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हिन्दी शब्दानुशासन

( पूर्वार्द्ध )
प्रथम अध्याय

शब्दानुशासन को ही व्याकरण कहते हैं। पाणिनि-व्याकरण के महाभाष्यकार महर्षि पतंजलि ने ‘शब्दानुशासन’ शब्द ही अधिक पसन्द किया है। ‘व्याकरण’ की अपेक्षा ‘शब्दानुशासन’ शब्द में स्पष्टार्थता अधिक है; तथापि ‘व्याकरण’ इतना प्रचलित है कि यहाँ वह ‘अर्थ’ स्पष्टतर दिखाई देता है। परन्तु योगार्थ ‘शब्दानुशासन’ में अधिक स्पष्ट है। शब्दों का अनुशासन ही यहाँ सब कुछ है। हिन्दी के शतशः प्रचलित व्याकरणों से यह एक पृथक् चीज है, यह ध्वनित करने के लिए ही हम इस कृति को ‘शब्दानुशासन’ नाम दे रहे हैं; क्योंकि इससे पूर्व इस नाम का कोई ग्रन्थ, इस विषय का, हमने देखा-सुना नहीं। वस्तु-भेद से नाम-भेद अर्थ रखता है। ‘शब्दानुशासन’ से उपक्रम कर के पतंजलि ने आगे सर्वत्र (‘महाभाष्य’ में) ‘व्याकरण’ शब्द का व्यवहार किया है। ‘व्याकरण' शब्द बहुत पुराना है। संसार का सर्वप्रथम व्याकरण कैसे बना, इसका वर्णन ‘ऐन्द्रवायव्य ब्राह्मण’ में आया है, जिसे वेदभाष्यकार महामहिम सायण ने ऋग्वेद-भाष्य के उपोद्धात में उद्धृत किया हैः―