पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१०३

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( ५८ ) श्रौर लोग इधर-उधर भटक कर केन्द्रिय' जैसे गलत प्रयोग करेंगे; जैसा कि करने लगे थे। हिन्दी को यह पसन्द नहीं; इसी लिए इसने “विस्तर' ‘ग्रहण नहीं किया । यदि संस्कृत का एकान्त झाग्रह किसी हिन्दी-विद्वान् को हो, तो उसे फिर 'विस्तर से अपने मन की बात बतानी होगी और हमारे इस विस्तार से प्रतिपादित मत का खंडन करना होगा । जब हिन्दी ‘विस्तर' ग्रहण कर लेगी, तब ‘राष्ट्रिय' के साथ राजनीतिक भी ले लेगी । अन्यथा, राष्ट्रीय तथा राजनैतिक ही विशेष यहाँ चलें । यह न हो सकेगा कि 'नैतिक एक जगह लोग लिखें और दूसरी जगह 'नीतिक' लिखें । हिन्दी का सीधा रास्ता है । संस्कृत का ‘अभिलाष’ ही हिन्दी में ‘अभिलाषा' है और दार’ यहाँ दारा है । क्या अभिलाषा' और 'दारा' हिन्दी में गलत हैं ? | इसी तरह हिन्दी ने संस्कृत की प्रायः सब सन्धियाँ ज्यों की त्यों अपना कर भी रो रि' तथा 'ढलोपे पूर्वस्य दीघऽणः-वाली संस्कृत-सन्धि ग्रहण नहीं की है। संस्कृत के ज्ञानेन्द्र ‘सुखोपभ' श्रादि शब्द-प्रयोग यहाँ बराबर चलते आए हैं, चल रहे हैं और प्रलय-पर्य्यन्त चलते रहेंगे; परन्तु पुनारचना' या ‘अन्तारमण' यहाँ न चलेंगे । वे प्रयोग हिन्दी-प्रकृति के अनुकूल नहीं हैं । यहाँ “पुनर्रचना' तथा 'अन्तर्रमण' ही चलेंगे । अन्यथा, ‘पुनर्निर्माण लिखिए, अन्तः-रमण” लिखिए । परन्तु पुना' तथा 'अन्ता’ यहाँ न चलेंगे । ‘पुनः-रचना' चल सकता है। हिन्दी सर्वत्र संस्कृत-नियमों से बँधी नहीं है। संस्कृत में जहाँ दीनबन्धु चलता है, हिन्दी ने वहाँ ‘दीनानाथ' भी स्वीकार किया है-“दीनबन्धु, दीना- नाथ, मेरी सुध लीजिए।' ग्रह ‘दीनानाथ' संस्कृत-व्याकरण के किस सूत्र से सिद्ध है ? क्या इस की जगह कोई ‘दीननाथ’ चला सकता है ? या हिन्दी से दीनानाथ’ कोई वा सकता है ? इसी तरह मूसलाधार' तथा 'सत्यानाश जैसे शब्द हैं । क्या ये संस्कृत-व्याकरण से 'शुद्ध' हैं ? और क्या हिन्दी में इन्हें कोई अशुद्ध कह कर ‘मूसलधार’ लिख सकता है ? संस्कृत में जैसे विश्वा- भित्र' बन गया, उसी तरह हिन्दी में ‘दीनानाथ' तथा ‘भूसलाधार बन गए। अपना-अपना क्षेत्र है। यह भाषा की प्रकृति ही है कि संस्कृत के 'मूर्धन्य' जैसे क्लिष्ट शब्द सादर ग्रहण करती है, परन्तु विदेशी भाषा के ‘हास्पिटल' जैसे उच्चारण-क्लिष्ट शब्द को ‘अस्पताल' जैसा कोमल रूप देकर अपनाती है । ‘जरूर' हिन्दी में चलता जरूर है, परन्तु तद्भव रूप में-‘ज़रूर' तद्रूप नहीं । कारण, ‘जरूर' में “ज”