पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२३२

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( १८७ } स्त्रीलिङ्ग ईकारान्त सभी शब्द यहाँ भी स्त्रीलिङ्ग में ही चलते हैं। हिन्दी के बड़ी' ‘मिठाई खटाई 'खिड़की' आदि ईकारान्त शब्द स्त्रीलिङ्ग हैं हीं । विदेशी ‘शाइजादा' आदि भी हिन्दी-पद्धति पर शहजादा-शाहजादे' र शहजादी' । शाहजादा' का जादा” एक तरह से तद्भव शब्द है---‘जात ( पुत्र ) का विकास । पु‘विभक्ति लगी है । 'वालदा' ( ‘मा' ) आकारान्त स्त्रीलिङ्ग है हो । यह ध्यान रखने की बात है कि हिन्दी में शब्द विकास को ध्यान में रख कर ही पुंस्न था व ॐ चलन प्रायः हुई है। शत्र' संस्कृत में इसक लिङ्ग हैं, ईन्दी में स्वभावतः पुलिङ्ग । इस ‘गा। कह तद्भत्र रूप

  • गत भी हिन्द में पुलिझ है, ठके हैं। हस्त’ र ‘ध’ : पुलिङ्ग

परन्तु बात' तथा ' स्त्रीलिङ्ग ई; य* 'त' इथः २' लाई संस्कृत नदों के थू रूपान्तर ! ‘द’ र ‘परहेज' बुलिङ्ग है; परन्तु

  • सेज' अर व स्त्रीलिङ्ग हैं; क्योकि संस्कृत शिक्षा तथ: २

के थे तदुभत्र रूप हैं ‘काकर पुल्लिङ्ग है; परन्नु ल' का बना कर स्त्रीलिङ्ग है । संस्कृत अक' से बनः आक्र' इरिङ्ग है; पर नालिझा' का तद्भव ‘नाक' अलिङ्ग है । ऋणु' का उद्भव ‘इन’ पुल्लिङ्ग है; परन्तु तान’ स्त्रीलिङ्ग हैं । श्रान, जान, शान झाद भी । झहीं-कहीं कोई, अपवाद भी है! **नवन' अदि संस्कृत के नपुंसक लिङ्ग शब्द यह पुलिई हैं ( और मात्र आदि के तत्र ‘ात' आदि भी है; परन्तु ‘अन्नि' झा तद्भव अाँख’ यहाँ स्वादिङ्ग है ! आँखें दुखती हैं 'अँचिव इरिदसन की प्यासी ।' संस्कृत में 'जाति' लङ्गि है; पर ज्ञाति पुल्लिङ्क ६-इमें में ज्ञातवः' । अर्थ-भेद है। ज्ञातयो बान्क्ष । हिन्दी में

  • शा दही वत, इस के तद्भव छ नैहर आदि साल में देखे जाते हैं ।

संस्कृत के उद६ ‘जलाधि ६ि पुलिङ्ग ब्द इन्दं में उल्जि हैं। हैं-समुद्र की तरह । परन्तु निधि लिङ्ग है, सम्प’ि आदि की तरह ! संस्कृत के 'अ' श्रादि दुई शब्द हिन्दी में कई इङ्गि ही चलते हैं । परन्तु दे%ि था ‘दर्ह' बुल्लिङ्ग चलते हैं-जैसा दूध, जैसा दईदै ! क’ ॐ धम् ‘ख’ है, इसी लिइ एक पर चल पड़ा ! ‘नाक’ : ही रह सक क' ‘इक' आदि में लिङ्ग । परन्तु संस्कृत के 'शाक का' अदि पुलिङ्ग हैं इदं झे तद्भः 'हाम’ ‘क’ ऋदि ई पुलि$ । 'नाग' में पुल्लिङ्ग है; परन्तु इ “दाक' का रूपान्डर नहीं । ‘नासिकः ॐ नऊ' छन