पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१५८

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६७३ एकचा और ३ कोर्स उत्तर ते ३ कोन दक्षिण जाऊँगा । यहि वह एकपत्नीव्रत---संज्ञा पुं० [सं०] १ एक को छोड दूसरी स्त्री से विवाह किसी दिशा में निर्धारित नियम के विरु’ अधिक चला जाय या प्रेम संबंध न करने का व्रत । २ केवन एक विवाहिता और अपने मन में यह समझ ले कि मैं अमुक दिशा में। पत्नी को छोडकर और किसी स्त्री से विवाह या प्रेम सुवघ नहीं गया उभके बदले इसी अोर अधिक च | गया तो वह न करने का व्रत । उ०—-‘राम की तरह एकपत्नीव्रत कर एकदिश। परिमाणतिक्रमण का नाम अतिचार हुअा।। मकूगा तो कर लूगा ।—इद्र०, पृ० ५० । । एकद-वि० [स०] १ कान। २ समदर्शी । ३ ब्रह्मज्ञानी । एकपत्नीव्रती-वि० [सं० एकपत्नीव्रत] एकपत्नीव्रत का पालन् । तत्वज्ञ । करनेवाला । उ०----चिरजीव सयोग योगी अरोगी । सदा एकएकदकु–सुज्ञा पु० १ णिव । २ कोवा । पत्नीन्नती मग भोगी |--रामच०, पृ० १५८ । । । एकदष्टिवि० संज्ञा पुं० [म०] दे॰ 'एकदृक् [को०] । एकपत्रिका-सज्ञा स्त्री० [स०] गधपत्र । दौना [को॰] । एकदेशी–वि० [एकदेशिन] दे॰ 'एकदेशीय' ।। एक पद'--संज्ञा पुं० [सं०] १ वृहत्सहिता के अनुसार एक देश ।। एकदेशीय–वि० [सं०] एक देश का । एक ही स्थान से संबध । यह अद्र, पुनर्वसु अोर पुष्प नक्षत्रों के अधिकार में है । रखनेवाला । जो एक ही अवसर या स्थल के लिये हो । २ वैकुठ । ३ कैलास । ४ रतिक्रिया का एक अासन (को०) । जिसको सव जगहे काम में न ला सकें। जो सर्वत्र घटे । एकपद-वि० लँगडा । एक पैरवाला (को०] । जो सर्व देशीय या वहुदेशीय न हो। जैसे, एकदेयीय नियम, एकपदी'-मज्ञा स्त्री० [स०] पगडडी । रास्ता । गली । एकदेशीय प्रवृत्ति एकदेशीय प्राचार । उ०--'एक नया फैशन एकपदी. -वि० एक पद या चरणवाला (छद०) (को०)। टाल्सटाय के समय से चला है वह एकदेशीय है । एकपर्णा–सुज्ञा स्त्री० [सं०] १ दुर्गा । २. एक देवी । ३ एक रस०, पृ० ६४ । पत वाला पौधा [को०] । यो०- -एकदेशीय समास = पष्ठी तत्पुरुष समास का एक भेद ।। एकपणका-~-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] दुर्गा । एकदेह--मज्ञा पु० [सं०] १ बुध ग्रह ! २ गोत्र । वश । ३ दपती ।। एकपर्णी--सुज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा । एकदम-वि० [स० एकधर्मन समान गुण, धर्म या । | स्वभाववाला [को॰] । ' एकपलिया (मकान)-सज्ञा पुं० [हिं० एक+पल्ला+इया (प्रत्य॰)] वह मकान जिसमें बँडेर नहीं लगाई जाती बल्कि लवाई की एकधर्म–वि० [सं० एकभन्] दे॰ 'एकधन' ।। दोनो आमने सामने की दीवारों पर लकडियाँ रखकर छाजन एकनयन'---वि० [सं०] काना । एकाक्ष । उ०—सुनि कृपाल अति की जाती है । छाजन की ढाल ठीक रखने के लिये एक योर अारत वानी। एकनयन करि तजा भवानी ।—मानस, ३।२।। की दीवार ऊँची कर दी जाती है । एकनयन–सुज्ञा पुं० १ कौवा । २ कुबेर । ३ शिव (को०) । एकपाटला--संज्ञा स्त्री० [सं०] १ देवी । २ दुर्गा [को० । ४ शुक्र ग्रह (को०) । एकपाठी--वि० [सं० एकपाठिन्] एक ही बार पढ़ कर या सुनकर पाठ एकनायक--संज्ञा पुं० [सं०] शिव [को॰] । | याद कर लेनेवाला [को०] । एकनिष्ठ- वि० [स०] जिसकी निष्ठा एक मे हो । जो एक ही से | सरोकार रखे । एक पर श्रद्धा रखनेवाला । एकपात्--सज्ञा पु० [सं०] १ विष्णु । २ सूर्य । ३ शिव । एकपात–वि० [सं०] अचानक होनेवाला (को॰] । एकनेत्र, एकत्रक---सज्ञा पुं० [म ०] शिव [को॰] । एकपात-सज्ञा पुं० मत्र का पहला शब्द या प्रतीक [को॰] । एकन्नी--सज्ञा स्त्री० [हिं० एक + माना] ब्रिटिश भारत का निकल एकपाद?--वि० [सं०] लंगडा । एक टौवाला [को० । धातु का एक छोटा सिक्का जो एक अरने या चार पैसे मूल्य एकपाद-सच्चा पु० १ विष्णु । २ शिव [को॰] । का होता है । अाजकल यह ६ नए पैसे के मूल्य का है । एकपादव--सज्ञा पुं॰ [स०] एक पैर काट देने का दड । एकपक्षो, एकपक्षीय--वि० [स०] एक और का । एकतरफा ।। विशेष—जो लोग साधारण द्रव्य की चोरी करते थे उनको एक एकपटा--वि० [हिं० एक+पाट = चौडाई] [स्त्री० एकपदी] एक | पर काट लेने का दड मिलता था। प्राय ३०० पण देकर वे पाट का । जिसकी चौडाई में जोड़ न हो । जैसे, एकपटी इस दड से मुक्त भी हो सकते थे । चादर । उ०-भेद न विचारयो गुजमाले को गुलक माले एकपिंग-सज्ञा पुं० [स० एकपङ्ग] कुवेर । नीली एकपटी अरु मीली एकलाई में।--भिखा० १ ०, एकपिगल-सज्ञा पुं॰ [स० एकङ्किल] कुवेर । भा० १, पृ० १४९ । एकपट्टा–मज्ञा पुं० [हिं० एक+पट्टा] कुश्ती का एक पे च । । एकपुत्र--संज्ञा पुं० [सं०] कौडिल्ली पक्षो । विशेष—जब विपक्ष सामने होता है तब उसका पाँव जघे में से एकपेचा--वि० [फा०] एक पैच का । जिसमें एक ही पेंच या , उठाकर बगली बाहरी ठोकर दूसरे पाँव में लेकर उसे चित | ऐठन हो। करते हैं। एकपेंचा–सधा पुं० एक प्रकार की पगड़ी जो बहुत पतनी होती है। ' 'कन-सं० [सजो एक ही फी पत्नी हो । पतिव्रता । इसकी चाल दिल्ली की ओर है। इसे पेंचा भी कहते हैं।