पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२६१

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म की-सी बात-चीत न कोसो घर रस के अचून राम की-सी बातचीत ।। ब्रजभाषा-पद्यों में रस को-सौ रूप’ गलत लिख देते हैं और कियौ ‘यौ आदि भी गलत ! ‘अ’ वरपरा-प्राप्त है । सूर आदि ने ‘ऐसो ‘कैसी

    • अादि प्रयोग किए हैं-‘ऐसौ’ ‘कैलौ' 'मीठौं' जैसे नहीं । ब्रज-जनपद

में कई ‘’ बोलते होंगे ! पर साहित्यिक ब्रजभाषा में राम को-सौ रूप गलत है। अधिक परिशिष्ट में कहें ये । हो, यह 'सु' संस्कृत 'सम' का संक्षिप्तरूप है। राम सुम रूप और

  • राम सा रू' एक ही चीज है । सम--स + { { }='सा' । ब्रज में

इस तरह ऐसा अादि समस्त पद ठरते हैं। यह’ को ‘ए’ और ‘वह ॐ वै रूप मिल जाता है----‘स’ परे आने से । इस का सा-‘ऐस' और उस का वैसा' ! इस तरह कैसा श्रादि । छात्रों के लिए जब-व्याकरण इर्ने गे, तो ऐसा वैसा' श्रादि विशेषणे को ‘बह वह' आदि सर्वनामों के साइ-चक ला’ ( <सम ) से समाप्त कर के बतलाने में सुविधा रहे बी; यह कहना है । 'हा' संज्ञा से, या ‘क’ धातु से कड़ाही' और इलका वृहदर्शक रूप कद्दाहा' इतायः आ६ ; पर निरुक्त में संस्कृत

  • कटाइ' का झिाल झड़ाइ' बतलाया जाए ।

। आइए जा चुका है कि खड़ी बोल' की ही तरह ब्रजभाषा में भी बहुवचन और लीजिङ्ग विशे रहते हैं- जैसे मनोहर राम लखी, सुनु सो विदेइ-सुता मन मोहै। 'है' झा छ तैसी’ रूप है। ब्रजभाषा में बैसो के साथ तैसो' विशे- झरा भी चलता है। कारण यह कि उहाँ २' के रूप ‘दाको' आदि और 'सो'

  • ए 'ता' आदि चलते हैं। छः ‘क’ सामने होता है, तब सो रहता

है जानैं हो पायै” “अझ मारा चाहिए चित्र लाठी बिन बाव, ताको इहैं। हिए कि इस दुई छा} हिन्दी में भी जैसे को तैसा” अादि चलता