पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/७

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इतिहास (७) धर्मविज्ञान (८) शब्द-शिल्प । प्रायः इन सभी विषय के नमूने मैं दे चुका हूँ। अब यह देश पर अवलम्बित है कि मुझसे कोई काम ले, या न ले ।”


इन सभी विषयों पर अपने विशाल ज्ञान और सूझ के कारण कितनी ही

नई चीजें वे दे सकते हैं, इसमें सन्देह नहीं; पर जिन दो विषयों में उनके समकक्ष इस समय हिन्दी में कोई नहीं है, वे हैं व्याकरण और निरुक्त । उनका यह लिखना बिलकुल बजा है कि "कोई मुझे गाली न दे कि वह इस विषय पर लिख सकता था; पर कम्बख्त साथ ही सब लेकर मर गया ।" वाजपेयी जी को लोग गाली नहीं देंगे; बल्कि आज के हिन्दी वालो को गाली देंगे। और विषयों पर काफी लिखा गया है; लिखने की क्षमता और रुचि रखने वाले लोगों की शायद कमी भी नहीं है; पर उपरोक्त दोनों विषय अभी पूरी तौर से अवगाहन नहीं किए जा सके हैं। ये केवल परिश्रम- साध्य ही नहीं हैं। इनके लिए प्रथम श्रेणी की प्रतिभा और साथ ही गम्भीर अध्ययन की जरूरत है।

प्रतिभा का प्रथम परिचय

पंजाब में १९१९ के मार्शल-ला के दिनों के एक सप्ताह पहले लाहौर में संस्कृत की सर्वोच्च 'शास्त्री’ परीक्षा हुई थी । इन पंक्तियों का लेखक भी डी० ए० वी० कालेज से भेजे गए परीक्षार्थियों में से एक था । परीक्षा का परिणाम उस साल कितना कठिन थी, यह इसी से मालूम होगा कि हमारे कालेज से भेजे गए प्रायः एक दर्जन विद्यार्थियों में से एक भी पास न हुआ ! मैं घर के इम्तहान में प्रथम आया था और विश्वविद्यालय-परीक्षा में चारो खाने चित्त होने वालों में भी प्रथम था ! मार्शल-ला के समय में ही परीक्षा का परिणाम निकला, जिसमें उस साल शास्त्री में सर्वप्रथम आने वाले छात्र का नाम था—किशोरी दास सभी विद्याशियों के मन में जिज्ञासा थी कि शास्त्री-पुरा के हत्याकांड में यह असाधारण सफलता-प्राप्त वीर कौन है ? हमें यही मालूम हो सका कि वह वृन्दावन का एक वैष्णव साधु है। उस समय हम यही आशा रखते थे कि किशोरीदास पुराने विचारों का, पगडंडी पर चलने वाला, हमारे सैकड़ों संस्कृत के विद्वानों में से एक हो गा। उस समय हम उसी युग में थे, जब कि संस्कृत के विद्वान् भी हिन्दी को उसी दृष्टि से देखते थे, जैसे हिन्दु-आंग्लियन लोग गॅवारो और असंस्कृत की श्रद्धा-