पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१६१

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एकवासा ६७५ एकहत्या , चाय, 7 वो या शास्त्र के वाक्यो या उनके अाशयो की विशेप–योरोप में इस मत का प्रधान प्रवर्तक पमॅडीज था । परस्पर मिल जाना 1 यह समस्त संसार को सुत्स्वरूप मानता था । इमका कथन या एकवासा–संज्ञा पुं॰ [स० एकवासस्] एक प्रकार के दिगंबर जैन जो कि सत् ही नित्य वस्तु है । यह एक अविभक्त और परिमाणनग्न के अंतर्गत हैं। शून्य वस्तु है। इसका विभाजक असत् हो सकता है, पर, एकविंशु - वि० [म०] इक्कीसवाँ [को॰] । असत् कोई बस्तु नही। ज्ञान सत् का होता है असत् का नही । एकविंशति- वि० [सं०] एक और बीस । इक्कीस [को०] । अत ज्ञान सत्स्वरूप है । सत् निर्विकल्प और अविकारी है अत एकविंशति--सूझा ली० २१ की सध्या कौ०] । इद्रियुजन्य ज्ञान केवल भ्रम है, क्योकि इद्रिय से वस्तुएँ अनेक एकविसतिG----वि० [स० एकविंशतिः] इक्कीस 1 उ०--तब एक और विकारी देख पड़ती हैं । वास्तविक पदार्थ एक सत् ही है। बिपति वैर मैं विन छत्र को पृथ्वी रची ।—रामचं०, पृ० ४१ ।। पर मनुष्य अपने मुन से असन् की कल्पना कर लेता है । यही एकविध–वि० [सं०] एक ही प्रकार का । एक ही विधि का । सत् और असत् अर्थात् प्रकाश और तम सत्र संसार का कारण | যাঘাত [o]। रूप है। यह मत शकराचार्य के मन से बिल्कुल मिलता हुया एकविलोचन-संज्ञा पुं० [सं०] १ बृहत्संहिता के अनुसार पश्चिमोत्तर है। भेद केवल यही है कि शकर ने सत् और असत् को ब्रह्म दिशा में एक देश जो उत्तरापाद् अवण और धनिष्ठा नक्षत्र और माया कहा है। के अधिकार में हैं । २. कुवर (को०) । ३ का (को॰) । एकसर ---वि० [स० एकशस् या हि एक+ सर (प्रत्य॰)] १ एकवे द --संज्ञा पु०[स० एक्वृन्द] गले का एक रोग जिसमें कफ और अकेला । उ०--एकसर ग्राइ मढ़ी माँ सोवा | ढूढ़त रक्त के विकार से गले में गिल्टी या सूजन हो जाती है। इस फिरहि रतन जनु खोवा ।—चित्रा०, पृ० ३२ । २ एक गिल्टी या सूजन मे दाह अौर खुजली भी होती है तथा यह पल्ले का है। पकने पर भी कडी रहती हैं। एकसर-वि० [फा० यकसर] एक सिरे से दूसरे सिरे तक। एकवेणी--वि० [सं०]१ जो (स्त्री) शृगार की रीति से कई चोटियाँ विल्कुल । तमाम । बनाकर सिर में गुथाए बल्कि एक ही चोटी बनाकर वालो एकसाँ-वि० [फा० यकस] १ बराबर । समान । तुल्य । २. को किसी प्रकार समेट ले । २ वियोगिनी । जिसका पति समतल । हुमवार । परदेश गया हो। ३ विश्वा । एकसाक्षिक-वि० [स०] जिसका एक ही साक्षी (गवाह) हो [को॰] । एकश फ--वज्ञा पु० [सं०] वह पशु जिसके खुर फटे न हो, जैसे-- एकसार्थ-अव्य० [सं०] एक साथ [को॰] । | घोडा, गदहा ।। एकसाला--वि० [फा० यकसाला] जो एक साल तक वैध हो । एकशासन-संज्ञा स० [सं०] वह शासन व्यवस्था जिसमें सत्ता एक जिसकी अवधि एक साल तक हो (को०) । ही व्यक्ति के हाथ में हो । एकतत्र [को०)। एकसिद्धि--संज्ञा स्त्री० [सं०] केवल एक ही उपाय से होने एकशेप-वि० [न०] १ एकमात्र वैचा हुआ । उ०—कर भस्मीभूत | वाली सिद्धि । समन्त विश्व को एकशेप, उड़ रही धू, नीचे अदृश्य हो रहा एकसूत्र'–वि० [सं०] [सझा एकसूत्रता] एक रूप । आपस में देश --अनामिका, पृ० ८४ । २ द्वद्व समास का एक भेद । सवद्ध [को॰] । जिसमे दो या अधिक पदो में से एक ही शेप रह जाता है। एकसूत्र-मज्ञा पु० डमरू (को॰] । जैसे—पितरो = माता और पिता [को॰] । | एकसुनु-सज्ञा पुं० [सं०] इकलौता लडका [को०] । एकश्चत- वि० [सं०] एक वार का सुना हुअा [को०] ! एकस्य–वि० [सं०] १ एक व्यक्ति या स्थान पर केंद्रित । २. मिला यौ-एक्थुतघर = एक वार को सुना हुअा याद रखनेवाला । हुग्रा । एकत्र [को॰] । एकश्रुति-सज्ञा स्त्री॰ [स०] वेदपाठ करने का वह क्रम जिसमे उदातादि एकहजारी--सज्ञा पुं० [फा० यकहजारी] १ एक हजार सेना का | स्वरो का विचार न किया जाम। स्वामी । २ मुगल बादशाहो द्वारा दिया जानेवाला एक पद ! एकपष्ठि- वि०, सज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'एकसठ' (को०) । उ०--इन को एकहजारी का पद और आठ सौ घोड़े प्रदान एकसठ--वि० [सं० एकपेष्ठ, एकषष्टि, पा० एकसङि, प्रt० एकस] किए थे 1-कवरी०, पृ० ४६ । माठ और एक ।। एकहत्तर--वि० [एकसप्तति, पा० एकसत्तरि, एकहत्तर] सत्तर एकसठ’-- संज्ञा पु० वह अक जिससे एकस की संख्या का वोध और एक । | हो–६१ । । एकहत्तर--सुद्धा पु० सत्तर और एक को संख्या का बोध करानेवाला एकसत्ताक--वि० [सं०]एक ही की सत्ता या अधिकारवाला । एक के अंक जो इस तरह लिखा जाता है—७१ । तत्र का, जैसे, एकताक शासन या राज्य । एकहत्था—सुझा पुं० [हिं० एक+हाथ किसी विपय विशेषकर व्यापार एकसत्तावाद-सच्चः पु० [सं०] दर्शन का एक सिद्धात जिसमे सत्ता या रोजगार को अपने हाथ में करना, दूसरे को न करने देना। ही प्रधान वम्तु ठहराई गई है। किसी व्यापार या बाजार पर अपना एकमात्र अधिकार || २-१६