पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१७६

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ऐ इवटिजमेट ३ ऐ उवटिजमेट-सज्ञा पुं० [अ०] विज्ञापन । सार्वजनिक सूचना । कर्तव्य तथा शिल्पशास्त्र के कुछ विषय वर्णित हैं । ३३ अध्याय | इश्तहार । से ४० अध्याय तेक राजा को गद्दी पर विठाने तथा पुरोहित ऐ इवास–सुज्ञा पुं॰ [अं॰] १ अग्रिम् । पेशगी। २ अग्रगामी । के और और कामो का वर्णन है । शुन शेप की कथा ऐतरेय | प्रगतिशील । ब्राह्मण को है । (को॰) । एडवाइजर--संज्ञा पुं० [अ०] वह जो परामर्श या सलाह देता हो । २ एक अरण्यक जो वानप्रस्थो के लिये है ।। परामर्शदाता । सलाह देनेवाला । सलाहकार । जैसे,—लीगल विशेप--इसके पाँच अरण्यक अर्थात् भाग हैं । प्रथम भाग में, ऐडवाइजर । जिसमे पाँच अध्याय और २२ ख हैं, सोमयाग का विचार है। एडवाइजरी वि० [अ०] सलाह या परामर्श देनवाली । जैसे,— दूसरे अरण्यक के ७ अयय और २६ खड हैं जिनमें से ऐडवाइजरी कौंसिल । तीसरे अध्याय में प्राण और पुरुष का विचार है और चार एडविड---सज्ञा पुं॰ [सं०] १ कुवेर । २. मगल ग्रह [को०) । अध्यायो मे ऐतरेय उपनिषद् है। तीसरे अरण्यक में (२ एडवोकेट--सुज्ञा पुं० [अ०] अदालत में किसी का पक्ष लेकर वोनने अध्याय १२ खड) में सहिता के पदपाठ और क्रमपाठ के अर्थ वाला 1 वकील । को अलका द्वारा प्रकट किया है । चौथे अरण्यक मे एक एडवोकेट जनरल---सज्ञा पु० [अ० [वह सरकारी वकील जो हाइको अध्याय है जिसको अश्वलायन ने नष्ट किया था । पाँचवें में सरकार का पक्ष लेकर वोलता है । वह सरकार का वेतन अरण्य के ३ अध्याय और १४ खर हैं जो शौनक ऋषि द्वारा भोमी कर्मचारी होता है। प्रकट हुए हैं। ए ड(---सी स्त्री० [हिं० ऐ ड] दे॰ 'ऍड' । उ०----तिने मधि मुग्ध एतरेयी--वि०सि० ऐतरे यिन]ऐतरेय ब्राह्मण का अध्ययन करनेवाला वैस की बाली । ऐंड सो कहति भई तिहि काला 1---नद० ग्र०, । ऐतरेय का अध्येता [को०] । ए तिहासिक-वि० [अ०] १ इतिहास सवधी । जो इतिहास से हो । पृ० ६९ ।। जो इतिहास से सिद्ध हो । उ०—मैंने भारतीय समाज का एडा- क्रि० अ० [हिं०] दे० 'ठा', 'ऐड'। उ०-- ऐहो रहै जिसक ऐतिहासिक अध्ययन करना चाहा।--ककाल, पृ० ७२ । २ तासु हौसी करि डोले ।--दीन० ग्र ०, पृ० १६४ ।। जो इतिहास जानता हो । एडाना--क्रि० अ० [हिं० ऐ ड] इठलाना । ठसक दिखाना । उ०-- ऐतिह्य-संज्ञा पुं० [सं०]प्रत्यक्ष, अनुमान अादि चार प्रमाणो के अति| यह जंग है सपत सुपने की देखि कहा ऐडान ।- संतवाणी, रिक्त, अर्थापति यौर स भवे अ'दि जो चार प्रमाण माने गए भा॰ २, पृ० ४७ । हैं उनमे से एक । परपरासिद्ध प्रमाण । इस बात का प्रमाण ऐडिशनल--वि० [अ०] अतिरिक्त । जैसे,—ऐडिशनल मैजिस्ट्रेट । कि लोक मै बरावर बहुत दिनों से ऐसा सुनते आए हैं। एडी-सज्ञा स्त्री॰ [१०] दे० 'एड़ी' उ०-वह चंचल चाल जवानी विशेष--यह शब्दप्रमाण के अंतर्गत ही आ जाता है। न्याय में की ऊँची ऐड़ी नीचे पजे !-कविता कौ०, भा० ४, पृ० ३२८ । ऐतिह्य अादि को चार प्रमाणो से अलग नहीं माना है, उनके एण--वि० [सं०] [स्त्री० ऐण]हिरन से सवधित । जैसे,—मृगचर्म, अतर्गन ही माना है । ऊन आदि [को०] । | ऐतु --संज्ञा पुं० [सं० अयुत दस हजार की सखयो । उ०—-अट्ठारह ऐणिक----वि० [सं॰] [स्त्री० ऐणिकी] कृष्णसार या काले मृग का छति छब्बिस ऐतु इकीस से उपर चव्वालिस । वाचन ऐतु शिकार करनेवाला । हिरन मारनेवाला (को॰] ।। बयालिस से 2ठासी विधि अतिघ्रति उन ईस |--भिखारी० ऐणेय-वि० [स्त्री० ऐणिको कानी हरिण से उत्पन्न या ग्न , भा० १, पृ० २३६ । उससे सवर्धित (को०)। एन--सच्चा पुं० [स० अयन] घर ! निवास । उ०—प्रान के ऐन में ऐणेय-सज्ञा पुं० एक प्रकार की रतिक्रिया | एकबध । रति का। नैन में वैन मे त्व रह्यो रूप गुनं नाम तेरो ---भिखारी ग्र०, भा० १, पृ० २३४ । एक ग्राभन [को०] । । एन-संज्ञा पुं० [स० एण] [स्त्री० ऐनी] मृग । हिरण । उ०--(क) एत --वि० [हिं०]३० 'एत' और 'इतना' । उ०—तुम सुखिया अपने जिन्हें देखिकै ऐन की सेन लाजी }---पद्माकर ग्र०, पृ० २२० । घर राजा । जेखिउँ ऐत सहहू केहि काजी -जायसी(पाब्द॰) । (ख) ऐन नै नि ऐनी भई वेनी गुही गुपाल -भिखारी ऐतरेय-या पुं० [स०] १ ऋग्वेद का एक ब्राह्मण ।। ग्न , भा० १, पृ० १६ । विशेष—इसमें ४० अध्याय और आठ पत्रिकाएँ हैं। पहले ऐन--सज्ञा पुं० [अ०] अति । नयन । उ०—जगजीवन गहि चरन १६ अध्यायों में अग्निप्टोम और सोमयाग का वर्णन है । १७• गुरु ऐनन निरखि निहारि–जग० वानी, पु० १३१ । २ १८ वें अध्याय में गवामयन का विवरण है जो ३६० दिनो अरवी लिपि का एक अक्षर जो इस प्रकार : लिखा जाता है। में पूरा होता है। १९२४ तक द्वादशाह यज्ञ की विधि और और जिसके उपर एक बिंदु लगाकर गैन बनाते हैं। उ०-- होता के कर्तव्य का वर्णन है, २५वें अध्याय में अग्निहोत्र नाम जगत सम ममुझ जग बस्तु न करु चित चैन । विदु गए। विधान प्रौर मूली के लिये प्रायश्चित्त अदि की व्यवस्था है । जिमि गैन तें रहत ऐन को ऐन }--स० सप्तक, पृ० ३९२ २६ ते ३० अध्याय तक सोमयाग में होता के सहायक की ३ स्रोत । चश्मा (को०)।