पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५५८

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के क्षेत्र में इन का निर्वाह है; जैसे ‘पढ़ना-लिखना’ ‘उठना-बैठना’ ‘मिलना*जुलना' श्रादि ।

‘पूछ-ताछ' आदि में “ताछ' आदि समानार्थक शब्द हीं जान पड़ते हैं--निरर्थक नहीं। परन्तु हमें पता नहीं कि ‘ताछ क्रिया का प्रयोग कहाँ होता है, या कहाँ होता था। अनेक शब्द-प्रयोग सामान्यतः लुप्त हो जाते हैं; पर विशेष-प्रयोगों में बने रहते हैं। 'आ' प्रत्यय की कल्पना जिन के ध्यान में नहीं आई, वे ‘होना-हवाना' के इवाना’ को ‘होना की पुनरुक्ति न समझ पाए और उस शब्द ( ‘इवाना ) को ‘निरर्थक' कह गए ! यही नहीं, ‘देख-भाल के ‘भाल' को भी ‘निरर्थक' कह दिया ! और सचमुच ये शब्द उन के लिए वैसे ही हैं ! जो जिसे न जानता हो, उसके लिए वह निरर्थक तो होता ही है !