पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४२५

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{ ३८० } और चाहे जिस शब्द के द्वारा संयुक्त हो कर आएँ--'संयुक्त वाक्य' कह- लाएँ गे और उन की प्रधानता-अप्रधानता का विवेचन व्यर्थ की गोरखधन्धा है। हाँ, कृर्म-शान, हेतु-भाव आदि उन्हें अवश्य प्राप्त होता है। वही देखने क्ली दीज है ।। ऊपर कहा जा चुका है कि किसी विशेष प्रयोजन से ही संयुक्त वाक्य की सृष्टि होती है। समास, तद्धित तथा कृदन्त अादि वृत्तियों में अर्थ कभी-कभी दब-सा जाता है; इस लिए खुले शब्दों का प्रयोग, जोर देने के लिए, किया जाता है और ऐसी स्थिति में वाक्य विस्तृत हो जाता है–फैल कर अनेक वाक्यों में आ जाता है । यही स्थिति है, जिसे 'संयुक्त वाक्य कहते हैं । ‘साहित्यिक को दैन्यपूर्वक दूसरे के सामने हाथ फैलाना योग्य नहीं है। यह एक वाक्य है। हाथ फैलाना बुरा, यह कहा गया है। परन्तु ‘फैलाना कृदन्त को यदि प्रख्यात-रूप से कहा जाए, तो जोर अधिक झा जाए गा--- “साहित्यिक को यह योग्य नहीं कि वह दूसरों के सामने दैन्यपूर्वके हाथ फैलाता फिरे । अब संयुक्त-वाक्य में अधिक जोर अा गया है। यदि ऐसी कोई बात न हो, तो एक वाक्ये रहे गो- "सूर्य में ताप और प्रकाश नैसगिक है? | “यह एक नैसर्गिक बात है कि सूर्य में ताप और प्रकाश है यों संयुक्त-वाक्य के रूप में देना भी लगे गा । इसी तरह--स्वराज्य का उद्देश्य देश में सुख-समृद्धि की वृद्धि है यह साधारण वाक्य है । जोर देने के लिए कहा जाए गा---

  • स्वराज्य का उद्देश्य यही है कि देश में सुख और समृद्धि की वृद्धि हो

परन्तु ‘गरमी में दिन बड़े होते हैं इसे थों फैलाना बहुत भद्दी-- “जब गरमी के दिन होते हैं, तब दिन बड़े होते हैं !” और--- जब सबेरा होता है, तब भ घूमने जाते हैं