पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१६२

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एकहत्थो एकातवासी जमाना । एकाधिकार। जैसे—-'रूई के व्यापार को उन्होंने एकहाज्ञ—सज्ञा पुं॰ [सं०] नृत्य का एक भेद । एक प्रकार का नाच । एकहत्या कर लिया' । एकहायन-वि० [सं०] एक वर्ष की अवस्थावाला (को०)। क्रि० प्र०करना । एकाक–वि० [स० एकाङ्क] दे० 'एकाकी [को०] । एकहत्यों- संज्ञा स्त्री० [हिं० एक -+हाथ] मालखंभ की एक कसरत । एकाकी–वि० [स० एकाडिन]एक अकवाला (नाटक) माधुनिक नाटक विशेप - इसमे एक हाय उलटा कमर पर ले जाते हैं और दूसरे की एक विशेष विधा। हाथ से पकड़े के ढग से मालखम में लपेटकर उड़ते हैं। एकाग--वि० [सं० एकङ्गि] एक अग का । जिसे एक अंग हो । कभी कभी कमर पर के हय में तलवार और छुरा भी लिए एकाग--संज्ञा पुं० १ बुध ग्रह । २ चदन। ३ विष्णु (को०) । ४ रहते हैं । सिर (को०) । ५ अगरक्षक । शरीररक्षक (को०)। यौ०--एकहत्यी छूट = मालखभ को एक कसरत जिसमें किसी एकागधात–सच्चा पु० [सं० एकाङ्गघात एक प्रकार का रोग जिसमे तरह को पकड़ करके मालख भ पर एक ही हाथ की थाप शरीर का एक अग सुन्न हो जाता है [को०] । देते हुए कूदते हैं। एकहत्यी निचली कमान = मालस्त्र में की एकागदशित—सच्चा बी० (स० एकाङ्गर्दाशता] किसी एक ही पक्ष कसरत के समान उतरने की वह विधि जिसमे खिलाडो एक पर ध्यान देने की वृत्ति । एकतरफा देखना । दृष्टि सकीर्णता। ही है रथ से मालखन पकडता है ! खिलाडी का मुह नीचे की उ०---‘इसी प्रकार की एकागदशिता के कारण कवि के कर्मक्षेत्र ओर झुकता है और छाती उठी रहती हैं । एकहत्यी पीठ को से सहृदयता धक्के देकर निकाल दी गई । --रस०, पृ० १०३ । उडान = मालख न की एक कसरत जिसमे खिलाडी मालख भ । एकागवघ-- सज्ञा पुं० [स० एकाङ्गवघ] कौटिल्य के अनुसार एक को एक वगल में दवाकर दुसरा हाथ पीछे की ओर से ले । अग काटने का दइ । जाकर दोनो होय वधकर पीठ के बल उलटा उडता है और एकागवात--सी पुं० [स० एकाङ्गवात) पक्षाघात । लकवा [को०] ।। उलटी सवारी बाँधता है। एकागिका--संज्ञा स्त्री० (स० एकाङ्गिका) चदन के योग से तैयार एकहत्यो हुलूक----सज्ञी पु॰ [देश॰] कुश्ती को एक पेंच । । किया हुअा एक मिश्रण को०]] । विशेप---इसमें विपक्षी जव वगल मे अतिा है तव खिलाड़ी। | एकागी--वि० [स० एकाङ्गिन] १ एक और का । एक पक्ष का । अपने उस वगन के हाथ को उसकी गरदन में लपेटता है और दूसरे हाथ से उस हाथ को तानते हुए गरदन एकतरफा । जैसे--एकागी प्रीति । उ०--'तुम्हारी भक्ति दवाकर वगली टॉग से चित करता है। अभी एकागी है'।--इतिहास, पृ० ६७ । २ एक ही पक्ष एकहा- वि० [स० एक + स्तर, हिं० हरा (प्रत्य०) या स० एक+ पर अडनेवाला । हठी । जिद्दी । ३ एक ग्रोपधि जो कठवी, घर, प्रा. हर] [स्त्री० एकरी] एक परत का । जैसे -- शीतल और स्वादिष्ट होती है । यह पित्त, वात, ज्वर, रुधिर एकहा अगा। दोष आदि को नष्ट करती है । ४ एक अगवाला । ५ यौ०- एकहरा बदन = बह शरीर जो मोटा न हो। दुवली असमाप्त 1 अपूण (को॰) । | पतला शरीर । न मोटानेवाली देह ।। एकाड़-सज्ञा पुं० (स० एकाण्ड) एक प्रकार का घोडा को॰] । एकह–संज्ञा स्त्री० [हिं० एकही कुश्ती का एक पॅच ।। एकात"--- वि० (स ० एकान्त) १ अत्यत । विल्कुल । नितात । अति । विशेप- इसमे जव विपक्षी सामने खड़ा होकर हाथ मिलाता है। २ अलग । पृथक् । अकेला । ३ अपवादरहित । निरपवाद तव खिलाड़ी उमका हाथ पकड़कर अपनी दाहिनी तरफ झटका (को०) । ४ एकनिष्ठ । देकर दोनों हाथों से उम्की दाहिनी रान निकार लेता है। एकातः-- सच्चा पुं० १ निर्जन स्थान । निराला । सूना स्थान । एकहल्य–वि० [स०] एक बार जोता हुया [को०] । २. अकेलापन । तनहाई (को॰) । एकहस्तपादेवघ—संज्ञा पुं० [सं०] एक हाथ और एक पैर काट लेने एकातकैवल्य-सज्ञा पुं॰ [स० एकान्तकैवल्य मुक्ति का एक भेद ।। | का दड। जीवन्मुक्ति । विशेप-—कौटिल्य के अनुसार चंद्रगुप्त के समय में जो लोग ऊँचे एकातता--सच्चा स्त्री० [सं० एकोन्तता] अकेलापन । तनहाई । वर्ण के लोगो तया गुरु के हाथ पैर मरोड़ देते थे या एकातर-- वि० [सं० एकान्तर एक का अतर देकर पड़ने या होनेसरकारी घोड़े गाटियों पर विनी ग्राज्ञा के चढ़ते थे, उनको | वाला । एक के बाद होनेवाला [को॰] । यह दड दिया जाता था। जो लोग इस दड से बचना चाहते एकातर--सज्ञा पु० एक दिन का अतर देकर मानेवाला ज्वर । थे, उनको ४०० पण देना पड़ता था। अँतर या अंतरिया ज्चर [को०] । एकहस्तवघ--सज्ञा पुं० [स०] एक हाथ काटने का दड । एकातवास-सच्चा पुं० [स० एकान्तवास] निर्जन स्थान में रहना । विशेष----कौटिल्य के अनुसार जो लोग नकली कौडी, पासा अकेले में रहना । सवसे न्यारा रहना । उ०—माठ वरम के अादि बनाकर खेलते थे या हाथ की सफाई से बाजी जीतते थे, दीघं एकातवास के बाद सौंदर्य के चुनाव में भाग लेने के लिये उनका यह देड़ दिया जाता था। जो लोग इस दड से बचना सालवती वाहर आ रही है' |--इद्र०, पृ० १४६ । चाहते थे, उनको ४०० पण देना पडता था। एकातवासी-वि० (स० एकान्तवासिन्) (स्त्री० एकान्तवासिनी)