पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/११४

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। उ०—राधन उम्मेद ६२६ उरणात उम्मेद-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] आशा । भरोसा । असार । कुशल सूखा उर लाई ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) ताप क्रि० प्र०—करना । बाँधना । होना । सरसानी, देखे अति अकुलानी, जऊ पति उर ग्रानी तऊ क्षेत्र मुहा०—उम्मेद होना--सूतान की प्राशा होना। गर्भ के लक्षण मे बिलानी जात ।-पद्माकर (शब्द॰) । २ हृदय । मन । दिखाई देना। जैसे--- इन दिनों लाला साहुव के धर कुछ चित्त । उ०—करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर उम्मेद हैं, देखें लड़का होता है कि लड़की । उम्मेद से होना = सयन ।-—तुलसी (शब्द०)। गर्भवती होना। जैसे—उनकी स्त्रीको उम्मेद से है। मुहा०-उर अानना वा लाना= मन में लाना । ध्यान करना। उम्मेदवार--- सज्ञा पुं॰ [फा०] १ अशा करनेवाला । आसरा रखने विचारना । समझना। उ०- उर अनहु रघुपति प्रमुताई । वाला । ३ नौकरी पाने की अशा करनेवाला ! ३ काम तुलसी (शब्द०)। उर घेरना== ध्यान में रखना । ध्यान सीखने के लिये चौर नौकरी पाने की अशा से किसी दफ्तर करना । उ०----वदि चरण उर घरि प्रभुताई। अगद घले में बिना तनख्वाह काम करनेवाला आदमी । वह जो किसी सवहि सिर नाई।–नुलसी (शब्द॰) । स्थान या पद के लिये अपने को उपस्थित करता या किसी उरई- सझा स्त्री॰ [स० उशरी अथवा वैश०] उशीर | जस । के द्वारा किया जाता है । '४ निर्वाचन में चुने जाने के लिये उरकना –क्रि० अ० [हिं० रुकना या बढ़कना] रुकना। ठहरना। खडा होनेवाला । जैसे--(क) । वे व्यवस्थापिका परिषद की उ०—राघव चेतन चेतवे महा । अाइ उ’ कि राजा पहें मेवरी के लिये उम्मेदवार है। (ख) वे वनारस डिवीजन से रहा ।—जायसी (शब्द॰) । कौंसिल के लिये उम्मीदवार खड़े किए गए हैं। | उरग-सज्ञा पुं॰ [सं॰][ली उरगी] १ सप । २ पेट के वे । चलनेउम्मेदवारी--मज्ञा स्त्री॰ [फा०] १ अशा । अासरा । २ काम वाला जीव । सीखने के लिये नौकरी पाने की अशा से बिना तनख्वाह किसी यौ०-उरगराज । उरगस्थान । उरगाशन । उरगारि । दफ्तर में काम करना। उरगाराति ।। उम्र-सज्ञा स्त्री० [अ०] १ अवस्था । वयस। २ जीवनकाल । उरगड्डी-सच्चा स्त्री॰ [स० उर+हि० गाडना]एक खेटी जिसने जुलाई मायु । | पृथिवी मे ताना गाडने के लिये सुराख करते हैं । क्रि० प्र०—काटना । - गुजारना --विताना। उरगना—क्रि० स० [स० उरी कृत्> हि० उसक> उरग] स्वीकार मुहा --उम्र देरना == किसी प्रकार जीवन के दिन पूरे करना। करना। अगीकार करना । मॅगेजना। उ०---प्राय भरत्य कहा किसी तरह दिन काटना। धौं करे जिय माँहि गुने । जो दु ख देइ त ले उरग यह बात उयनापु–क्रि० अ० [सं० उदय प्रा० उग्र उदय होना । उगना । सुनौ - केशव (शब्द॰) । । उ०—उयेउ अरुन अवलोकहु ताता ।—मानस, १२३८ ।। उरगभूपण-सच्चा [१०] शिव [को॰] । उयवाना–क्रि० अ० [देश॰] अँभाना । जंभाई लेना। उ०—। उरगयन्स च्चा पुं० [सं०]१ एक प्रकार का यव । २ एक प्रकार का उतनी कहत कुअरि उयवानी। सहचरि दौरि उसीसी | मान कि]। मानी !--नद० ग्र०, पृ० १४१ । उरगराज--सच्चा पुं० [स०] १ वासुकि । २ शेषनाग (को०] । उरग-संज्ञा पु० [सं० उरङ्ग] १ साँप । २ नागकेसर । उरगलता—सद्मा जी० [सं०] नागवल्ली। पान । उरगम--सृज्ञा पुं० [सं० उरङ्गम] साँप । चरमसारचदन-सझा पुं० [सं० उरगसारचन्दन] एक प्रकार का चदन उर-सज्ञा पुं० [सं०] 'रस' का समास में प्रयुक्त रूप । [को०] । उर कपट--सज्ञा पुं० [सं०] कपाट के समान चौडा, दृढ़ वक्ष [को॰] । उरगस्थान—सया पुं० [सं०] पाताल [ये । दर क्षत-संज्ञा पुं० [सं०] वक्ष का रोग किये । उरगद-सज्ञा पुं० [सं०] गरुड । उर क्षतकास--संज्ञा पुं॰ [सं०] क्षयकारक खांसी (को०] । उरगाय -सज्ञा पुं॰ [सं॰उरुगाय] दे० उरुगाय' । उर क्षय-संज्ञा पुं॰ [सं०] क्षय रोग । यक्ष्मा [को०] । उरगारिसा पुं० [स०] १ गरुड़ । २ मोर [को॰] । उर शूल-सज्ञा पुं० [सं०] छाती का रोग । उरगीशन-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ गड 1 २. मोर !कौ]। उर शूली–वि० [सं० उर शूलिन्] जिसे उर वाले हो [को०] । उरगास्य-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार की कुदाल [को॰] । उर सूत्रिका—सच्चा क्षो० [सं०] छाती पर स्थित रहनेवाला मोतियो उरगिनी--संज्ञा पुं० [सं० उरगी] सुपिणी । नागिनी। उ०-- | का हार का० । । घूमत हौ मनो प्रिया चरगिनी नव विलास श्रम से जह से हो। उर स्तम--सा पुं० [स० उरस्तम्म] दमा [को०] । काजर अधरनि प्रगट देखियत नाग वेलि रंग निपट लसे हो । उरस्थल--सझा पुं० [सं०] वक्ष ! छाती [क]। --सूर (शब्द॰) । उर--सझा पुं० [सं० उरस्] १ वक्षस्यले । छाती । उज( संज्ञा पुं० [सं० उरोज] कूच । स्तन । उ०-३ाढते तो जुर यौ०..उरोज । उरज भर भर तरुनई विकास । वोझनि सौनिनि के लिए वितु मुहा०—उर शानना वा लाना = छाती से लगाना | मालिंगन ६व उसास ।--विहारी (शब्द॰) । करना। उ०—(क) दिन दस गए बालि पहँ जाई। पूछेतू उरजात--संज्ञा पुं० [स० उरस +जात] कुच । स्तन । उ०--7ति