उत्संगक उसूत्रे
नज• [ने के दूप से प्राप्त धन । ६ नाइ व्रण का प्रातरिक उत्साद-मज्ञा पुं० [सं०] विनाश । संहार (को॰) । भाग । '७ शिवर। चोटी । ८ मत। ६. दुल । १० उत्सादक-वि० [सं०] विनाशकारी। ततायी । उ० –क्षमा वगल । ११ वितान् ! नहीं है खेल के लिये में ।। ताज उन्नादक दंड योग्य है ।--- उत्सगक-सज्ञा यु० [ स० उत्सङ्गक ] हाथ की एक मुद्रा का नाम प्रि० प्र०, पृ० १२३ । (को०) । | उत्सादन-मज्ञा पुं॰ [स०] १ नाश । क्षय । २ वाया देना । रोना । उत्सगित--वि० [सं० उत्सहित] १. संमिलित । युक्त । संयुक्त । २ | ३ उवटन या सुगधित नृप लगाना ! ४ घाव का पूरा होना । | गोद में निया हुआ । अलि गित को०] । ५ ऊपर चढ़ना । ६ उठाना । ७ भली भाँति खेत जोतनः उमगिनोज ब्री० [ म० उत्सइन् ] फुसी जो पलक के नीचे | हो जाती है [य] । या दुबारा खेत जोतना (को॰] । उत्सगो-वि० [ १० उत्सइन् ] १ साहचर्य में रहनेवाला । २ उत्सादनीय--वि० [सं०] १ नाश करने योग्य । २ चढ़ने योग्य [को०] । | गहरे पई चा हृया (व्रण) । उत्सादित-वि० [सं०] १ नृप्ट किया हुआ। २ सुगंध द्रव्य मे शुद्ध उत्सगो-ज्ञा पुं० व्रण ! गहरा घाव [क] । | किया हुआ । ३ चढाया हुआ । ४ उठाया हुआ (को०] । उत्स–नज्ञा पुं० [ म०] १. स्रोत । २ झरना । जलधार।। ३ उत्सारक-सज्ञा पुं० [सं०] द्वारपाल । चोवदार । जलमव म्यान । उमारण-सज्ञा पुं० [सं०] [वि० उत्सारणीय] १ दूर हटानः । निक- उत्सन्न-वि० [९] १ उन्छिन । उखाडा हुअा । २. बढी हुन्न । ३ । लना ! २ अतिथि का स्वागत करना । ३ गति देना । | पूरा किया हुआ । ४ ऊपर उठा हुआ (को०] ।। चलाना । ४ भाव या दर को कम कर देना को०] । उत्सर--सज्ञा पुं॰ [सं॰] एक वृत का नाम [को०] । उत्साह-संज्ञा पुं० [सं०] [वि० उत्साहित, उत्साही] १ वह प्रसन्नता उत्सर्ग--मज्ञा पुं॰ [सं०] [वि० उत्सर्गी, प्रौत्सगक, उत्स4] १ जो किसी आनेवाले सुख को सोचकर होती है और मनुष्य को त्याग । छोड़ना ।। कार्य में प्रवृत्त करती है। उमन । उछाह् । जोश । होसली । यौ०–पोत्सर्ग । ब्रोन्त ।
२. साहस । हिम्मत ।।
२ दान । न्योछावर ! ३ समाप्ति । एक वैदिक कर्म ।
विशेप-उत्साह वीर रस का स्यायी माना जाता है।
विरोध - यह पूछ महीने की रोहिणी और अप्टका को ग्राम से उत्साहक-वि० [सं०] १ उत्साह देनेवाला । २ कर्म में रुचि लेनेवाला
वाहर जल के ममी अपने गृह सूत्र की विधि के अनुसार किया
कि॰] ।
जाता है। उसके बाद दो दिन एक रात वेद की पढ़ाई बंद उत्साहन- संज्ञा पुं० [सं०] १ उत्साह देना । कर्म को प्रेरणा देना।
रहती है ।
अध्यवसाय । उद्यम [को०] ।
४ व्याकरण का कोई माघारण सा नियम ।
उत्साहवर्धन–सज्ञा पुं० [सं०] १. उत्साहू की वृद्धि । ३ शक्ति का
उत्सर्गत -क्रि० वि० [सं०] माधारणतः । नियमत । सामान्य रूप से
अधिक हो जाना । ३ वीर रस [] ।
कि०] ।।
उत्साहवृत्तात-- सज्ञा पुं० [सं० उत्साहवृत्तात] उत्साह को बढ़ाने की
उत्सर्गी-वि० [सं० उत्सगिन् त्यगिनेवाला । निछावर करनेवाला ।
युक्ति या कौशल । युद्ध के लिये उत्तजित करने की क्रिया [को॰) ।
०] ।
उत्सर्जन--वि० [सं०] [ वि० उत्सजित, उत्सृष्टि ] १. त्याग ।।
उत्साहशक्ति-संज्ञा स्त्री० [सं०] चढ़ाई तथा युद्ध करने की शक्ति ।
छोइन । दान । ३. एक वैदिक गहकर्म जो वर्ष में दो उत्साहसिद्धि–संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] वह कार्य जो इत्साहानि ( लहन
वार होता है, एक पूस मे, अर दूसरा श्रावण में ।
| भिड़ने के साहस) से सिद्ध हो ।
उत्सर्प-सज्ञा पुं॰ [त०] दे॰ 'उत्नर्पण' । ।
उत्साहहेतुक-वि० [सं०] उत्तजित या उत्नाहित करनेवाला ।
उत्सर्पण -सज्ञ । पु० [स०] १. ऊपर चढ़ना । चढ़ावे । उल्लघन । उत्साही-वि० [२० उत्सरहिन् |उत्साहयुक्त । उमगवला । हौग्लै वाला।
लाँघना। ३ फूलना। ३ फैल जाना।
उत्सितं-वि० [सं०] १ जिसका उत्सुक हुअा हो । अभिषिक्त । सिंचति
उत्सपियो -सज्ञा पुं० [स०] जैन मतानुसार काल की वह गति या
२ घमडी। विन्मत्त । ३. चलचित्त । अस्थिर चित्तवाला
अवस्वा जिसमें रूप, रस, गंध, स्पर्श इन चारो की क्रम से ।
क्वेि] ।
वृद्धि होती है ।
उत्सुक-वि० [सं०] १ उत्कठित। अत्यंत इच्छुक । चाह से कुल ।
उत्सप---वि०सि० उत्सपिन् १ ऊपर चढ़नेवाला । २. उत्तम ।
उ०—वे यह पुस्तके देखने के लिये बड़े उलुक है। (शब्द०)।
श्रेष्ठ (को०] ।
२. चाही हुई बात में देर न सहकर उसके उद्योग में तत्पर ।
उत्सर्या-ज्ञा स्त्री० [सं०] गर्भयोग्य अवस्था को पहुचती हुई उत्सुकता--मज्ञा क्री० [सं०] १ अकुत इच्छा । २. किसी कार्य में
गाय (को०] ।
विलवे न सहकर उसमें तार होना । पहे रस में एक सवारी
उत्सव-संज्ञा पुं० [सं०] १ उछाह [ मंगल कार्य । धूमधाम । जलसा ।
भाव हैं।
२. मंगन समय 1 त्योहार। पवं । समैया । अानद। विहार ! उत्सु–वि० [सं०] १ नून में मुक्त । नियमविहीन । २. धागे से
जैसे, मुत्सव ।
पृथक् (ये ।।