स्पष्टता नहीं कि वह पड़ने वाली कन्या' किस की है और लड़के क्रिस के
हैं ! त्वदीय' तथा 'तेरें भेदक से भेद खुल जाता है । परन्तु----
३-सुशीला कन्या पद्धति { सुशील लर्क पदी )
२-अच्छे लङ्कके पढ़ते हैं, बुरे लइके 'दुख पाते हैं।
यहाँ ‘सुशील कन्या' सुशील लड़की' तथा 'अच्छे लड़के' प्रयोग में
विशेष्य-विशेषण है; भेद्य-भेद नहीं है सुशीलता' कन्या में है और अच्छा-
पन' लड़कों में हैं ! परन्तु 'हे केन्यः पढ़ती है' में “तू’ और ‘कन्या' लि--
भिन्न हैं। राम के लडझे मैं रा और लड़के अलग-अलग । इसी
तरह-
पहाड़ के लड़के, यहाई की जड़ की, पहाड़ का लड़का
‘क’ प्रत्य से अद्द के लड़के, पहाड़ को लड़की, पहाड़ के ङझे ।
| यदि विशेषता बतलान हो, तो ' प्रत्यय से ---यहाइ लड़की है ।।
कोई विशेषता कइनी हो, तद यह विशेषण कहा जाए । 'नागपुरी सन्दरे ।
लखनऊ के खरबूजे में लखनऊ के विशेषण है। यानी कोई विशेषता लिए,
हो, तो विशेषण और संबन्ध मात्र हो, तो भेदक । ।
सौवरणं फङ्गम् ( संस्कृत }
सोने झा केकण्ड (हिन्दी)
यहाँ सौवर्ण' तथा 'सोने का विशेष हैं। इन तद्धित-प्रत्यय से भेदक
भी बनता है, विशेषज्ञ भी ! सुवर्ण कडू में औदत है । इस लिद विशे-
पण' । 'सोझै की जबर' में लोहे की विशेष हैं, 'जंजीर' झा; इर्थी लिए
स्त्री-लिङ्ग | श्राकारान्त पुल्लिङ्ग संज्ञा से परे तद्धित-प्रत्यय आता है, तब
( प्रकृति के ) अन्त्य 'अ' ॐ “ए हो जाता हैं-‘सोने की कवनी लोहे के
क” । “सोनेकी' और 'लोई ईशेषण है ।।
यानी ये चीज़ की दिदंपतर के यर व्याप्ति हो, तो विशेषण और
संबंध-विशेष से ब्यावृत्ति हो, तो भेदक । झाम दोनों को एक है । भो दर
पर भेदक को भी विशेघ इा-समझाया जा सकता है, या भेदक को एक
तरई का विशेदवा' हा जा सकता है। विशेषणछल्पः कृढ़ सकते हैं ।
बच्चों को तो साधारण विशेष्य-विशेष बल देना ही प्राप्त है । रन्नु
प्रौढ़ अन्र्थों में भेद जरूरी है। इसी लिए यहाँ इतना कहा गया है।
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