पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/११३

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समाकात ६२७ उम्मीद उमाकांत--सुज्ञा पु०सं० उमाप्त पार्वती के प्रिय पति या शिवाको०]। उमिरिया –ी० [हिं० उमार> उमिर-+इया (प्रल्पा० प्रत्य॰)] उमाकिनी --- वि० [हिं० उमाकना] उखाडनेवाली। खोदकर दे॰ 'उन्न' । उ०-हमरी उमिरिया होरी खेलन की, पिय मोक्ष फेक देनेवाली । उ०—माया मोह नाशिनी उमाकिनी अविद्या मिलि के विछुरि गयो री । --घरम०, पृ० ५९। मूल पापन की त्रासिनी है ज्ञान र रासिनी ।-रघुराज उमेठनसंज्ञा स्त्री० [सं० उद्वेष्ठन] ऐंठन । मरोड । पेंच । वल । (शब्द॰) । उमेठना-क्रि० स० [सं० उद्वेष्ठन] ऐंठना । मोडना । उमागुरु–संज्ञा पुं० [सं०] उमा के पिता हिमवान् । हिमालय (को०] 1 उमेठवां--वि० [हिं० उमेठता] ऐंठन। । ऐंठनदार । धुमावदार। उमाचतुर्थी---सज्ञा स्त्री० [सं०] ज्येष्ठ मास की शुक्ल चतुर्थी । जेठ | मुरेरवां । सुदी चौथ [को॰] । उमेड़ना--क्रि० स० [हिं० उमेठना] दे॰ 'उमेठना' । उमाचना --क्रि० स० [म० उन्त्रञ्चत = ऊपर उठाना] १. उमा- उमाउ -सज्ञा पुं० [हिं० उमाह +उ (त्य०)] दे० 'उमा'। इना । ऊपर उठाना । २ निकालना । ३०-लाज वस वाम । उ०—आज उमाह मो धडउ, ना जाण किंव केण -- छाम छाती पै छ । के, मानो नामि त्रिवली तें दूजी नविनि ढोला० ६० ५१८ । उमेद-सुज्ञा स्त्री॰ [फा० उम्मेद] उम्मीद । आशा । उ० --रावरे उमाची है ।—(शब्द॰) । अनुग्रह को मेह बरसायो अाय, एकौ वीज उग्यो नाहि भाग यो उमा--संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'उमाकड' (०] । दिखायतु । हा हा नटनागर उमेद फनफन की थी प्यारे उमाद -सज्ञा पुं० [सं० उन्माद] दे० 'उन्माद' । मीति खेत में तो रेत न लखायतु ।—नट०, पृ० ८६ । उमाधव - सज्ञा पुं० [सं० उमा+धबपति] शिव । उनापति (को०] । उमेदवार–मुज्ञा पुं० [फा० उम्दवार] ३० 'उम्मेदवार' । उमघो -सज्ञा पु० स० उमारव] पावती के पति । महादेव ।। उमेदवारो-मज्ञा स्त्री० [फा० उमेदवारी] ३० उम्मेदवारी' । | शिव । उ०--हरो पर मेरी रमाधो उमाधो । प्रवोदो उदो । उमेलना -क्रि० स० [सं० उन्नीलन] १ खनना । उधाडना । देहि । विदुमाधौ । -केशव (शब्द॰) । २ प्रकट करना। ३ वर्णन करना । उ०-यावर जग उमापति--प्रज्ञा पुं० [सं०] महादेव । शकर । शिव । मनि कहे लग कहाँ उमेल । ने भनुद महे वायो हौं का जियो उमामहेश्वरङ्गत-सुज्ञा पुं० [न०] एक विशेप व्रत का नाम जिसमे अकेल -जायसी (शब्द०) । पर्वती और शिव की कृपा के लिये उ रामक अनुष्ठान या उर्मना -हिं० अ० [हिं० उपहना] मन राना ग्रा वरण करना। व्रतोपवास प्रादि करता है [को०] । उमग में ग्राना । उमडना । उमावन—सज्ञा पुं० [सं०] बाणपुर नाम रु नगर। शोणितपुर । तपुर । उम्दगी-संज्ञा स्त्री॰ [फा०] अच्छापन । भलापन। खूवी । देवीकोट [को०] । । उम्दा-वि० [अ० उदह, ] अच्छी । भला । उत्तम । श्रेष्ठ । वढिया। उमासुत-सज्ञा पु० [सं०] १ कातिकेय । २. गणेश किये ।। उम्म-मुज्ञा स्त्री० [प्र०] १ जन्म देनेवा मी माता । २ जड । उमाह---सज्ञा पु० [स० उद+मह, न उनगाना, उत्साहित करना] मूल [को०] । उत्साह । उमंग । जोश । चित्त को उद्गार । उ०—(क) उम्मट–संज्ञा पुं॰ [दे] एक देश का नाम । उ०—३-न? हे हव न यो सुवाहू उमाह मरो रन जो सुरनाह को दान देवैया। जगनी जात अलाई ।—सुजान॰, पृ॰ ६ । । --रघुराज (शब्द०)। (ख) जान देहु सब प्रौर चित के मिलि। उम्मत–सुज्ञा स्त्री० [अ०] १ किमी मत के अनुयायियों की मडवी । रस करन उ माहु । हुरीचद सुरत तो अपनी वारक फेरि उ०—कबीर खोई हुकुम हरम की उम्मत निराई ज त । दिखाहु —हरिश्चद्र (शब्द॰) । पैगबर हुकम इरम क, बडे शरम की वात --कवीर उमहिना --- क्रि० अ० [हिं० उमहना] १. उमड़ना । उमाना। (शब्द॰) । २ जमा अत् । समिति। समाज । किरका । ३ भरकर ऊपर ग्राना। उ०—प्रगन अगन माहि अनत के तुग औलाद। संतान (व्यग्य) । ४ पैरोकार। सनयंक। तरग उमाहत आवे ।--पद्माकर (शब्द॰) । २. उमंग में अनुयायो ।' शाना । उद्गार ते भरना। उ०—-तैसहि राज समाज जोरि उम्मस--- संज्ञा स्वी० [देश०] दे॰ 'उस' । जन धावै हरख उमाहे --रघुराज (शब्द॰) । उम्मी-प्रज्ञा स्त्री० [सं० उम्वी] १ गेहू” या जो की कच्ची चान जिमने उमाहना-क्रि० स० उमड़ाना । उमगाना। वैग से बढ़ाना । उ० - से हरे दाने निकलते हैं। २ अाग की लपट में जो गे की , झनझजात रिस ज्वाल बदन सुत चहू दिसि चाहिये । प्रनय वालो को भूनकर खाने के लिये बनाई गई स्वादिष्ट बहनु । करन त्रिपुरारि कुपित जनु गग उमाहिय ।--सूदन (शब्द०)। उम्मीद-सच्चा स्त्री॰ [फा०] दे० 'उम्मेद' । उ०—-*-है प नाव ने सब उमाहल---वि० [हिं० उमाह+ल (प्रत्य॰)] उमंग से भरा। हिंद की उम्मीद हुई भारतेंदु ग्र०, मा० १, पृ० ५४२।। उत्साहित । उ०—ब्रज घर घर अति होत कुलाहल । जहें। मुहा०—उम्मीद वैर आना = अाफाक्षात होना । अनीप्ट तहे ग्वाल फिरन उमगे सब अति शानद भरे जु उमाहल ! | प्राप्ति होना । उ०—कोई उम्मीद बर नहीं आती। कोई नुर। —सूर १०1८२६ । नजर नहीं आती |-- ?