पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२७७

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( २३२ ) 'मैं तुझे ढूँढ़ता रहा, पर दूर मिला तु' की पुनरुक्तिं हटा दीजिए--- 'मैं हूँढा रा; पर द भिला नई' । ये ग्रौर ' सर्वनाम हैं-उत्तम पुरुष और मध्यम पुरुष' ।

  • अन्युपुरुष सर्वनाम हैं--प्रह’ ‘वई'। और भी इन के भेद हैं। उत्तम

पुरु’ अंग्रेजी में थर्ड पर्सन' कहते हैं, जो ठीक ही है। उत्तम पुरुष में ‘उत्तम' का वह अर्थ नहीं, औ साधारणतः स्थिर है। मध्यम' नाम रखने से ‘प्रथम श्रीर ‘तृतीय स्वतः आ जाते हैं । परन्तु ‘तृतीय' शब्द से “चतुर्थ की भी जिज्ञासा हो सकती है; और प्रथम, मध्यम, अधम झरना तो बहुत बुरा ! इसलिए ‘दृतीय’ को ‘उत्तम पुरुय' कह दिया | ‘प्रथममध्यमोत्तमा में एक सुन्दर मझारान्त शुब्दोंकी पंक्ति हैं। इसे----‘प्रथममध्यमतृतीयाः' अर दें, तो कहने-सुनने में अच्छा न ल गए । “प्रथम’ और ‘मध्यम के आगे ‘तृतीय' बड़ा अटपटा जान पड़ता है-विजातीय-सा ! इसी लिए उत्तम कर दिया गया होगः जाने दीलिए झगड़े को, ‘उत्तमपुरुष' नाम है । मैं और इसका बहुवचन इम' उच्चमपुरुष । और 'तुम' मध्यमपुरुष ( सर्वनाम ) के एकवचन-बहुवचन हैं। यह’ और ‘बृह” “अन्यपुरुष सर्वनाम | मैं- से अंतिरिक्त शेष संपूर्ण संसार अन्यपुरुष के दायरे में हैं।

  • अन्यपुरुब-सर्वनाम 'यह' और 'वह' हैं। ‘लो' तथा 'कौन' आदि भी
  • अन्यपुरुष ही है; परन्तु उनकी एक पृथक् श्रेणी है—विशेष प्रकार के ये हैं।

यह समीपस्थ के लिए आता है और वह दूरस्थ के लिए । बहुवचन में थे' तथा '३' रूप हो जाते हैं ! सासष्य या सान्निध्य मानसिक भी होता है। प्रेमचन्द के सेवासदन' पर विचार प्रकट करते समय इम लिखेंगे-“यह एक उच्चम उपन्यास है, जिसमें समाज का भ्रच्छा चित्र उतरा है। भले ही यह सच लिखते समय हमारे पास सेवासदन' न हो; बुद्धिस्थ तो वह है। ही । ‘नया समाज' ‘झलकचे से निकलता है । वह एक अच्छा मासिक पत्र है•••* 'वह' से अलैच्य का परामर्श ठीक नहीं । हाँ, यदि कहीं आत्मीय-अनामय या ईष्ट-अनिष्ट भाव प्रकट करना हो, तब दूसरे को परामर्श