पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६२७

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( च ) मैथिली'-माधुरी मैथिली हिन्दी की सुसमृद्ध साहित्यिक बोली है, जो अपने बहुमूल्य साहित्य के कारण एक अत्यन्त समृद्ध भाषा गिनी जाती है। मैथिली की लिपि भी एक पृथकू है, जो बहुत कुछ बँगला लिपि से मिलती-जुलती है। मराठी और हिन्दी की लिपि एक ही है---‘नागरी' । परन्तु मराठी में ‘कृ’ प्रत्यय नहीं; इस लिए हिन्दी की बोली नहीं। मैथिली की लिपि भिन्न; पर क' के कारण हिन्दी-परिवार । वस्तुतः भैथिली भाषा हिन्दी तथा बँगला के बीच की कड़ी है । इस पर बँगला का भी प्रभाव है। परन्तु 'ऋ' के न होने से बँगला की गिनती हिन्दी की बोलियों में नहीं है । मैथिली में ‘क’ की स्थिति है; इस लिए इसे हिन्दी की बोलियों में गिना जाता हैं । परन्तु यहाँ न खड़ी बोली” की “अ' संज्ञा-विभक्ति है, न व्रजभाषा या राजस्थानी की 'ओ' । न राम का सुत न राम को पूत” । यहाँ चलती है—“रामक सुत'मैथिल-कोकिल विद्यापति का प्रयोग है-- नन्दक नन्दन कदमक तरुतर धिरे धिरे मुरली बजाव व्रजभाषा ‘नन्द को नन्दन कदम के तरु तर धीरे धीरे मुरली बजावै राष्ट्रभाषानन्द' का नन्दन कदम्ब के पेड़ के नीचे धीरे धीरे मुरली बजाता था। मधुरता देखिए, कहाँ कितनी है । परन्तु नित्य के व्यवहार में मोटा आटा ही सब लेते हैं। बढ़िया हलवा आदि बनाना है, कचौड़ियाँ बनानी हों, तो कभी-कहीं सूजी-मैदा लेनी हो गी । महाकवि विद्यापति का स्थान हिन्दी में वही है, जो ब्रजभाषा में सूरदास का । एक मैथिली-कोकिल, दूसरे ब्रजभाषा-कोकिल । परन्तु विद्यापति से भी पहले मैथिली' के अच्छे-अच्छे कवि और लेखक हो गए हैं। महाकवि चन्दवरदाई के समकालीन पं० ज्योतिरीश्वर ठाकुर मैथिली के कुशल कवि हो गए हैं। उन्हों ने 'वर्णरत्नाकर' नाम का बहुत अच्छा ग्रन्थ मैथिली में लिखा थी; यह बात डा० अमरनाथ झा की लिखी ‘मैथिली-लोकगीत' की भूमिका से मालूम हुई। उन की भाषा का नमूना भी डा० झा महोदय ने दिया है। देखिए, अन्धकार का वर्णन है---