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आचार्य किशोरीदास वाजपेयी
(महापंडित राहुल सांकृत्यायन)[१]

आज की दुनिया में कितना अन्धेर है, विशेष कर हमारे देश का सांस्कृतिक तल कितना नीचा है, इसका सब से ज्वलन्त उदाहरण हमें पंडित किशोरी दास वाजपेयी के साथ हुए और हो रहे बर्ताव से मालूम होता है। प्रतिभाएँ सभी क्षेत्र में एवरेस्ट-शिखर नहीं होती; परन्तु जब किसी क्षेत्र में किसी पुरुष का उत्कर्ष साबित हो गया, तो उसकी कदर करना और उससे काम लेना समाज का कर्तव्य है। आज बहुत थोड़े लोग हैं, जो पं॰ किशोरीदास जी को समझते हैं। उनमें भी बहुतेरे उनके अक्खड़ स्वभाव या अपनी ईर्ष्या से नहीं चाहते कि लोग इस अनमोल हीरे को समझे, इसकी कदर करें! इसका परिणाम यह हो रहा है कि हिन्दी उनकी सर्वोच्च देनों द्वारा परिपूर्ण होने से वंचित हो रही है और उन्हें लिखना पड़ रहा है मैं क्या गर्व करूँ! गर्व प्रकट करने योग्य चीजें तो अभी तक दे ही नहीं पाया हूँ!” वाजपेयी जी पाँच बड़ी-बड़ी जिल्दों में हिन्दी को निर्वचनात्मक (निरुक्तीय) कोश दे सकते हैं, पर उस की जगह वे ‘हिन्दी निरुक्त’ के रूप में उस की भूमिका भर ही लिख सके हैं! वे हमें ‘हिन्दी का महाव्याकरण’ दे सकते हैं! पर यदि हमने उनके प्रति ऐसी ही उपेक्षा दिखलाई, तो ‘राष्ट्रभाषा का प्रथम व्याकरण’ से ही संतोष करना पड़ेगा; यद्दपि इसका यह अर्थ नहीं कि वह व्याकरण बिलकुल अपूर्ण है। वाजपेयी जी किन विषयों पर अधिकारपूर्वक लिख सकते हैं। इसके बारे में उन्होंने स्वयं लिखा है—“मैं जिन विषयों पर कुछ अच्छा लिख सकता हूँ; वे ये हैं—(१) काव्य के तत्त्व, रस, अलङ्कार, शब्द-शक्ति आदि। (२) हिन्दी का व्याकरण (३) निरुक्त (४) हिन्दी-साहित्य का इतिहास (५) बहुविज्ञापित हिन्दी का रहस्यवाद (६) कांग्रेस—युग का राजनैतिक

  1. ग्रन्थ की पूर्वपीठिका में राहुल जी के जिस लेख का उल्लेख हुआ है, वह ऐतिहासिक महत्त्व रखता है; इसलिए यहाँ ज्यों का त्यों दिया जा रहा है।