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हिंदी-साहित्य का इतिहास

और रहीम ऐसे निपुण भावुक कवि दिखाई पड़े उसके साहित्यिक गौरव की ओर ध्यान जाना स्वाभाविक ही है।

(१) छीहल––ये राजपुताने की ओर के थे। संवत् १५७५ में इन्होंने पंच-सहेली नाम की एक छोटी-सी पुस्तक दोहो में राजस्थानी-मिली भाषा में बनाई जो कविता की दृष्टि से अच्छी नहीं कही जा सकती। इसमे पाँच सखियों की विरह-वेदना का वर्णन है। दोहे इस ढंग के है––

देख्या नगर सुहावना, अधिक सुचंगा थानु। नाउँ चँदेरी परगटा, जनु सुरलोक समान॥
ठाईं ठाईं सरवर पेखिय, सूभर भरे निवाण। ठाईं ठाईं कुँवा बावरी,सोहइ फटिक सवाँश॥
पंद्रह सै पचहत्तरै, पूनिम फागुण मास। पंचसहेली वर्णई कवि छीहल परगास॥

इनकी लिखी एक 'बावनी' भी है जिसमे ५२ दोहे है।

(२) लालचदास––ये रायबरेली के एक हलवाई थे। इन्होने संवत् १५८५ में "हरि-चरित्र" और संवत् १५८७ में "भागवत दशम स्कंध भाषा" नाम की पुस्तक अवधी-मिली भाषा में बनाई। ये दोनों पुस्तकें काव्य को दृष्टि से सामान्य श्रेणी की हैं और दोहे चौपाइयो में लिखी गई है। दशम स्कंध भाषा का उल्लेख हिंदुस्तानी के फ्रांसीसी विद्वान् गार्सा द तासी ने किया है और लिखा है कि उसका अनुवाद फ्रांसीसी भाषा में हुआ है। "भागवत भाषा" इस प्रकार की चौपाइयों में लिखी गई है––

पंद्रह सौ सत्तासी जहिया। समय बिलंबित बरनौं तहिया॥
मास असाढ़ कथा अनुसारी। हरिबासर रजनी उजियारी॥
सकल संत कहँ नावौं माथा। बलि बलि जैहौं जादवनाथा॥
रायबरेली बरनि अवासा। लालच रामनाम कै आसा॥

(३) कृपाराम––इनको कुछ वृत्तांत ज्ञात नही। इन्होंने संवत् १५९८ में रस-रीति पर 'हिततरंगिणी' नामक ग्रंथ दोहो में बनाया। रीति या लक्षण-ग्रंथों में यह बहुत पुराना है। कवि ने कहा है कि और कवियों ने बड़े छंदों के विस्तार में शृंगार-रस का वर्णन किया है पर मैने 'सुघरता' के विचार से दोहों में वर्णन किया है। इससे जान पड़ता है कि इनके पहले और लोगों ने भी रीति-ग्रंथ लिखे थे जो अब नही मिलते है। 'हिततरंगिणी' के कई दोहे बिहारी के