क्रियाएँ हैं । ‘हर्षित' आदि धातुज ( कृदन्त ) शब्द हैं । परन्तु ये हर्षित' जैसे
शब्द हिन्दी में तद्धित भी समझे जा सकते हैं । ‘हर्ष' प्रसिद्ध शब्द है । उस से
इत’ तद्धित प्रत्यय । संस्कृत में ‘हृषु धातु प्रसिद्ध है, जिस से (-} 'त' कृदन्त
प्रत्यय-‘हर्षित' । परन्तु हिन्दी वाले तो हृषु जानते नहीं । ‘हर्ष' से परि-
चित हैं। इस लिए ‘हर्षित तद्धित शब्द कह सकते हैं। संस्कृत में भी
‘हर्षित तद्धित कहा जा सकता है; परन्तु प्रक्रिया-गौरव है । घुमा कर नाक
पकड़ना ठीक नहीं । दूसरी बात यह कि संस्कृत-व्याकरण में 'तारक' आदि
कुछ शब्द गिनती के ही हैं, जिन से “इत’ ( इत) प्रत्यय होता है। हिन्दी
में ऐसा कोई बन्धन नहीं। इसी लिए एकत्रित' विशेषण भी यहाँ बनता-
चलता है । “हृषु से पहले ‘हर्ष कृदन्त और फिर उस से 'इत' तद्धित !
दुहरा काम ! “अर्जित* *वर्जित आदि शब्द हिन्दी में तद्धितान्त न समझे
जाएँगे। ‘हर्ष' की तरह ‘अर्ज-वर्ज’ कोई प्रसिद्ध चलते शब्द यहाँ हैं।
नहीं कि इन से तद्धित इत' मान लिया जाए। सो, ये संस्कृत कृदन्त-शब्द
ही कहे जाएँगे । बने-बनाए काम में ले लिए जाते हैं। अर्जन’ ‘वर्जन
हिन्दी में है ----अर्ज-वर्ज नहीं । संवन्ध' से संबन्धित ठीक । संस्कृत में
- संबन्धित न चले गा, ‘संसद्ध' चलता है। हिन्दी में संबद्ध’ र ‘संबन्धित
दोनो । एक संस्कृत कृदन्त, दूसरा हिन्दी तद्धितान्त ! हिन्दी में संस्कृत का यह ‘इन’ तद्धित प्रत्यय संस्कृत के अव्यय में भी एक जगह लगता-चलता देखा जाता है-*एकत्रित' | ‘एकत्र' संस्कृत अव्यय है“एक जगह के अर्थ में । इस से ‘इत' प्रत्यय कर के हिन्दी में एक- त्रित रूप चलता है-'इतनी भीड़ इक्रत्रित हो गई कि प्रबन्ध करना कठिन हो गया, “एकत्रित हो गई---‘इकट्ठी हो गई। यानी एकत्र अव्यय से
- एकत्रित’ विशेषण बना लिया गया भीड़ एकत्र हो गई से वह मतलब
नहीं निकल सकते। ‘एकत्र हो गई—एक जगह हो गई । “एकत्रित हो गई-इकट्ठी हो गई। संस्कृत-व्याकरण से एकत्रित नहीं बनता । जो लोग संस्कृत-व्याकरण का ही राज हिन्दी पर चाहते हैं, वे एकत्रित न लिख कर इकट्ठा, इकट्ठे, इकट्ठी लिखें । राष्ट्रिय तद्धित तथा ‘विस्तर' कृदन्त भी वे चलातेचाहते हैं; इस लिए भीड़ एकत्र हो गई' भी लिख सकते हैं। परन्तु इस रूप में तो एकत्र संस्कृत में भी गलत ही हैं-'तत्र समवेताश्छात्राः समारब्धवन्तो भृशमुप- द्रवमू’--- वहाँ इकड़े हुए छात्रों ने बड़ा उपद्रव शुरू किया । यहाँ समवेताः