक साथ बैठकर सभी के अतिथि १० १ ०-६४-३१-१२ ६५ १ वर्ष ३ मास, २५ भं राम मेहरोत्रा,लेखक । भवन के वक्ष में कोपा के वरिष्ठ कार्यकर्ताअो के साथ हम सबने एक ११-१०-६४-३०-६-६५, १वर्षे, १६ रामदयाल कश्यप, लेखक, ५-१-६५: । एक शब्द पर चिंतन एव मनन तो किया ही है, अनेक उलभनों को ३१-१२-६५,१ वर्ष, १७ लज्जाशकर लाल,लेखक १६-३-६५-३१ १२-६५- यथाशक्ति सुलझाते भी रहे हैं । इम काय के लिये हम सबने स'मा की ६।।मास, १८ श्रीमनोरजन ज्योतिषी, लेखक, २३-४-६५-२०-७-६५, । सेवा में अपने को अर्पित कर चल भर कार्य पूरा करने का यत्न किया ३ मास, १६ श्रीगुववलाल श्रीवास्तव, लेखक, १०-५-६५-३१-१२-६५, है । इस प्रसग में सपादक मंडल में सरकार के शिक्षा मंत्रालय के ७। मास, २० श्रीवशिष्टनारायण त्रिपाठी, लेखक, १-६-६५-३०-६-६५, प्रतिनिधि डा० रामधन शर्मा का मामिक सहयोग एव सुझाव वहत १ मसि, २३ भीउदयशकर दुबे, लेखक, २०-७-६५-३१,१२-६५, ५। अधिक सहायक हुआ है । इस अवसर पर सभा के भूतपूर्व सभामास, २४ श्रीकिशोरीरमण मिश्र, लेखक, १-६-६५-३१-१२-६५, ७ पति स्वर्गीय आचार्य नरेंद्र देव, डा० अमरनाथ झा एव प० गाविद मास, ३५ श्री अफराम मिश्र लेखक, १८-६-६५ ३१-१२ ६५,३ ।मास वल्लभ पंत की स्मृति भी जाग्रत हो उठती है । जिन्होंने शब्दसागर २६ श्री श्यामाकांत पाठक, लेखक, १८ ६-६५-३१-१२-६५, ३'। मास, के नवीन सस्करण के प्रति उनकी चिंता देखी है वे ही अनुमान लगा २७ श्रीसदानंद शास्त्री, लेखक, १८ ६ ६५-३१-१२-६५, ३।। मामे, २८ सकते हैं कि वे आज इस कार्य से कितने तुष्ट होते । सभा के सरक्षक श्रीबद्रीनारायण उपाध्याय, लेखक, ११-११-६५-३१-१२-६५, २ मास ।। तथा राप्टूपति स्वर्गीय डा० राजेंद्रप्रसाद इस कार्य के लिये कितने चपरासी -स्व राम सुदर १-११-५९ से, रघुनाथ ८-८-६४-३१ १२ । व्यग्र थे, यह ऊपर दिए गए उसके भापण के अंश से सहज ही जाना जा ६५, १।। वर्ष । बुद्ध राम (लगभग २ मास ) । ३१-१२-१९६५ को सकता है उनका सभी पर ऋण हैं और वह ऋण हिदी के हित मे विभागसमाप्ति । किए गए ऐसे कार्यों द्वारा ही चुकाया जा सकता है । । यद्यपि इन वैतनिक कार्यकर्तामो की योग्यता और क्षमता के । सभा के स रक्षक हो० सपूर्णानद जी उसके प्रत्येक सुदर कार्य के अनुसार उन्हें वृत्ति नहीं दी जा सकी है तो भी अपनी क्षमता भर मूल मे आत्मा की भाँति है, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त के रने का साहस

  • उन्होंने अपने घर की तरह जिस भाँति दत्तचित्त होकर कार्य किया हैं।

नही है । हमारे वर्तमान सभापति प० कमलापति त्रिपाठी या उसके प्रति कृतज्ञता न प्रकाश करना कृतघ्नता होगी । हमे इस बात का । स्नेह और उद्बोधन ही सभा की अज की गति के मूल में है । यद्यपि देश और समाज के कार्य में वे व्यस्त रहते हैं, तो भी सभा फी चिता खेद है कि हम अपनी साधनहीनतावश हिंदी की सेवा सभा के माध्यम उन्हें बनी रहती है, और राजनीतिक हानि उठाकर भी सभा के से उनसे आगे ले सकने की स्थिति में नहीं हैं । तो भी सभा के प्रत्येक पदाधिकारी की मगलकामना उनके साथ है। प्रत्येक कार्य में रुचि लेते हैं । इस कोश के कार्य में उन्होंने जो रुचि ली। और जो योग दिया है उसकी प्रेरणा के परिणामस्वरूप ही इस कार्य का सपन्न होना संभव हुआ है। सवत् २०१६ मे ३२,५००) के प्राप्त अनुदान में से जो व्यय किया गया उसके उपरात मी २०,६४३) ३३ और स० २०२० भारत के प्रधान मन्त्री माननीय श्री लालबहादुर जी शास्त्री को सभा में उसी में से 59य करने के उपरात १६,१२६) ८६ पैसे सरकारी से सवध वडा पुराना है । वे सदैव अपनी व्यस्तता में भी सभा को, उन्नत अनुदान का घचा रहा । सवत् २०२१ में हिंदी माव्दसागर पर सभी ने ' करने में योगदान करते रहते हैं । इस सभा में वे सरक्षक हैं, और जो व्यय किया वह अनुदान से प्राप्त रुपये के अतिरिक्त उन्होंने शब्दसागर के प्रथम खंड का उद्घटन करने की स्वीकृति ५ ६१ } ७७ था । १५ दिसंबर सन् १९६५ तक सभी अपने पास से देकर हमें जो प्रोत्साहन दिया हैं, सभ। निश्चय ही उसके प्रति हदय ६.६६५ व्यय कर चुकी थी और इसके अतिरिक्त ३१ दिसबर से कृतज्ञ हैं और उसके कार्यकर्ता और अधिक उत्साह से हिंदी की तक १,२८, कृपय। गौर व्यय होने का अनुमान है । इधर सेवा करने के लिये कृतसंकल्प । सरकार ने स्वीकृत अनुदान शेष ३२,५००) में से १० ०००) भेजा हैं । इस प्रकार सरकार से स्वीकृत ६५,०००) के इस अनुदान से शब्दसागर भारत सरकार के भूतपूर्व शिक्षामन्नी श्री के० एल० श्रीमाली For कार्य समाप्त हो जायगा । केवल 'स' और 'ह' अक्षरी और वर्तमान उपशिक्षामक्ष श्री भक्तदर्शन जी ने समय समय पर इस की प्रतिलिपि माने शेष रह जायगी । कार्य में जो रुचि दिखाई है, और सभा की जैसी सहायता की है उसके प्रति सभा और उसके कार्यकर्ता हृदय से कृतक्ष हैं । इस अवसर पर सभा के भूतपूर्व प्रधान मन्त्री श्री डा० राजबली पांडेय और डा० जगन्नाथप्रसाद शर्मा को भी धन्यवाद देते हैं, हो सकता है इस कार्य के सपन्न होने में कभी कभी कुछ अप्रिय क्योंकि उनका प्रयत्न मी स्मरणीय है । कोश कार्य को पेयलोचन तथा भी हुआ हो। इस अप्रियता का कारण स्वप्न मे भी किसी को कष्ट निरीक्षण ययावश्यकता घरावर श्रीकृष्णदेवप्रेमाद गोह, प० शिवप्रसाद पहुंचाना नहीं रहा है, अपितु कार्य की त्वरित गति और निश्चित अवधि धि 'रुद्रा', ३० भोलाशकर व्यास और मैं करता रहा हूँ, और पडित तक समाप्ति की भावना ही हमारे प्रत्येक काय के मूल में थी । फिर भी करणापति त्रिपाठी संयोजक के रूप में ‘र गुरुतापूर्वक यदि इस सबंध में कही कुछ अप्रिम हुमा तो उसका उत्तरदायित्व सहज ३०,६७१)६१