पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१७३

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६६७ ए'ठग्वैठ है इबँड़ क्रि० प्र०—करना ।—दिखलान!! विशेष-- इसमें एक लकड़ी होती है जिसके व चवीच एक छेद ३. कुटिल भथि । द्वेष । विरोध 1 ३०-~-या दुनिया में प्राइके होता है । इस छेद में एक नट्ट दार लकडी पड़ी रहती है। | छाँहि देइ तू होठ कवीर सा० म०, पृ० ६७ । लव डी के एक छोर से दूसरे छोर तक एक ढीली रस्सी बँधी क्रि० प्र० - पडता ।—रखना। रहती है जिसके बीच बटी जानेवाली रम्सी बाँध दी जाती है। ऐ ठग्वेठ –मुज्ञा पुं० [हिं० ऐ ठ+ गोइँठा] ननन् । विवना ( घमड़े लकडी के एक छोर पर एक लगर वैधा रहता है । छेद में पड़ी करना । उ०—जो पै ऐठिग्वठि जाइ कालि की विटौनी हुई लकडी को घुमाने ते विनी जानेवा रस्सी में ऐ वैन ग्वानि, तः १ देवघाने दूतो काहे को कहाइहीं 1-गंग, पडती जाती हैं । २, घावा ।। क्रि० प्र०--जाना |---होना। ऐ ठा-वि० ऐ ठा हुआ। घमंडी। नाराज । ए ठन--सज्ञा स्त्री० [सं० अरवेष्ठन, पा० अवेटन]१ वह स्थिति जो ऐ ठाना---क्रि० स० [हिं० ऐ ठना का प्र० रूप] ऐठने की क्रिया दूसरे रस्सी या उसी प्रकार की और लचीली चीज को लपेटने या से करवाना। मरोड़ने में प्राप्त होती है। बुमाव । लपेट ! पॅच) मरोडे । ए ठागुइँठा --वि० [हिं० ऐठा + गुइँठग] घमड से मरा हुआ। वल । जैसे-रस्सी जल गई, पर ऐठन नही गई। पकडा हुअा। उ०--पाँच तत्त । जामा पहिरे ऐठागुइँठा यौ०---उलटी ऐ ठन = वह हो ठन जिसका घुमाव दाहिनी ओर से डोले । जन में जनम का है अपराधी कबहू सच ने वोलें । बाईं ओर को हो । वामावर्तु ऐ ठन सीघी ऐठन = वह ऐ ठन पलटु०, मा० ३, पृ० ५४ । जो वाएँ से दाहिने गई हो । दक्षिणावर्त ऐ ठन । । | ऐंठ-वि० [हिं० ऐठन] अव इवाज । ऐठ रखनेवाला । अभि२ विचाब 1 अकडाव । तनाव । ३ कुडल । कुडिल । तृशन्नुज। मानी । ट। ऐ ठना--क्रि० स० [सं० श्रादेष्ठन, पा० अावेदन यो हि० ऐ ठ+ना ऐड--संज्ञा स्त्री॰ [हि• ऐ ] १ एठसक । गर्वं । उ-रंगी (प्रत्य०)] १ घुमाव देना । वेटना । यत देना । मुररोड ना । सुरत रेंग पिय हिये लगी जगी सब राति । पैड पैड पर ठठकि घुमाव के साथ तानना था कसना । कै ऐ ह भरी ऐडाति -विहारी र०, दो० १८३ । २. सय क्रि०—डालना --देना ।। पानी का भवेर । यौ०—ऐ ॐ की वैलन पत्यर के खंभे पर वन हुई वह वेल जो ऍड-वि० निकम्मा । नष्ट । उसुकै चारो और निपटी हो । यौ०-ऐड हो जाना = निकम्मा हो जाना । नष्टभ्रष्ट हो जाना। ३ दवाव डालकर वसुन करना । टूट फूट जाना गया वीता होना ।। सयो० क्रि०—लेना । ऐडदार-वि० [हिं० ऐड +फा० दार] १ ठमकवाना । गर्वीला । ३ घोखा देकर लेना। आँसना । उ०—-हुम खुशामदी नहीं हैं। घमंडी । उ०—जते ? उदार दरवार मरदार सब ऊपर प्रताप कि किसी की झूठी प्रशसा करके कुछ ऐ ठा चाहें 1-प्रताप दिल्लीपति को अभग 'भो ।--मतिराम (शब्द०)। २. 9 ०, पृ० ७१५ । शानदार । वका । तिरछा । उ०--सेवा मरदार ऍडदार संयो॰ क्रि०—रखना }--लेना। सोहैं सन संग करे सतकार पुरजन सुख हेतु है - ऐ ठना--क्रि० अ० १. वल खाना पैच खाना । खिचाव । घुमाव के रघुराज (शब्द०) । । साथ तनना । २ तनना । खिचना । अकडना । जैसे,—थि ऍडना_-क्रि० अ० [हिं० ऐठना] १. १ ठना । वेल खाना। २. पांव ऐंठना ।। अँगइन । अॅगढाई लेना। ३ इतराना । घमड़ करना । १०मुहा०---पेंट ऐंठनी = पेट या प्रांतों में मरोड या दर्द होना। धन जोबन मद ऐ दो ऐ डो ठोकत नारि पराई ! लालच लुब्ध ३ मरना । ४ अक्ड दिखाना । घमई करना। इतन।। श्वान जूठन ज्यो सोऊ इथे न अाई --सूर (शब्द॰) । उ०—अब भरि जनम महलिया, तकनु न अहि। ऐ टल गो मुहा०--ऐडा ऐड फिरना या डोलना= इतर या फिरना । अभिमनिया तजि के मोहि ।—रहीम (शब्द॰) । ५ टेढी | घमड में फूलकर घूमना । उ० --जिन पै कृपा करी नंदनदन सो सीधी बातें करन।। टरिन । उ०--तरही ते उनि महि ऐहो काहे नहि डोले --सूर (शब्द०) । मलायी गई छतहि को घाइ । अव तौ तर कि तर कि ऐ ठति है ऍडनारे-क्रि० स० १ है ठनी । बल देना। २ बदन तोडना । लेनी ले ति बनाइ !-—म्र०, १०२४०५ । अँगडाना । उ॰—उठे प्रात गाथा मु7 भापत अातुर रैनि ऐ ठमेठ -ज्ञा स्त्री० [हिं० ऐ ठन] घुमाव । मोड । वक्ता। विहानी । ऐडत अग, जम्हात वदन भरि कहत सवै यह वानी। तिरछापन । ३०-वनु ऐ टिमठ महिं कि बाल । मूरछ्यो -~-मुर० १०११७० । मेने जगे वहीं व्याल |---पृ० ०, १४३९ । ऍडवैड़--वि० [हिं० वेंडी +ऐ डी (अनु०) ][वि० सी० ऐ डी ऐ ठवाना----क्रि० स० [हिं० ऐठना का प्र० रुप] ऐ ठने की क्रिया बँडी] टेडी । तिरछा । ३०--(क) ; चो ऐई प्रति दूगरे से करवाना । अंचल जाई ऐसी दि ऐ इबंड चितवन निरमोन्निए ।-- ऐंठा- सुज्ञा पुं० [हिं० ऐ ना रस्सी बटने की । केशव (मद०)। (a) देवी देवो पुरविले पाप को प्रताप