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हिंदी-साहित्य का इतिहास

चकित चकत्ता चौंकि चौंकि उठै बार-बार,
दिही दहसति चितै चाहि करषति है।
बिलखि बदन बिलखत बिजैपुर पति,
फिरत फिरंगिन की नारी प्रकृति है॥
थर थर काँपत कुतुब साहि गोलकुंडा,
हहरि हबस भूप भीर भरकति है।
राजा सिवराज के नगारन की धाक सुनि,
केते बादसाहन की छाती धरकति है॥


जिहि फन फूतकार उड़त पहार भार,
कूरम कठिन जनु कमल बिदलिगौ।
विषजाल ज्वालामुखी लवलीन होता जिन,
झारन चिकारि मद दिग्गज उगलिगो॥
कीन्हों जिहि पान पयपान सो जहान कुल,
कोलहू उछलि जलहिंधु खलभलिगो।
खग्ग खगराज महाराज सिवराजजूं को,
अखिल भुजंग मुगलछल निगलिगो॥

(८) कुलपति मिश्र––ये आगरे के रहनेवाले माथुर चौबे थे, और महाकवि बिहारी के भानजे प्रसिद्ध हैं। इनके पिता का नाम परशुराम मिश्र था। कुलपतिजी जयपुर के महाराज जयसिंह (बिहारी के आश्रयदाता) के पुत्र महाराज रामसिंह के दरबार में रहते थे। इनके 'रसरहस्य' का रचनाकाल कार्तिक कृष्ण ११ संवत् १७२७ है। अब तक इनका यही ग्रंथ प्रसिद्ध और प्रकाशित हैं। पर खोज में इनके निम्नलिखित ग्रंथ और मिले हैं––

द्रोणपर्व (स॰ १७३७), युक्ति-तरंगिणी (१७४३) नखशिख, संग्रामसार, रस रहस्य (१७२४)।

अतः इनका कविता-काल सं॰ १७२४ और सं॰ १७४३ के बीच ठहरता है। रीति-काल के कवियों में ये संस्कृत के अच्छे विद्वान् थे। इनका 'रसरहस्य'