इसी तरह ‘इर' प्रत्यय है---दुहरा, तिहरा । 'द्विगुण संस्कृत समस्त पद
है; जिस के गुण’ को ‘गुन' बना कर हिन्दी ने एक प्रत्यय बना लिया-
दुगुना, तिगुनाचौगुना । बहुवचन दुगुने' और स्त्रीलिङ्ग दुगुनी' । गुण का
‘गुन' होते ही पुत्रिभक्ति । दुगुना' को लोग्र दुगना' भी लिखते-बोलते हैं ।
पास-पास दो उकार अच्छे न लगे होंगे ! परन्तु तिगुना' चौगुना' को
‘तिगन्ना चौगन लिखना एकदम गलत है। इसी तरह ‘चौगुणा गलत
है । चतुर्गुण' था फिर चौगुना' । संस्कृत का धतुर्गुण' समस्त पद है--
चतुर्' तथा 'गुण' का समास । परन्तु चौगुना' तद्धितान्त हिन्दी-पद है;
क्योंकि ‘गुना' का हिन्दी में कोई पृथक अर्थ नहीं । संस्कृत का 'गुण' गुणन-
अर्थ मैं चलता है। गुरू' शब्द का हिन्दी में वैसा अर्थ नहीं; इस लिए
प्रत्यय ।
| हिन्दी में कई विदेशी भाषाओं के भी प्रत्यय ले लिए गए हैं; परन्तु दूर
छ और पड़ोस का ध्यान रखा गया है । एशिया ( ईरान श्रादि ) की
भाषा से हिन्दी ने विशेषण तथा कई ‘प्रत्ययु’---‘अव्यय’ लिए हैं परन्तु
किसी योरपीय भाषा से नहीं ! योरपीय भाषाओं से विविध संज्ञा-~-शब्द
अवश्य लिए गए हैं। भाषा-विज्ञान से स्पष्ट है कि ईरानी फारसी ) का
प्राचीन संस्कृत से कितना निकट का सम्बन्ध है। दार’ अादि तद्धित प्रत्यय
हिन्दी में खूब प्रचलित हैं । शाकारान्त पु० संज्ञाओं के ‘अ’ को ‘ए’ हो
जाता है---‘दार’ परे होने पर--थानेदार, नातेदार । हिन्दी की पुंविभक्ति
से प्रभावित विदेशी ( अकारान्त पुल्लिङ्ग ) शब्द भी एकारान्त हो जाते हैं--
‘दावेदार' । इकारान्त शब्द के ( अन्य ) 'द' का लोप हो जाता है, दार
परे होने पर--खरीद+दार = खरीदार' । इसी तरह ‘बाज' है--‘नशेबाज ।'
‘बाज' प्रत्यय बुरी आदत बतलाने के लिए ही प्रायः काम में आता है, कहीं
दत मात्र के लिए भी पतंगबाज, शतरंजबाज ||
संस्कृत तद्धित-प्रत्यय संस्कृत शब्दों में ही लगते हैं और ऐसे शब्द
हिन्दी में रखूब चलते हैं---भारतीय, ऐतिहासिक, नैतिक, औपचारिक आदि ।
कभी-कभी हिन्दी ने संस्कृत से भेद भी प्रकट किया है। संस्कृत में एक
‘इत’ तद्धित प्रत्यय है, जो हिन्दी में घुल-मिल गया है। पुष्यों से युक्त-
‘पुष्पित' । इसी तरह ‘पल्लवित’ ‘प्रतिबिम्बित' श्रादि । एक कृदन्त प्रत्यय भी
संस्कृत में इत’ है-हर्षित, वर्जित, अर्जित आदि। हर्ष, वर्जन, तथा अर्जन
पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३४३
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