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दिया’ यों बोला जाता है। राजा' शब्द प्रति-पद मिलेगा। इस लिए ‘राजा’ यहाँ प्रातिपदिक है, जो हिन्दी की किसी विभक्ति के बिना भी ‘राजा राज्य करता है य ‘पद' है--चलता है। यदि किसी बच्चे का नाम ‘राजन’ रख दें, तब यह अलग चीज है। मेरा पौत्र राजन अभी एक बरस का है । संस्कृत के प्रातिपदिक राजन्’ से हिन्दी का यह प्रतिपादक राजन भिन्न है।

पद और अर्थ

व्याकरण में सार्थक शब्दों पर विचार होता है, यानी विचार तो शब्दों पर होता है; परन्तु ध्यान अर्थ पर भी रहता है। जिस पद से जो अर्थ ( चीज ) समझ में आए, वही उसका ‘अर्थ’ । शब्द को ‘वाचक' और अर्थ को ‘वाच्य' कहते हैं । अर्थ’ मूर्त-अमूर्त सभी तरह के होते हैं । संसार में जो कुछ दृष्ट, श्रुत, अनुमित थी कल्पित है, शब्द का ‘बाच्य’ है । शब्द वाचक और उस का अर्थ अध्य’। म ने पानी पिया' वाक्य में तीन पद हैं । राम’ एक पद है, किसी व्यक्ति को बताता है । ‘पानी' दूसरा पद है, जो उस चीज का वाचक है, जिसे संस्कृत में ‘जल' और अंग्रेजी में वाटर' कहते है; जो नदियों में बहता है, मेव से बरसता है और जिसे पी कर प्राणी जीते हैं।

  • पिया' उस क्रिया का ( भूत काल का ) वाचक है, जो पानी अादि द्रव

पदार्थों को मुँह में ले कर गले से नीचे ( पेट में ) उतार लेने में प्रसिद्ध है। ‘न' एक विभक्ति है, जो हिन्दी में भूत काल की सकर्मक क्रियाओं में लग कर कर्तृत्व प्रकट करती है । '३' विभक्ति के बिना भी छोटे बच्चे ‘राम पानी पिया बोल देते हैं, तो सतलब हम वही समझ लेते हैं । परन्तु “राम रहिन्द देखा वे बोलें, तब समझने में कठिनाई होगी कि किसने किस को देखा | यहाँ कर्ता-कारक में 'ने' लगाने की जरूरत है। ये विभक्तियाँ ‘ने' आदि स्वतः किसी ‘अर्थ’ में संकेतित नहीं हैं; परन्तु अर्प-संकेतित शब्दों में लग कर कर्तृत्व आदि प्रकट करती हैं। यही इनका अर्थ या प्रयोजन है । वैसे, आप किसी का नाम ही ने’ या ‘को' रख दें, तब ये शब्द जरूर ( उस अवस्था में ) “प्रातिपदिक्क होंगे; ‘पद' भी कईला सकेंगे वाक्य में आकर । 'ने' को तब क्रो' ने पीट दिया ‘यौं वाक्य भी बन जाएगा । या फिर बैंसी विवक्षा में विभक्ति के ही अर्थ में--‘क’ की प्रयोग-सीमा अधिक व्यापक है' यों स्वतन्त्र पद की तरह प्रयोग होगा । परन्तु राम ३’ ‘कृष्ण को' आदि पदों में ये विभक्ति-मात्र हैं; पदों का कर्तृत्व आदि प्रकट करने के लिए।