पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५८१

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के एक टीकाकार ने वैसा कुछ संकेत भी किया है । परन्तु साधारणतः अटकल से ही लोग ‘सहरी' शब्द का अर्थ 'मछली' करते हैं, जो जम जाता है ।। परन्तु अादरणीय बन्धु, हिन्दीशब्दों के सुप्रसिद्ध चिन्तक, विद्वद्र बाबू रामचन्द्र वर्मा ने 'हरी' शब्द का मछली’ अर्थ नहीं माना है। वे ‘सहरी शब्द का अर्थ 'नाव' करते हैं ! मोद्दार-अभिनन्दन ग्रन्थ' में अप का लेख है-हिन्दी में शब्द-समस्या । इस लेख में पृ० ५५१ पर अपने लिखा है--

  • "ब्रजभाषा के कवि-प्रयुक्त शब्दों, यथार्थ रूपों और उन के वास्तविक अर्थों को जानने की एक कठिन समस्या है। हिन्दी के शब्दकोशों से, जो अब तक प्रकाशित हुए हैं, जहाँ इन के सुलझाने की आवश्यकता थी, वहाँ उन्हों ने उसे और भी दुरूह ही बनाया है । उदाहरण के लिए तुलसी द्वारा अयुक्त सहरी' शब्द ले लीजिए |••••••••! | गोस्वामी जी को केवट की क्षुद्रता, दीन-हीन अवस्था के साथ प्रकट करते हुए उस की आजीविका की साधन 'नौका' की भी क्षुद्रता, अल्पता-- इलकापन प्रकट करना है।

“सहरी' का वास्तविक अर्थ जल में चलने या रहने वाला होता है; अतः सहरी' का अर्थ 'मछली' ही क्यों माना जाए, जब कि जल में चलने या रहने के कारण उस ( “सहरी’ शब्द) का अर्थ 'नौका' ('नाव' ) भी हो सकता है, जो कि यहाँ अभीष्ट है । *भरी' का अर्थ भी तुल्य, बराबर और इलकेपन का द्योतक है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने पाहून ते न काठ कठिनाई' द्वारा नाव के हलकेपन की ओर इशारा करते हुए उस ( नाव ) के, प्रभु के रज-रंचित पाद-स्पर्श से, सुन्दरी बन जाने का भय दिखलाते हुए भक्त की चरण-अर्चना की उत्कट अभिलाषा को प्रकट किया है, जो कि उन को अभीष्ट अर्थ है, पर आज भी इस (सहरी' शब्द ) के प्रति बही धाँधली चल रही है—उस का नौका अर्थं न मान कर मछली' ही अर्थ माना जा रहा है, जो सारहीन है, व्यंजना-रहित है और अर्थ के चमत्कार से शून्य है ! बहुत देर में बाक्य पूरा हुआ; पर एक ही वाक्य में सब कुछ आ गया । हम ने वर्मा जी का मत इस लिए उद्धृत किया है कि इस समय हिन्दी के वे ही सब से बड़े और अच्छे कोशकार हैं। वे जो कुछ कहते हैं, उस पर विचार करना चाहिए। उन की बात ऐसी उपेक्षणीय नहीं कि यों ही । टाल दी जाए।