पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/१२८

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१५० पंचम व्यास्यान रोमन्थस्थितगोगणैः परिचया- छत्कर्णमाकर्णितम् । गुप्तं गोकुलपल्लवे गुणगणं ___ गोप्यःसरागा जगुः । (८-१७३) गोपियों ने जो गान गाया उसे कवि ने मात्रिक छन्द मे लिखा है। अनुमान किया जा सकता है कि क्षेमेन्द्र ने इस प्रकार के गान अपने आसपास सुने थे। और इस गान मे उन्होंने उन्हीं लौकिक गीतों का अनुकरण किया है। गीत इस प्रकार है- ललितविलासकलासुखखेलन- ललनालोभनशोभनयौवन- ___ मानितनवमदने। अलिकुलकोकिलकुवलयकज्जल- कालकलिन्दसुताविगलज्जल- कालियकुलदमने । केशकिशोरमहासुरमारण- दारुणगोकुलदुरितविदारण- गोवर्धनहरणे। कस्य न नयनयुगं रतिसजे मज्जति मनसिजतरलतरंगे- वररमणीरमणे। इस गान से यह अनुमान होता है कि जिस प्रकार के पद बगाल और उड़ीसा में प्रचलित थे उसी प्रकार के पद सुदूर कश्मीर मे भी प्रचलित थे। अर्थात् पूर्व से पश्चिम तक सम्पूर्ण भारत में ऐसे पद व्यास थे। सूरदास ब्रजभाषा के प्रथम कवि हैं। उनके पद इतने सुन्दर और कलापूर्ण हैं कि सहसा यह विश्वास नहीं होता कि यह रचना ब्रजभाषा की पहली रचना है। निश्चय ही इसके पहले बहुत बड़ी परपरा रही होगी । ५० रामचन्द्र शुक्ल ने तो एक बार यह भी अनुमान किया था कि सूरसागर दीर्घकाल से चली आती हुई किसी पुरानी परंपरा का विकास है। सूरदास और उन्हीं के समान अन्य भक्त कवियों के पदों का बाद मे चलकर इतना अधिक विकास हुआ कि उनके पहले के सभी पद या तो लुप्त हो गये या फिर इन्ही कवियों में से किसी-न-किसी के नाम पर चल पड़े। ____ गीतगोविन्द में बहुत थोडे गानों का संग्रह है। कवि ने उसे प्रबन्धकाव्य के रूप में ही सजाया है। निःसन्देह गीतगोविन्द के गान गीतिकाव्यात्मक अर्थात् 'लिरिकल' हैं। ऐसे पदों से प्रबन्ध का काम नहीं लिया जा सकता। इसीलिये गीतगोविन्द वास्तविक प्रबन्धकाव्य नहीं हो सका है। वह वस्तुतः गीति-काव्य संग्रह ही है। सूरदास आदि व्रजभाषा के कवियों ने भी बहुत-कुछ इसी पद्धति को अपनाया है। श्रीकृष्णलीला का गान करने के पहले जयदेव ने दशावतार का स्मरण कर लिया है। ऐसा जान पड़ता