पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/११७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

ऐरोटे स्वान् उराट -सज्ञा पुं० [म० उरस्यल, प्रा० #उरळ, हि० उराठ उरुक्षय--सज्ञा पुं॰ [सं०] विस्तीर्ण निवास या वासस्थान (को०] । छाती । (डि०) । उरुगव्यूति --वि० [सं०] विस्तृत क्षेत्र या स्थानवाना (को०] । उराण -वि० [स०] चौडा या विस्तृत करनेवाला। फैलानेवाला [को॰] । उगाय--वि० [स०] १ जिम का गान किया जाय । २. प्रशसित । उराना •क्रि० प्र० [हिं० ओर+माना (प्रत्य॰)] समाप्त होना। ३ जिसके ३॥ तवे हो । फैला हुआ । खतम होना । वि० दे० 'प्रोराना' । उ०-देखत उरै कपुर उरुगाय-नुज्ञा पुं० १ विष्णु । २ मूर्य । ३. स्तुति । प्रशसा । ४. इद्र ज्यो उपे जाई जनि लाल । छिन छिन जाति परी खरी छीन (को०) 1 ५ सोम (को०)। ६ अश्विनीकुमार (को०) १७ प्रशस्त छबीली वात्र ।--विहारी (शब्द॰) । स्थान (को०)। उरमाथी--वि० [स] भेद को मारनेवाला (भेडिया) [को०]। उरुगुला--सज्ञा स्त्री० [सं०] स । मोप [को०] । उराय-- सज्ञा पुं० [हिं० उराव] ३० ‘उराव' ।। उरुचक्षा-वि० [सं० उरुचक्षस् दूरदर्शी (को॰] । उरारा- वि० [सं० प्रा० उराल]विस्तृत । विशाल । उ०—रूप मरे उरुचक्र--वि० [सं०] चौड़े चक्के या पहियोवाली (गाड़ी) [को॰] । भारे अनूप ननियारे दृग कोरनि उरारे कजरारे बुदै ढरकनि । उरुजना@---क्रि० प्र० [हिं०] ६० 'उरझना'। देव अरूलाई अरू नई रिसि को छवि सुधा मधुर अधर सुधा उरुजुन्म---वि० [सं० उजन्मन् अच्छे कुल या वंश में मधुर पलक नि ।--देव (शब्द॰) । उत्पन्न [को॰] । उराव--संज्ञा पुं॰ [स० उरस् + प्राव (प्रत्य॰)] चाव । चाह् । उमग । उत्साह । हौसला। उ०--(क) जे पद कमल सुरसरी परसे। उरुज्रय-वि० [सं०] विशाल पय में गमन करनेवाला । विस्तृत तिहू भुवन यश छात्र । सुर श्याम पद कमल परसिहाँ मन अति क्षेत्र में फैलनेवाला (अग्नि और इइ) [को॰] । वढ्यो उराव -सूर (शब्द०) । (ख) तुलसी उराव होत सम उरुझना--क्रि० अ० [हिं॰] दे० 'उरझना' । को सुझाव मुनि को न बलि जाइ न विकाइ बिन मोल को - उरुती--संज्ञा स्त्री॰ [म ०] वियरलता । विस्तार [को०)। तुलसी (शब्द॰) । (ग) अति उराव महराज मगन अति जान्यो उरुताप - सज्ञा पु० [सं०] अधिक गरमी या ऊष्मा (को॰] । जात न काला (रघुराज (शब्द॰) । उरुत्व--सुज्ञा पु० [सं०] १ विस्तीर्णतः । ३ विशालता (को॰] । उह-सज्ञा पुं० [स०] पीले रंग का एक घोडा जिसका पैर काला हो । उरुवार--वि० [स०] १. चीडी घारा देनेवाला । २ अधिकता से उराहना--सज्ञा पु० [सं० उपालम्भ १ उपाल भ । शिकायत । उ०- बहनेवाला (को॰] । (क) 'मए वटाऊ नेह तजि बाद बकति वेकजे । अब अलि उरुपूडिपका-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का पौधा [को॰] । देत उराहन, उर उप जति अति लाज ।—बिहारी (शब्द॰) । उरुविल--वि० [स] चौड़े में इवाला, जैसे घडा फा०] । (ख) काहे को काहू को दीजै उराहनो आर्दै इहाँ हम अपनी उरुबिल्व--सज्ञा पुं॰ [सं॰] वह स्थान जहाँ बुद्व को सम्यक् बुद्ध या चाडे ।--देव (शब्द॰) । बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी । अाजकल इम स्थान को बुद्ध गया उरिणqt--वि० [सं० उऋण] ३० ‘उऋण' । कहते हैं। उरिन--वि० [स० उऋण] दे॰ 'उऋण' । उ०- अब ह्वहीं । उरुमार्ग- संज्ञा पुं० [सं०] विशात्र पय या राजमार्ग [को०)। माय उरिन तिहारे लौन सौं --हम्मीर०, पृ० ४७ । । उरुरात्रि—संज्ञा स्त्री० [सं०] रात का अंतिम या उत्तर भाग (को०] । उरिष्ठ-सज्ञा पुं० [स०] रीठा 1 सेठी । फेनिल ! उरुवा--संज्ञा पुं० [सं० उलूके, प्रा० उलूक] उल्लू की जाति की एक उरी--- अव्य [देश॰] दे॰ 'अर'। उ०--भजी हो सतगुर नाम उरी। चिडिया । रुरु ।। --कवीर० श०, भा० १, पृ० ३८ । उरुविक्रम-वि० [सं०] वलशाती । पराक्र की (को०] । उरु जिरा---सज्ञा स्त्री० [सं० उजिरा] विपाशा नदी का नाम (को०)। उरुवे---संज्ञा पुं० [सं०] १ रेड का वृक्ष । २. नाल एरड (को॰] । उरु'--वि० [स०] १ विस्तीर्ण । लवा चौडा । २ विश न । वहा ।। उरुब्या-ज्ञा स्त्री० [सं०] वितार [वै] । ३ श्रेष्ठ । वडा । महान् । ४ प्रचुर (को०) । ५ बहुल (को०)। उसव्रज---वि० [सं०] विम्तृत स्थानवाला । विस्तृत (को०)। ६. मूल्यवान् । कीमती (को॰) । उरुशंस---वि० [सं०] बहुप्रशमित । जिमको प्रशंसा बहुत लोग उरु -सज्ञा पुं० [सं० उरू] जघा । जाँघ । | करे (को०] । उरुकाल, उरुकालक-सज्ञा पु० [सं०] एक लता। महाकाल नाम की । उरुस f-सज्ञा पुं० [हिं०] खटमल । उडेको । लता को॰) । उरुको ति- वि० [सं०] प्रसिद्ध । यशस्वी । अत्यंत नामी को । उरुस —-मज्ञा पु० [अ० उसे दे० 'उमं' । उ०—रोजा कर उरुकृत--वि० [सं०] विस्तीर्ण या अधिक करनेवाला [को॰] । निमाज गुजारे, उरुस करे और आतम मारे ।--- उरुकम-वि० [सं०] १ व नवान् । पराक्रमी । २ लबे लवे पबि मलूक०, पृ० २३ । वडानेवाला । लबे डग भरनेवाला । उरुसत्व-वि० [सं०] उदार क्वेि ।। उरुक्रम-सुज्ञा पुं० १ विष्णु का वामन अवतार । २ सूर्य । ३. शिव उरुस्वान्-वि० [में०] जिसकी अावाज ॐवी हो । यो प्रावाज (को०) । ४ ला उग (को॰) । वाला (को०] ।