पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१०२

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उपस्कर उँपस्नैह उपस्कर- संज्ञा पुं० [सं०] १ हिंसा करना। चोट पहुंचाना । २ दाल उपस्थान--संज्ञा पुं॰ [सं॰] [वि० उपस्थानीय, उपस्थित] १ निकट या तरकारी में डालने का मसाला । ३ घर का सामान या आना । सामने आना। २. अभ्यर्थना या पूजा के लिये निकट सजावट की सामग्री । ४ वस्त्राभूपणादि । ५ जीवन निर्वाह आना । ३ खड़े होकर स्तुति करना। खड़े होकर पूजा करना। के लिये आवश्यक पदार्थ । रसद या सामान (को०) । उ०६ दिनकर को अयं मत्र पढि उपस्यान पुनि कीन्हें । उपस्करण- सज्ञा पुं॰ [सं०] १ सजाना । शृ गार करना। २. निदा । गायत्री को जपन लगे पुनि ब्रह्म वीज मन दीन्हें ।- ३ विकार। ४ ढेर। समूह । ५. वध करना । अाधात रघुराज (शब्द॰) । पहुचाना [को॰] । विशेष—इस प्रकार का विधान प्राय सूर्य ही की पूजा में है। उपस्कार- सज्ञा पुं० [सं०] १ पूरक । किसी वस्तु मे कुछ और जोड ४. पूजी का स्थान । कोई पवित्र स्थान । ५ स मा । समाज। देना । २ अध्याहार । व्यजना । ३ शृ गार करना। सजावट। ६ प्रस्तुत राज्यकर इकट्ठा करना और पुराना बाकी वसूल ४ अनूपण । ५ ग्राघात । प्रहार । ३ संग्रह । समूह । ढेर। करना । ७ अखाडा । मलशाला (को०) । ६ स्मृति । ७ उपस्कर [को०] । याददाश्त (को०)। ६ प्राप्ति (को॰) । १० स्वीकृति । समझौता उपस्कृत--वि० [सं०] १ प्रस्तुत । तैयार । २ निदित । लाछित । करना (प्रेमी की भांति) (को॰) । | ३ मारा हुआ । हत । ४ एकत्र किया हुआ । सगृहीत । उपस्थानशाला--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] वौद्ध धर्मानुसार प्रार्थना भवन । १ ५ सृज्जित 1 शृगारित । ६ अध्याहृत । पूरित (को॰] । विहार का प्रार्थनाकक्ष (को॰] । उपस्कृति - संज्ञा स्त्री० [सं०] १ पूति । २ सजावट [को०] । उपस्थापक संज्ञा पुं॰ [स०] १ वह जो विषय को विचार और उपस्तम---सज्ञा पुं० [स० उपस्तम्भ] सहारा। अवलबन । २ स्वीकृति के लिये किसो समा में उपस्थित करता हो । २ । जीवन का अाश्रये ( भोजन, निद्रा अादि ) ३ प्रोत्साहने ।। स्मृति को जगानेवाला । ३ व्याख्याता । पढानेवाला। सिखाने- उत्साह बढ़ाना ४ अप्रिय ! अाधार [को०] । वाला को०] । उपस्थापन--सज्ञा पुं० [सं०] पास रखना । २ तैयार करना । प्रस्तुत उपस्तभन—-सज्ञा पुं० [सं० उपस्तम्भन] दे॰ 'उपस्तम' (को०] । | करना। ३ स्मृति का जागरण । याद अाना । ४ सेवा' [को०)। उपस्तब्ध-वि० [सं०] १ जिसे सहारा दिया गया हो । आश्रित ।। उपस्थापना–संज्ञा स्त्री॰ [सं०] दीक्षित करना । (जैन मत के २ रोका हुआ (को॰] । क्षपणक के रूप मे) [को॰] । उपस्तरण--सज्ञा पुं० [स०] १ बिखेरना । छितराना । २ बिस्तर । उपस्थायक--सज्ञा पुं॰ [सं०] १ दास । नौकर । २ बौद्ध धर्म को ३. फैली हुई वस्तु । ४ (यज्ञ की अग्नि के चारो ओर) घास । फैलाना [को॰] । माननेवाला ।। उपस्थायी--वि० [सं० उपस्यायिन्] १ पास खड़ा हुआ।। २ प्रतीक्षा उपस्तीर्ण–वि० [सं०] फैला हुआ । बिखरा हुया (को०] । | करनेवाला । ३ पास आनेवाला [को०] । उपस्त्री-सज्ञा स्त्री० [सं०] उपपत्नी। रखेली। त्रिना। व्याह के पत्नी के उपस्थित-वि० [स०] १ समीप वैठा हुआ। सामने यी पास आया समान रख ली जानेवाली स्त्री को ? हुआ। । विद्यमान । मौजूद । हाजिर । उपस्थ’--संज्ञा पुं॰ [स०] १ नीचे या मध्य का भाग। २ पेड । ३ क्रि० प्र०—करना=(१) हाजिर करना । सामने लाना । (२) पेश पुरुपचिह्न । लिंग । ३. स्त्रीचिह्न। भग । करना। दायर करना, जैसे,—अभियोग उपस्थित करना। यौं०--उपस्थेंद्रिय । होना = (१) अ पडना । जैसे,—बडी सकट उपस्थित हुमा । ५ गोद । क्रोड । (२) ध्यान में लाया हुआ। स्मरण किया हुआ । याद। उपस्थ-वि• निकट वैठा हुआ । जैसे-हमे वह सूत्र उपस्थित नहीं हैं। उपस्थदल—सज्ञा पुं० [सं०] पीपल का वृक्ष (को०] । उपस्थित–संज्ञा पु० १. द्वारपाल । दरबान । २ सेवा । ३ प्रार्थना । विशेप-इस वृक्ष का नाम 'उपस्यदल' इसलिये पड़। क्योकि इसके । ४ असनविशेप (को॰) । | पत्ते स्त्री जाननेंद्विय के प्रकार के होते हैं । | उपस्थिता--सुज्ञा पुं० [सं०] एक वर्णवृत का नाम। इस वृत्त के उपस्थनिग्न--संज्ञा पुं० [सं०] इद्रि यदमन । कामवासना पर अधिकार प्रत्येक चरण में एक तगण, जो जगण और अंत में एक गुरु रखना [को०)। होता है । त, ज, ज, ग=, SI, , s। उ०-तीजी उपस्थपत्र--सज्ञा पुं॰ [सं०] १० 'उपस्यदल' [को॰] । जग पावन कस को । द मुक्ति पठावत धाम को । वाकी लखि उपस्थल-सुज्ञा पु० [सं०] १ नितत्र । चूतड । २ कूल्हा । ३ पेड । रानि उपस्थिता । दै ज्ञान की सुख साजिता ।--छद० उपस्थली--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ कूल्हा । कटि । २. नितव ३ पेहे । पृ० १५१ । उपस्थाता-संज्ञा पुं० [स० उपस्थातृ] १ अनुचर । दास । सेवक । उपस्थिति सच्चा स्त्री० [सं०] १.विद्यमानता । मौजूदगो । हाजिरी । २ यज्ञ पुरोहित । ऋत्विक् [को॰] । २ प्राप्ति । ३. १ति ॥४, स्मृति । स्मरण शक्ति । सेवा । ६ उपस्थाता-वि० १ अाश्रित । उपनत । समय का पालन करने लन करने- समीपता । निकटता (को०] । वाला । ठीक समय पर अानेवाला (को॰] । उपस्नेह—सा पुं० [सं०] गीला करना । अाई करना [को! ,