पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१२३

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वाग्वै पराच्यव्याकृतावदत्ते देवा इन्द्रमबुवन्निमा सो वावं व्याकुर्वति- सोऽब्रवीत् वरं वृणे । तामिन्द्रो मध्यतोऽवक्रम्य व्याकरोत् । तस्मादिर्य व्या कृता वाक् ।। प्राचीनतम भाषा पहले अव्याकृत थी--उसका कोई व्याकरण न था । फिर किती समय देव जनों को एक शिष्ट-मण्डल इन्द्र के पास पहुँचा और निवेदन किया कि हमारी भाषा की व्याकरण बनना चाहिए, सो आप बना देने की कृपा करें । इन्द्र ने कहा-बहुत अच्छा, स्वीकार है । तब इन्द्र ने भाषा ( के शब्दों या पदों ) को बीच से तोड़-तोड़ कर इसे व्याकृत किया-- भाषा का व्याकरण बनाया । अर्थात् प्रकृति-प्रत्यय आदि की कल्पना कर के इसे अधिक सुबोध सुन्दर बना दिया। तब से यह भाषा व्याकरण- नियन्त्रित है।' | इस ‘ब्राह्मण'कथा के व्याकुरु तथा व्याकरोत्-व्याकृता' शब्दों में जो उपसर्ग तथा घातु शब्द हैं, उन्हें ले कर करण -प्रधान 'व्याकरण' शब्द बना लिया गया-व्याक्रियतेऽनेनेति व्याकरणम्-जिस शास्त्र से भाषा व्याकृत की जाए, इसके पदों को तोड़-तोड़ कर प्रकृति-प्रत्यय अादि का ज्ञान-विधान किया जाए, वह व्याकरण' है । व्याकुरण' शब्द कर्तृ-प्रधान भी हो सकता है-*व्याकरोति' भाषामिति व्याकरणम्-जो शास्त्र भाषा को व्याकृत करे, वह

  • व्याकरण' । “व्याकृतिः-व्याकरणम्' यों भावप्रघान भी ।

यों प्रकृति-प्रत्यय आदि की कल्पना करके पद-व्युत्पत्ति करने से यह शास्त्र व्याकरण' है और शब्दों का परस्पर सम्बन्ध-विधान आादि करने के कारण इसे 'शब्दानुशासन' कहते हैं । ने, से, को आदि विभक्तियाँ प्रकृति से अलग करके भाषा-तत्व समझाने के कारण यह ‘व्याकरण' है और इन विभक्तियों का कहाँ कैसे प्रयोग होता है, या करना चाहिए; यह सब बताने के कारण इसे 'शब्दानुशासन' कहते हैं । कद-कारक में ही 'ने' का प्रयोग होता है, अन्यत्र कहीं नहीं; यह अनुशासन समझ लेने पर कोई भी अहिन्दीभाषी कितना विश्वस्त हो जाएगा; समझ सकते हैं। को’ तथा से' विभक्तियाँ भी कभी ‘क’ कारक में लगती हैं। कब और किस अवस्था में इनका ऐसा प्रयोग होता है, यह अनुशासन समझ लेने पर यह भ्रम उड़ जाएगा कि - कर्म' तथा 'सम्प्रदान' में ही ‘को' का प्रयोग होता है और करण तथा ‘अपादान में ही ‘से की । इस भ्रम के उच्छेद से भाषा का ज्ञान कितना सरल हो जाएगी ? भाषा की सब गतिविधि सामने आ जाएगी । इसी तरह