पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१११

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बीसौं एक से एक बढ़ कर ऐसे ‘टीका-ग्रन्थ’ बने कि देख कर बुद्धि चक्कर जाती है ! सो, पाणिनि का व्याकरण इसलिए रहा, क्योंकि वह संस्कृत साहित्य के ‘लक्ष्य’ ( शब्द-प्रयोग ) पर दृष्टि रख कर बनाया गया । यदि ऐसा न होता, तो यह भी उड़ जाता है। व्याकरण की कहानी | संसार में सब से पहले व्याकरण का जन्म भारतवर्ष में हुआ। जब वेदों की रचना हुई, वैसा साहित्य बना, जो आज भी विश्व में अरनी जगमगाहट फैला रहा है, तब भाषा-व्यवस्था की सूझ भी पैदा हुई । देवता लोग इन्द्र के पास पहुँचे और उनसे प्रार्थना की “आप हमारी भाषा का एक व्याकरण बना दीजिए।' इन्द्र ने देवों की यह प्रार्थना स्वीकार कर ली और वैदिक संस्कृत का व्याकरण बना दिया । संसार में पहले-पहल भाषा का यह विश्ले- पण हुआ। आज इन्द्र का बनाया संस्कृत-व्याकरण उपलब्ध नहीं है, केवल नाम भर व्याकरण-इतिहास में आता है । इसके अनन्तर “लौकिक संस्कृत के जो व्याकरण बने-बिगड़े, उनके भी प्रायः नाम ही शेष हैं । पाणिनि-व्याकरण अवश्य प्रलय-पर्यन्त ऐसा ही रहेगा । द्वितीय प्राकृत के, प्राकृत के विभिन्न भेदों के, अवश्य वैसे व्याकरण बने, जिनके बताए नियमों पर चले फर प्राकृत-साहित्य के निर्माता, संस्कृत शब्दों को प्राकृत-रूप देने की धुन में, एक विचित्र भाषा ही बना गए ! प्राचार्य हेमचन्द्र ने तो प्रायः तीसरी प्राकृत ( 'अपभ्रंश-अवस्था' ) के समय अपना प्राकृत-व्याकरण बनाया । इस समय भी व्याकरण का पूरा ध्यान साहित्य में रखा जाता था। इस तीसरी प्राकृत (अपभ्रंश' ) के समय { भारतीय आधुनिक भाषाओं के आदिकाल ) में भी व्याकरण-प्रभाव साहित्य पर था । ईसवी आठवीं शताब्दी के भाषा-महाकवि 'स्वयंभू' ने व्याकरण का महत्त्व काव्य-भाषा के लिए स्वीकार किया हैः-- ‘वायरण कमाइ ण जाणियउ, उ वित्ति-सुत्त वृक्खायिउ