पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१७४

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६६६ है कर्भव्यि यह, रामनाम लेते जीम ऐडीवैडी जाति है ।---गग०, ऐ द्रि- सज्ञा पुं॰ [स० ऐन्द्रि] १ इंद्र का पुत्र-(१) जयत, (२) वालि, (३) अजुन । २ वायसे । काग (को॰) । ऐ डा-- वि० [हिं० ऐ डेना] [स्त्री० ऍडी] टेडी 1 ऐड़ा हुप्रा ।। ऐद्रिय-वि० [स ० ऐन्द्रिय] दे॰ 'ऐंद्रियक' ।। मुहा०- अग ऐ है। करना = ?'ठ दिखाना । बेपरवाई और ऐ द्रिय-सृज्ञा पु० इद्रियों का जगत् । विपय (को०) । घमह दिखाना। उ०—यह ग्वारन को गाँव वात नहि सुघे एद्रियक-वि० [सं० ऐन्द्रियक] इद्रियग्राह्य । जिसका ज्ञान इद्रियों से वाने । वसे पसुन के संग अग ऐडे करि डोले ।—दीन- हो । इद्रियसवधी । दयाल (शब्द॰) । ऐ द्रियकर.-सज्ञी पुं० दे० 'ऐ द्रिय" । ऐ द्वी- सज्ञा स्त्री० [सं० ऐन्द्री) १ इंद्राणी । शची । २ दुग । ३. ऐ डा--सज्ञा पुं० [स० ग्राढ़क १ वाट । वटखरा । अँड । इंद्रवारुणी । ४ इलायची । ५ इद्र सवधी एक वैदिक ऋचा २ सेंध । नकदै । (को०) । ६ पूर्व दिशा (को०)। ७ ज्येष्ठा नक्षत्र (को०) । ६ ऐ डाना--क्रि० म० [हिं० ऍडना] १ अँगडाना । अँगड़ाई लेना । मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी (को०)। ६ पौष शुक्ला अष्टमी(c) । वदन तोड़ना। उ० -क वह श्रुति कडू कर आरस सो ऐडाइ। १० अ भाग्य । दुमग्यि (को॰) । ११ ककडी (को०) । के सोदास विलास सो वार बार जमुहाइ ।—केशव ग्र ०, भा० ऐ घन--वि० [सं० ऐन्घन] ईंधन से युक्त । ईंधन से उत्पन्न १, पृ० २४ । २ इठलाना । अकड़ दिखाना । वल दिखाना ।। (अग्नि) को०] । उ०-ज्यो सावन ऐड त मुजा ठोकि सव शूरमा । ऐ घन--सज्ञा पु० सूर्य का एक नाम (को०] । केशव (घाब्द॰) । ऐ परि --अव्य० [स० एतद् याइयत् +उपरि] इसपर 1 इतने पर। ऐ ढा--सज्ञा पुं० [देश॰] एक प्रकार का गैडासा । उ --ऍपरि रिपुहि अलप न जानिये । ममं दुखद वहुतै मानिये । ऐ ढा--सज्ञा पुं० [हिं० ऐ दा= सँध] सँध । सधि । नकव । उ० —नद० १ ०, पृ० २३३ । अव मैं महाँ ठहरू गा तो ऐ ढ़े का चोर बन जाऊँगा ।-- ऐ हुडा--सज्ञा पुं० [हिं० ऐ जा] सँछ । नकब। ऐ छ । श्रीनिवास ग्र २, पृ० ५३ । ऐ -संज्ञा पुं॰ [सं०] शिव । देव'--वि० [सं० ऐन्वव] [वि० जी० ऐ दयी] चद्रमासवधी । इदु ऐ?--अव्य० स० अयि वा है] एक सवोधन । उ०—-ऐ बेगम साहब, सुबधी । | यह क्या सामने वजा रहे हैं --फिसाना०, मा० ३, पृ० १५ । ऐदव--सज्ञा पुं० मृगशिरा नक्षत्र (जिसके देवता चद्रमा हैं)। २ विशेष—-इस अर्थ में इस शब्द का उच्चारण संस्कृत से भिन्न चाद्र मास । कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से प्रारमें होकर पूणिमा 'अय' की तरह होता है। को समाप्त होनेवाला महीना । ३ चांद्रायण नाम का व्रत । ऐ---सर्व ०[स० एतव, हि० यह]यह । उ०---राम बरण रूप ऐ सह एदव--सुज्ञा स्त्री० [सं० ऐदन्वी सोमराजी (को०] । वरण सिरताज }--रघु० रू०, पृ० २ ।। ए द्र- वि० [सं० इन्द्र] [वि० स्त्री० ऐ द्वी] इद्रसव जी । ऐक-वि० [स०] एक से सवद्ध । एक का । एकसवधी (को॰) । ऐ ---सज्ञा पुं० १ इद्र का पत्र --{१) अर्जुन, (२) वालि } २ ऐककर्त्य-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ जैन दर्शन के अनुसार कर्म का एकवे । ज्येष्ठा नक्षत्र । ३ एक सवत्सर का नाम (को०) । ४. यज्ञ मे २. निश्चित कर्मफल ।। इंद्र का भाग (को०)। ५ वन अदरक (को॰) । ऐकत]--वि० [सं० एकान्त] अकेला । एकाकी । उ---ऐकत छाँट्टि ऐ द्रजाल-- सज्ञा पुं॰ [सं० ऐन्द्रजाल] इद्रजाल ! वाजीगरी (को॰] । जहि घर घरनी तिन भी बहुत उपाया। कहै कबीर कछु समझि ऐ द्रजालिक-वि०[स० ऐन्द्रजालिक इंद्रजाल करनेवाला । मायावी। न पर ई, विपम तुम्हारी माया ।--कवीर ग्र २, पृ० १५३ । ऐ द्रजालिक-सज्ञा पुं०० ऐ•द्रजालिकी]जादूगर । बाजीगर(को०)। ' ऐकद्य-वि० [सं०] तत्काल । तुरत । साथ साथ (को॰) । ऐद्रजालिक कर्म -सज्ञा पुं० [सं० ऐन्द्रजालिक कर्म] जादू के काम ।। माया के काम । ऐसे काम जिनमें लोग धोखा खाए । | ऐकच्य-सच्चा पुं० [स०] एक समय या घटना [को॰] । ऐकपत्य-सच्चा पु० [सं०] १ पूर्ण प्रभुता । सर्वोच्च शक्ति । २ एक। विशेप-कौटिलीय अर्थशास्त्र के औपनिषदिक खडे के दूसरे प्रकरण flय अर्थशास्त्र के प्रोपनिषदिक खड के दूसरे प्रकरण तंत्र शासन । एकाधिपत्य [२] । में इस प्रकार के अनेक उपाय बताए हैं, जिनसे मनुष्य कुरूप वाटिक-वि०[सं०][वि० सी० ऐकपदिको एक पदवाला। सरल हो जाता था, वाल सफेद हो जाते थे, वहू कोढी की तरह पदवला ।। या काना हो जाता था, अग में जलता नहीं था, अतद्धन हो। एकपदिक-सज्ञा पुं० [सं०] निधट पर यास्क की टोका के नगमे ।। सकता या मोर उसकी छाया नहीं पडती थी। | खड का नाम कौ० । ऐ द्वलुप्तिक--वि० [स- ऐन्द्रलुनिक] [ी० ऐ द्वलुप्तिको खल्वाटे । ऐकपद्य--सज्ञा पुं० [सं०] १ शब्दो की एकता । २ एक शब्द या पद मना कियेa} । |, में गठित होना (को०)। ऐ दशर--सज्ञा पु० [सं० ऐ इशिर]एक प्रकार का हस्ती। एक जाति का ऐकभाव्य---सा पुं० [सं०] प्रकृति या उद्देश्य की एकता । सम या यी ०]। एकभाव का होना (को०] ।