ऋकारान्त शब्द हिन्दी में चलते ही नहीं ! आपने' के नहीं और संस्कृत
के ‘प्रथमा कवचन' में न होने के कारण् ‘मिता’ ‘भा जैसे अकारान्त
रूप में झाते हैं । इन के वर्ग में कोई झंझट ही नहीं है । 'दुहिताः
स्त्र और विधाता' पुंव । एकारान्त ऋदि : द भी हिन्दी में बहुत
कम हैं और उन के लिङ्ग-निर्णय में भी कोई कालाई नर्ह । संस्कृत का
यदिन्दी में स्त्रीलिङ्ग हैं हीं । संस्कृत ः यह ऋोकान्त २' शब्द है,
भिस क्र रूप ‘था' के इकलन में सौः' होता हैं। जिंदा अल कर
के हिन्दं नै ‘गौं मात्र ले लिया है। छत से हो; अब्द सुल्झि ६ हैं;
हिन्दी में केंदल स्त्रीलिङ्ग । अन्त में बैल कोई सः ‘: इहे हैं, पर कृ ।।
इझर झड़ रहे हैं ब्द पर सह भाडि छः भई दड़ा
है । इ' बुद्धि है; अन् ।” अलिङ्ग है या फार ? ' का बुर
‘छ' ॐ साई इले-हृते धू' ने लिङ्ग छ ? ! लू शुद से:
के ‘’ का रूपान्तर ६ } इस ब्ट्र का विकास व ३१८' के इत्र में
नई हु:, किती। दूसरे अङ्क में हुआ है; अन्य ६ प्रदेश के बै
चल में | इसी लि पुत्रिभक्ति नहीं लगा । * बोल' में भी 'सु' ले
लिया, जैसे “श' का 'बस' । 'बाँस’ - पुल्लिङ्ग हैं, 'बैद' की ही तरह हैं।
परन्तु स’ स्त्रीलिङ्ग है ! अह । ? ? न प है कि इस पर
‘ास' ( अशा }, “प्त' ( दिए । आदि की छः प्र है और दूब
{ दूवी ) का भी प्रभाव पड़ा हैं ! तास = ‘ता' एलिझे हैं, “प्रचं' के प्रभाव
से-'ता-भत्ते ‘ताइ-से चलते हैं। संस्कृत का उल्ल’ हिन्दी में पुलिङ्ग
हैं ही; इसके विभिन्न सद्भब रू १' ल’ ‘पारख’ अछि । एलिझ ही है;
दुरन्तु धू’ लिङ्ग है । इस ८, कि यह होऊ न हुभुक्षः ।
रूपान्तर हैं । भू, दले, यु । ला छु ), एन । यदि ), छात्र
{ इनः इशा सा } अ६ के प्रभाव में चल तथइ देख- अदि
- स्त्रीलिङ्ग ! पर 'देउ-रेवा' ॐ अव से देख-ल' आदि और अगै
एक लाइन-काट-छाँट, साल-भाल, चमक-दमक श्रादि ! | शु' का दस युल्लिङ्गः परन्तु श्वा’ की ‘वाँस’ स्त्रीलिङ्ग । 'हवा' फा प्रा पड़ा हो ! अकारान्त नवु सङ्ग लिङ्ग संस्कृत-ब्द हथः इनके रूपान्तर हिन्दी में प्रायः पुलिझ रहे हैं, परन्तु अन्य कई क्ष लिङ्ग बन गया है ! दाँत' ( पंक्ति ) का प्रभाव जान पड़ता है। पुलिङ्ग झर्कश