पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१०४

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६१६ सपहूत अपातो हैं [को॰] । उपहृत-वि० [सं०] १ भेंट किया हुआ । २ पाम लाया हुआ । ३ २ यज्ञ में वेद पाठ । ३ यज्ञ के पतु का एक संस्कार। ४ | परसा हुआ। ४ वलि दिया है। (को०] । कार्य प्रारंभ करने के लिये निमंत्रण या बुतावा (को॰) । उपहर--संज्ञा पुं० [सं०] १ एकात या निर्जन स्यान । २ पास 1 उपाकर्म-संज्ञा पुं० [सं०] संस्कारपूर्व 6 वेद का अBण । वेदपाठ ऋतिक । ३ समीपता । ४ सोमपात्र का टेढा प्रकार। का शरम ।। | ५ रथ [को०] । विशेष--यह वैदिक कमें समस्त प्रोधियो के जुर्म जाने पर व उपह्वान संज्ञा पुं० [सं०] १ पुकारना । २ निमत्रित करना । ३ मास की पूर्णिमा को, या श्रवण नक्षत्र-युक्त दिन को या इस्तनाम लेकर पुकारना । अनिमपित करना [को०] । नक्षत्र-युक्त पंचमी को गृह्यमुत्र में कही विधि में किया जाना उपाग–सद्मा पुं० [स ० उपाङ्ग १ अग का भाग । अवयव । २ वह है। इसगं का उलटा ।। वस्तु जिससे किसी वस्तु के अगों की पूर्ति हो । जैसे, वेद के २ वेदाध्ययन पार भ करने के पहने किया जाने वाला वैदिक कर्म उपाग, जो चार हैं-पुरणि, न्याय, मीमांसा और घमंशाम्य । उपाकृत'–वि० [सं०] १ पास लाया प्रा । २ बुनाया हुप्रा । प्रप ३ तिलक । टीका । ४ प्राचीन काल का एक बाज जो चमड़। मत्रो के उच्चारण द्वारा निमंत्रित । ३ प में इत (दलि मकर बनाया जाता था । पशु) । ४ अमेगजनक । ५ मा द्वारा पवित्र कि उपागगीत-सज्ञा पुं० [सं० उपाइगीत एक प्रकार का गीत [को०] । हुँमा १६ प्रस्तुत या तैयार किया प्रा [वै] । उपागललिता- सच्चा स्त्री० [सं० उपाइललिता एक दैवी उपाकृत–संग पु० [सं०] १ यज्ञ का उपिनु, जो विहिन प्रार्थना जिनका व्रत अश्विन मास की शुक्न पचमी को रखा जाता | जाट के ममय मारा जाता है । २ दुर्दैव । अमगत । ३ आरभ । ८ यज्ञ का विति स स हरि ५ निमश्रण । उपाजन--सज्ञा पुं० [सं० उपाञ्जन] १ गोबर से धरती को लीपना । अाह्वान । बुवा (को०] । ३ चूने से सफेदो करना । उपाख्यान----सा पु० [सं०] १ पुरानी कथा । पुराना वृत्तान । २ उपात--सच्चा पु० [सं० उपान्त] [वि० उपत्य] १ अत के किसो कथा के अंतर्गत कोई सौर कया । ३ वृत्त । हुन । समीप का भाग। २ प्रात माग ! आसपास का हिस्नी । ४ दूसरे से सुनी गई कथा म अख्यिायिका को कहना (को०)। ३ छोर। किनारा । उपाख्यानक-सपा पू० सं०] १० 'उपन्यान' (को॰] । उपत-वि० अप्रतिम के पासवाना । अतवाले से एक पडला (को० । उपागत- वि स ०] १ अाया हुप्रा । २ घटित । लौटा हुआ । उपातिक -वि० [स० उपारिक पासवाला । समीपवर्ती । पड़ोसी ४ प्रतिज्ञा किया हुआ । ५ अनुभून । ६ नही हुमा [को॰] । [को०) । उपागम--सा पु० [सं०] १ मा गमन । प्राना । २ घटना । ३ उपातिक-संज्ञा पुं० निकटता। सपोपता ! सनि ज्ञान । अतरहीनता प्रतिज्ञा । ५ समझौता । वचन बद्धता । ५ स्वीकृति । ६. को०] । पीडा । कप्ट। ७ अनुभूति (को॰) । उपातिम--वि० [स० उपान्तिम] अतवाले के समीपत्राला 1 उपाय। उपाग्निका-सा सी० [सं०] समुचित ग से विवाहित पलो (बे०}} उ०—'ज्ञानस्वरोदय' उनको उपातिम रचना थी ।—स० उपग्र-सच्चा पु० [न०] १ अतिम के पानवाला भाग । २ गौण यो दरिया, पृ० ४१ । अनुमुक्ष्य सदस्य का व्यस्त [ये ।। उपत्य-वि० [सं० उपान्त्य]१ अतवाले के समीपवाला । अतिम से उपग्रहण--सुज्ञा पुं० [स०] दे० 'उपाकर्म । पहले का । उपाटना)---क्रि० स० [सं० उत्पाटन, प्रा० उप्पाडण] उखाना । उपाय--संज्ञा पुं० १ ख का कोना । २ समीपता [को०] । उ०-लोन्ह एक तेहि संल उपाटी, रध हुन तिलक भुजा सोई उपाशु'---संज्ञा पुं॰ [सं०] १ मद स्वर में मत्र का जप । २ मौन । काटी ।—मानस, ६।६७ । ३ सोमरस के उपहार का नाम (को०)। उपाड---सज्ञा पुं० [प्रा० उपाड, हिं० उपरान उभरना] किन उपाशु-क्रि० वि० १ मद स्वर में। धीरे धीरे। २ व्यक्तिगत रूप तीव्र सौषध अदि के कारण शरीर की खाल को उड़ने लगना । मे। रहस्यात्मक ढग से (को॰] । मुहा०-~-उपाड करना= किसी दवा का शरीर पर छाले डालना उपाशुत्व -सज्ञा पुं० [सं०] मौनता [को०] । या वहाँ की खाल उडान ! उपाइ---सज्ञा पुं० [सं० उपाय] दे० 'उपाय' उ०—-(क) तो सव उपाड़ना- क्रि० स० [सं० उत्पादन, प्रा० उप्पाउण] दे॰ 'उपउना' । दरसी सुनिये प्रभु करौ सो वेगि उपाइ ।—मानस, १५६ । उ०--(क) जोवण छत्र उपाडियउ राजे न यइसऊ कोई 1-- (ख) श्रीमद करि जु अव ह्व जाइ । दारिद अजन बढी उपाइ। ढोला० ८० २७ । () सो पिजरे में ते काड उडि उसके --नद० प्र ०, पृ० २५२ । पर ---दक्खिनी॰, पृ० ८८। उपाउ-सच्चा मुं० [सं० उपाय] दे॰ 'उपाय' । उ०—रूधहू करि उपाती-सज्ञा स्त्री० [उत्पत्ति, प्रा० उप्पत्ति) उत्पत्ति । पैदाइश ! पानीमा उपाच वर वारो --मानस, २॥१७॥ ७५क उ०-सुन्नहि ते है सुन्न उपाती । सुन्नहि ते उपजेहिबई -सच्चा पुं० [सं०] १ योजना । उपक्रम । तैयारी। अनुष्ठान। भीती ।—जायसी (शब्द॰) ।