पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२७५

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१ २३० ) इतना निश्चय हैं कि हेर; लड़का ( संस्कृत-वदीयः पुत्रः) तेरी लइकी ( संस्कृत-त्वदीया कन्या ) मेरे लड़के (स्कृत-मदीयाः पुत्राः ) हमारा लङ्कका १ संत-अस्मदीयः पुत्रः ) र का कपड़ा { सस्य वम् ) श्रादि में “तेरा' झादि भेदों को विशेषण नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इनसे बंध अझ की प्रति होती हैं। यदि ये ‘विशे' होते, तो पृथक

  • दक' नाम की जरूरत ही क्ः थः । परन्तु संस्कृत के वैयाकरण ने भेदक

को भी ‘विशे” इी मान लिया हैं-सभी भेदक विशेषण--- 'भेद्यं विध्यमित्याहुदकं तु विशेष्ाम् । और- अयुत्पत्तिस्तु भेदकात्’ दिव्य को ही भेद्य कहते हैं और विशेषण को भेदक कहते हैं । भेदक में छः विभक्ति लगती हैं--‘तव पुत्रः रामस्य पुत्रः । षष्ठी का अर्थ तद्धित-प्रत्यय से भी निकलता है; यानी भेदक तद्धिान्त भी होता ई-वदीयः पुत्रः- “तेरा लुका’ ! पर भेदक को तरह विशेषण से तो ठे होत नईः, न संबंधं-त्यय ही । नील कमल' में नील' विशेष है । यदं सभी विशेषछ भेदरू हों, तो 'नील' में भी घड़ी लग जाएगी और

  • लिं काम्' की जगह नीलस्य कसल’ होने लगेगा ! “नीला कमल'

झी स्वदह नीले झा कुसल कौन बोलता है ! ‘भेद्य' को विशेष्य और भेदक के निशेषण य दिशेच्छ को भेद्य और विशेष को ही भेदक कहते हैं। तो फिर ‘युत्पत्तिलु भैहकार्’ गड़ा उता है। कहा यह जा सकता है । के नेद बक्षीयुक्त होता है - तव पुत्रः त्वदीया पुत्री हिन्दी - तेरा लड़का ---तेरी लड़की के संबंध में भेइक हुए । परन्तु विशेष में घधी नहीं लगती। यह झूसरी बात है कि भेदक कहीं विशुद्ध भैद' ही रछे और कहीं विशेषण भी बन ६ देर का तेरी लट्टी' में “तेरा-तेरी भेदक ही हैं।