पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(९४)


व्यंजन और उनके भेद

     व्यंजन वर्गों को तीन मुख्य श्रेणियों में बाँटा गया है-
   ( १ ) अन्तस्थ ( २ ) ऊष्म और { ३ ) वर्गीश् ।

शु, र, ल, ३ इन कार यश को ऋतुस्थ' कहते हैं । श, ष, स, है इन चार व्यंजन दाई को ‘ऊष्म' कहते हैं, और ‘क’ से स’ अर्धन्त, पचीस व्यंजन ‘वर्गीय' कहे जाते हैं। इन्हें संकुर में 'पश' भी कहते हैं । पन:पच व्यंजनों का क-एक वर्ग है । कुन १ च 'व' हैं। ये वर्ग उबारशा स्थान का एक को लेकर किए गए हैं। उच्चारण में ‘अल्तस्थ तथा ऊष्म’ ; इन्हीं प, दो वों में कहीं न कहीं आ जाते हैं, परन्तु उनके पृथक् उपनिवेश इन नामो से बन गए, तब वहीं अलग गिने जाते हैं। उन्हें थों लाने से पाँच-पाँच की। सुन्दर बनी हुई लड़िय भई घर-बड़ कर मजे ही जातीं ! इसी लिए पॉन्च.. पाँच व्यंजनों के पाँच वर्ग बना दिए गए। इन्हे इसी लिए ‘वर्गीय व्यंजन इते हैं हिन्दी वर्णमाला मे- १--क, ख, ३, ५, ६, केंद-थान कवर्ग २–च, ॐ, ज, झ, ञ, तालु-स्थान-चवर्ग ३ ट, ठ, ड, ढ, ण, --- मूद्ध- न- टब ४ त, थ, द, ध, न, दन्त-स्थान-तवर्ग झो-स्थनए कवर्ग-‘क’ के वर्ग वाले । इसी तरह चवरा आदि । पाणिनि ने अपने वसमाम्लाथ में स्थान भेद से नहीं, ‘अल्पग्राण-महाप्राण { ‘प्रयत्न के ) भेद से स्पर्श व्यंजनों की व्यवस्थित क्रिया है- १-ञ, म, ङ, ण, न - ( अनुनासिक अल्पप्राण ) २-झ, भ, घ, ढ, ६ - ( बर्गीय महाप्राण ) ३-ज, ब, ग, ड, द - ( वर्गीय अल्पप्राण ) ४-ख, फ, छ, ठ, थ - ( बर्गीय महाप्राण ) ५---छ, ट, त, क, प - ( वय अल्पप्राण ) यौं दूसरी तरह से पाँच ‘वर्ग हो गए। एक श्रनुनासिक अल्यप्राणु वर्ग, दूसरा चतुर्थ व्यंजनों का महाप्राण वर्ग; तीसरा तृतीय व्यंजनों का अल्पप्राण वर्ग, चौथा वर्गीय चतुर्थ व्यंजनों को महाप्रारी वर्ग, पाँचवाँ वर्गीय प्रथम अक्षरों का अल्यप्राण वर्ग ।