पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१५९

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एकरंगो एकपेटिया ६७३ -वि० [स० एकमात्र, प्रा० एकमत] एकमात्रिक । उ०—एकपेटिया-वि० [हिं० एक+पेट +इया (प्रत्य॰)]मिर्फ पैट पर काम एकमत्त करनेवाला । उ०—'सो श्री गुसाई जी वाको गरीब जानि एक एकमत लठ्ठ मनि गुरु को दुमत गनि याही से उदाहरन हैरि पेटिया कर दीये' 1- दो सौ बावन ०, भा॰ २, पृ० ११२। ले हृदय जाँचि ।—f-वारी० ग्र०, भा० १, पृ० १६७ । एकप्राण--वि० [सं०]एक दिल । जो मिलकर एक जैसे हो गए हो। एक मना–वि० [म० एकमनस] १. एक तरह के विचारवाले। एकचित्त । किसी एक शोर है। मन को लगाने वाला फिौ०) । एकाकार । उ०—यन गए स्थूल, जगजीवन से ही एक प्राण । एकमात्र---अव्य० [सं०] एक ही । केवल एक ! अकेन । उ०-- (क) ---युग०, पृ० १५ ।। 'वाराणमा युद्ध के अन्यतम वीर सिहमित्र की यह एकमात्र एकफर्दा–वि० [फा०] जिस (वेत या जमीन) में वप में केवल एक । कन्या है'।--अधी, पृ० ११४। (ख) जय जयति लच्छम हा फसल उपजे । एकफसला । जगत की एक मात्र सुख सार जो ।- कविता कौ०, 'भा० २, एकफसला- वि० [फा० यकफसली] दे॰ 'एकफद' ।। पृ० १६६ ।। एकवद्धो-संज्ञा स्त्री० [हिं० एक-+वढी] नाव ठहराने का लोहे का । एकमात्रक–अव्य ० [सं०] एक मात्रा का । जिसमें केवल एक ही लगर जिसमें केवल दो अकुडे हो । मात्रा हो । जैसे—एक मात्रिक छद ! एकवद्धी-वि० [हिं०] एक वाघ या रस्सी का । एकवारगी- क्रि० वि० [फा० यक्वारगी] १ एक ही दफे में । एकमु हा=वि० एम० एकमुख ] ए 5 ह का । यो०- एकमु हा दहरिया= फून या कॉस का एक गहना जिसे एक ही साथ । एक ही समय में । जैसे-'सव पुस्तकें एक लोधियों और कछियों को स्त्रियाँ पहनती हैं। इसके ऊपर वारगी मत ले जाग्रो एक एक करके ले जाग्रो । २ अचानक । २६ र नीचे सूत होता है । अकस्मात् । जैसे--'तुम एकवारगी अा गए इससे मैं कोई । एकमुख-वि० [सं०] १ उद्देश्य की ओर प्रवृत्त । २ एक दरवाजे प्रबंध न कर सका।' ३ विल्कु न । सारा । जैसे --'आपने तो वाला । ३ एक को प्रधानता से युक्त (को०] । एकबारगी दवात ही खाली कर दी। एकमुखविक्रय- संज्ञा पुं॰ [सं॰] सत्र के हाथ एक दाम पर बेचना । एकवारी–वि० [फा० यकवरि] ३• 'एकवारगी' । उ० --एकबारी | बँधी कोमत पर बेचना । धक से होकर दिल की फिर निकली न साँस ।—शेर०, विशेप-कौटिल्य के अनुसार चद्रगुप्त के समय मे पण वाहुल्य भा० १, पृ० १२१ ।। छ त् माल को पूरी आमदनी होने पर व्यापारियों को माल एकवाल--सज्ञा पुं० [अ० इकवाल] १ प्रताप। सौभाग्य । बँधी कीमत पर बचनः पडना था । वे भाव घटा बढ़ा नहीं ३ स्वीकार । हामी । सकते थे। यौ०---एकवाल दावा = (१) मुद्दई या महाजन के दावे को एकमुखी–वि० [स०] एक मुबाला। स्वीकृति में मुद्दापलेह की ओर से लिखा हुअा स्वीकारपत्र जो यौ०-- एकमुखी रुद्राक्ष = बह रुद्राक्ष जिममे फकवाली कोर अदालत में हाकिम के सामने उपस्थित किया जाता है । एकरार एक ही हो । दावा । (२) राजीनामा । एकमला--संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ शालप। २ अलसी । तीसी । एकभाव-वि० [सं०] १ एकनिष्ठ । २ परस्पर समान भाव एकमेक-वि० [हिं०] दो या इनसे अधिक के मिलकर एक होने का | वाला [को०] । भाव । एकाकार या तद्रूप होना । उ०-धरती अवर जायेंगे, एकभुक्त'-वि० [सं०] जो रात दिन में केवल एक बार भोजन करे। बिनम गे कैनास । एक मैच' होइ जायेंगे, तब कहाँ रहेंगे दास । एकभुक्त---सज्ञा पु० एकवार भोजन करने का व्रत (को०] । --कवीर सा, भा० १, पृ० २१ ।। एकभूम- वि० [सं०] एक मजिल या एक बडवाला को०)। एकमेव—वि० [सं०] एक माय । एक ही । उ॰—'अपना सुख एकमजिला- वि० [हिं० एक+फा० मजिल] जिसमें एक ही मंजिल त्यागना उनके दुख में माथी होना एकमेव कर्तव्य है ।'-- हो । एकतल्ला । प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० २८१ ।। एकमत(५)---वि० [हिं० एक+भत = सलाह] दे॰ 'एकमेन' । उ एकमाला --वि० [हिं० एक + भोल] १ एक मल्यवाला । निश्चित अजहू अाइ त मारहू कृता । विरही जाड नए एक मंना । दाम का। २. कदै हुए दाम में कभी वेशी न करनेवाला । चित्रा०, पृ० १७२ । एकग- वि० [हि० एक+रग १ एक रगदग का। न माने । एकमत--वि० [सं०] एक या समान मत रचने वाले । एक राय के । २ जिसका भीतर बाहर एक हो । जो बाहर से भी यही जैसे,—'सेव ने एकमत होकर उस बात का विरोध निया' । कहता पा करता हो जो उसके मन में हो। कपटप । मफ उ०—एक मत होइ के कीन्ह विचारा । दिल न करिम धरम दिल । ३ जो चारो ओर एक ना हो। जैसे---‘दावेवहारा ।—चित्र०, पृ० १६६ ।। रगी छोड़ दे एजरग हो जा ।' एकमति–वि० [सं०] एक मत । एक राय के 1 इ -प्रेग ग्रेग सुभग एकगी'-- वि० [हिं॰] । रगपाला। जिसमें एक ही रंग । अति चलति गजराज गति कृप्न व एकमति जनुन जाही - एकरगा–नज्ञा पु० एक प्रकार का पड। जो नाप रम का होता है। सूर०, १०१७५१ । एकरगी-सज्ञा फी० [हिं०] १ एकरूपः । २ निष्कपटता [वै] ।