पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५५७

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हूँ'-'बुझे’ श्रादि प्रयोग न हों गे । परन्तु पूर्वकालिक क्रिया में समझ के साथ बूझ’ लगा देते हैं, जोर देने के लिए। हिन्दी जोर देने के लिए प्रायः भिन्न शब्द साथ लगा लेती है, जिस का अर्थ समान हो । के और एक मिल कर ग्यारह हो जाते हैं । जोर झा जाता है—-लाल-सुख, पीला-ज, कला-स्याह, श्रादि । 'हर-सुज' नहीं बोला जाता---'हरा कचनार अवश्य बोलते हैं । “कचनार’ एक वृक्ष का नाम हैं। ‘लाल-लाल या पीला-पीला' कह देने से रंग का अधिक्ये नहीं प्रतीत होता, प्रत्युत कुछ न्यूनता ही प्रकट होती है

“वह जो लाल-लाल इमारत नजर आ रही हैं। यानी लाल झाई मार रही है। परन्तु भिन्न शब्द के साथ-उस' का चेहरा लाल-सुखे हो गया?--बहुत ज्यादा लाल हो गया । | यही बात क्रिया की द्विरुक्ति में है। इतनी विशेषता हैं कि आधिक्य प्रकट करने के लिए प्रायः द्विरुक्ति होती है और सम्यक् या ‘अच्छी तरह विशेषता देने के लिए भिन्न समानार्थक क्रिया लगा कर पुनरुक्ति की जाती है। 'बूझ’ शब्द अवधी का है; इस से समझ बूझ फर' । 'देख भाल कर' में भाल' संस्कृत का शब्द है-जगत् सर्वे केन बा विनियालितम्'–सारा संसार किस ने देख लिया हैं ! हिन्दी में भाल' का प्रयोग नहीं होता-“देखता है' की जगह ‘भालता है' न चले गा; परन्तु *देखता-भालता तो तू हैं नहीं !' श्रादि में देख के साथ पुनरुक्ति में अरता है। पुनरुक्ति से क्रियार्थक प्रयोग भी होते हैं-'देखने-भालने कौन जाए गा ?' संयुक्त क्रिया है। देखते-भालते रइना भाई ! ‘जाँच-पड़ताल कर के पहले देख लेना' जाँच-पड़ताल’ भाववाचक रूप है ! *पड़ताल’ हिन्दी शब्द है; परन्तु इस के आख्यात-प्रयोग नहीं होते । जाँच' शब्द भी ऐसा ही है । भाववाचक रूप में दोनों एक साथ आ कर जाँच-पड़ताल’ बन जाते हैं। | यदि क्रिया में इलकापन हो, तो जाँच-पड़ताल की जगह पूछ-पछि जैसा प्रयो। हो मा । पर-खण्ड में ऊ' को 'आ' । “पूछ-पाछ कर चले जायँ ।” | समानार्थक की ही तरह मिलते-जुलते क्रिया-शब्द की भी एकत्र स्थिति छल हैं; पर ऐसे शब्दों को न ‘द्विरुक्ति' कहे गे, न 'पुनरुक्तिं' । 'संयुक्त क्रिया