पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१३२

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उसीसी उंहार उसीसा--प्रज्ञा पुं० [सं० उत् + शीर्ष+क] १ सिरहाना । २ गाया जाता है । उ०—-गोरे दे ना लयारदी बातें दिल उस्साक तकिया। दुखॉदा कीतु' ।---नट०, पृ० १२८ । उसीसी–सज्ञा स्त्री॰ [स० उत्शीर्षक, पा० उस्सीसक, प्रा० उस्सीस = उन्न'– संज्ञा पु० [सं०] १ किरण । मरीचि । रश्मि । २. सोड । ‘तकिया ] तकिया। उ०—उतनी कहत कुवरि उयवानी । वृषभ । ३. देव । ४ सूर्य । ५ दिन । ६ दो अश्विनीसहचरि दौरि उसीसी अनी ।---नद० अ०, पृ० १४१ ।। कुमार [को॰] । उसीसो- संज्ञा पुं० [स० उबू + शीर्ष तकिया। उ०—उपवन, उपः उस्र-वि० १. प्रमावान् । उ पतन उप- उस्र---वि० १. प्रभावान् । तेजस्वी । चमकीला । २. प्रभात त घान पुनि कदुक सोई छीन । मृदुल उसीसो उठेगि के, बैठी तिय सवधी (०] । रिस नीय --नद० ग्र०, पृ० ८१ । । उस्रा--संज्ञा स्त्री० [सं०] १ प्रत काल । उपाकाल । २ प्रकार । ३ उसूल - संज्ञा पुं० [अ०] १ सिद्धात । उ०-~-सुध वाते काम के पीछे मन = = = ३ चमकीला तारा । ४, गाय [को॰] । उस्रिक---संज्ञा पुं० [सं०] १ बछडा । छोटा बैल । २ बुढ़ा वेल को०] । अच्छी लगती हैं जो सब तरह का प्रबधं वैध रहा हो, काम के ७ उसूलो पर दृष्टि हो, भले बुरे काम और भले बुरे अदमियो उस्रिका--सज्ञा स्त्री० [सं०] गाय [को०] । की पहचान हो, तो अपना काम किए पीछे घडी की दिल्लगी । उस्रिय--संज्ञा पुं० [सं०] १ बैल । २ देवता [को०] । में कुछ विगाड़ नही है ।--श्रीनिवास ग्र०, पृ० १०६। २

  • उस्रिया–संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ गाय । २ प्रभा । ३ बछडा। ४ दे० 'वसूल' ।

दूध (को॰] । उसूली'-- संज्ञा स्त्री० [अ० वसूली] उगाहुना । मालगुजारी या अन्य उस्वाँस--सज्ञा पुं० [हिं॰] दे॰ 'उसम' । उ०----स्वाँस उस्वाँस का कर अथवा ऋण दिया हुआ धन वसूल करन।। प्रेम प्याला पिया, गगन गरजै जहाँ वजे तुरा --कवीर श०, उसूली-वि० सिद्धातवादी । वसूल का पक्का । मा० १, पृ० ६३ ।। उसेना- क्रि० स० [स० उष्ण उवालना । उसनना । पक्राना। उस्वास—संज्ञा पुं॰ [सं० उच्छशास] दे० 'उच्छवास' । ३०-स्वास उसेय-- संज्ञा पुं० [देश०] खसिया और जयतिया की पहाडियों पर। उस्वास उठे सर्व रोम चले दृग नीर प्रखडित धारा । सुदर होनेवाला एक प्रकार का वाँस जिसकी ऊँचाई ५०-६० फुट, कौन फरे नवधा विधि छाकि पर्यो रस पी मतवार }-- घेरा ५-६ इच और दल की मोटाई एक इच से कुछ कम होती सुदर ग्र °, 'भा० १, प० २५ } उस्सास--संज्ञा पुं० [हिं॰] दे॰ 'उच्छ्वास' । उ०---नाम ते अज्जपा है, इससे दूध या पानी रखने के चोंगे बनाते हैं । जाप प्रोऊँ । नाम तें सास उस्सास सोऊ।---राम० उस्तत--संज्ञा स्त्री० [हिं० ३ (दिस्वरागम) + सं० स्तुति] प्रार्थना । विनय । स्तुति । उ०—मेरी यह इच्छा है जो सतिगुरु धर्म०, पृ० १२६ । जी की उस्तति सुणाईए जी ।—प्राण ०, पृ० २२० । उस्सीस---सज्ञा पुं० [सं० उपशीर्षक, उसीस] दे० 'उससा' । उस्तरा-सुज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'उस्तुरा'। उ०---नर धर वर मसनद सीस. उस्सीस धइग्र ।उस्तवार---वि० [फा०]दृढ़ । पत्रका। उ०—खुदा से जो कोई निपट है, सुजान०, पृ० २३। उस्तवार। सो उन पर खुदा भोत धरती है प्यार - उह –सर्व० [हिं० दे० 'बहू'। उ०-उहै ब्रह्म गुरु सत उह वस्तु दक्खिनी॰, पृ० २९२।। विराजत येक । वचन विलास विभाग प्रथ वधन 'भाव विवेक । उस्ताद'--संज्ञा पुं० [फा०] [स्त्री॰ उस्तानी] गुरु । शिक्षक। --सुदर ग्र॰, भा॰ १, पृ० ४।। अध्यापक । मास्टर। । उह -सवं० [हिं०] १० 'उस' । उ०--सो वह लरिकिनी को उस्ताद-वि० १. चालाक । छली । धूर्त । गुरुघटाल्। उ०-वह वडा दु:ख देखि कै श्रीनाथ जी ने श्रीगुमाँई जी सो कह्यो, जो-वह उस्ताद है, उससे बचे रहना । २ निपुण । प्रवीण । विज्ञ । वनिया वैष्णव की बेटी उह गाँव में है । सो वाकौ दु ख को ही दक्ष । जैसे,—-इस काम में वह उस्ताद है। उ० --तव उसको सह्यो जात नाही !--दो सौ बावन०, भ० २, पृ० ३८ । अपने उम्ताद के निकट ले गए ।-कवीर सा०, पृ० ६६२। उहदा--सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'ओहदा' ।। उस्तादी- सज्ञा स्त्री॰ [फा०] १ गुरुग्राई । शिक्षक की, वृत्ति। उहदेदार-: संज्ञा पुं० [हिं०] 'ग्रोहदेदार' । मास्टरी । २ चतुराई। निपुणता । ३ विज्ञता । ४ चालाकी। उहवाँ--क्रि० वि० [हिं० वहीं] वहीं । उस जगह। उस स्थान धूर्तता ।। पर । उ॰—चित चोखा मन निर्मला, दयावत, गमीर । सोई उस्तानी-सज्ञा पुं॰ [फा०] १ गुरुमानी। गुरुपत्नी । १ जो ली. उहाँ विचरई, जेहि सतगुरु मिले कवीर।--कबीर सा० किसी प्रकार की शिक्षा दे । ३. चालाक स्त्री । ठगिन । सं०, पृ० १० । उस्तुरी-• सज्ञा पुं० [फा०]छुरा । अस्तुरा । बाल बनाने का औजार। उहाँ –क्रि० वि० [हिं०] दे॰ 'वह' । उ०—-तव नारायनदास उस्तस्मि -संज्ञा पु० [सं० उष्णरश्म] सूर्य । उ०—मिहिर तिमिर उहाई स्नान करे 1---दो सौ वावन०, भा० १, पृ० १०६ ।। हर प्रभाकर उस्नरस्मि तिम्मसे ।—पने कार्य०, पृ० १०३ । उहार --सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'हार' । उ०—If उस्साक -सज्ञा पुं० [अ० उशाक, इश्क का बहुव०] १.प्रेमी उघारि दुलहिनन्ह देखहि । नेन लाइ लहि जन म सफल करि लोग । २. राग के एक स्थान का नाम जो दो घड़ी दिन रहवे लेखहिं तुलसी ग्र०, पृ० ६३ । उ०—ारि उहार