पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४२४

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कभी-कभी ‘और न दे कर ‘कामा आदि से काम लेते हैं:-

‘बैल जुतते-मरते हैं, गधे मौज करते हैं ! परन्तु ऐसी स्थिति में जोर नहीं रहता है और बीच में आ जाए, तो बात बढ़िया बन जाती है। हाँ, कहावतों में तो यथास्थित प्रयोग हो गा ही-- बहि-बडि मर्दै बैलवा, बाँधे खायँ तुरंग' ! पाञ्चाली ( कन्नौजी-कानपुरी ) बोली की यह कहावत है-बैल जुत-जुत कर मरते हैं और तुरंग मजे से माल उड़ाते हैं ! विधि को विधान ! ऐसी कहावतों में और आदि का प्रयोग न हो गए । यदि कोई विशेष बात न हो, तब 'और' का प्रयोग न कर के वाक्य अलग-अलग हीं गे---- 'मैं कलकत्ते गया वहाँ मुझे मोहन मिला ।' इसे मैं फलकले गया और वहाँ मुझे मोइन मिला' यों संयुक्त वाक्य के रूप में फहना अनावश्यक है। अनावश्यक शब्द-प्रथोर गलती है । “मैं उन के घर गया और वे उस समय घर में नहीं थे । यहाँ दो वाक्य अलग- अलग हौं, तो क्या इर्ज ? हाँ, यहाँ अवश्य संयुक्त वाक्य अच्छा रहे गा-- | मैं उन के घर मिलने गया और वे इधर मेरे घर पहुँचे !' संयोग की बात ! संयुक्त वाक्य में कोई अंश प्रधान या अप्रधान नहीं होता | दोनो बराबर होते हैं। मैं ने कहा कि तुम चले जाओ ऐसे वाक्यों को लोग ‘मिश्रवाक्य' कहते हैं और यहाँ प्रधान-अप्रघान भाव बतलाते हैं । वस्तुतः ये सब संयुक्त वाक्य' हैं और इन में प्रधानता-अप्रधानता जैसी कोई चीज नहीं होती। दोनो अंश ( दोनो वाक्य ) प्रधान होते हैं। वाक्य में क्रिया प्रधान होती है--विधेयता मुख्य होती है। दोनो वाक्यों में क्रियाएँ { श्रख्यात ) विद्यमान हैं; इस लिए दोनों अपनी-अपनी जगह प्रधान हैं । एक को प्रधान और दूसरे को अप्रधान कहने में कोई कारण नहीं है । दूसरा वाक्य ‘फर्म-रूप से है; इस लिए अप्रघान; ऐसा कहना भी तर्कसंगत नहीं है । कर्म को अप्रधान क्यों माना जाए ? और प्रथम वाक्य ‘कत तो नहीं है न ! यदि ऐसा होता, तो भी कुछ कहने की बात होती । कहा क्रिया का कर्म उत्तर वाक्य है-'वाक्य का कृर्भ' नहीं । सो, अनेक वाक्य चाहे जिस रूप में