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हिंदी-साहित्य का इतिहास

मोहिं लखि सोवत बिथोरिनो सुबेनी बनी,
तोरिगो हिए को हार, छोरिंगो सुगैया को।
कहै पदमाकर त्यों घोरिगो घनेरो दुख,
बोरिंगो बिसासी आज लाज ही की नैया को॥
अहित अनैसो ऐसो कौन उपहास? यातें,
सोचन खरीं मैं परी जोवति जुन्हैया को।
बुझिहैं चवैया तब कैहौं कहा, दैया!
इत पारिगो को, मैया! मेरी सेज पै कन्हैया को?


एहो नंदलाल! ऐसी व्याकुल परी है बाल,
हाल ही चलौ तौ चलौ, जोरे जुरि जायगी।
कहै पदमाकर नहीं तौ ये झकोरे लगै,
औरे लौं अचाका बिनु घोरे घुरि जायगी॥
सीरे उपचारन घनेरे घनसारन सों,
देखते ही देखौ दामिनी लौं दुरि जायगी।
तौही लगि चैन जौ लौं चेतिहै न चंदमुखी,
चेलैंगी कहूँ तौ चाँदनी में चुरि जायगी॥


चालो सुनि चंदमुखी चित में सुचैन करि,
तित बन बागन घनेरे अलि धूमि रहै।
कहै पदमाकर मयूर मंजु नाचत है,
चाय सों चकोरनी चकोर चूमि चूमि रहे॥
कदम, अनार, आम, अगर, असोक-थोक,
लतनि समेत लोने लोने लगि भूमि रहे।
फुलि रहे, फलि रहे, फबि रहे, फैलि रहे,
झपि रहे, झलि रहे, झुकि रहे, झुमि रहे॥